इतनी कथा सुनकर नारद जी ने कहा हे पिता शिव जी के काशी छोड़ने का क्या कारण था यह सुनकर ब्रह्मा जी ने आदि से अंत तक की साफ कथा महाराज जी को कहा सुनाए जिस प्रकार कैसे में अकाल पड़ा था और राजा देवदास ने वर्ग प्राप्त किया उसके पश्चात गणपति की कथा तथा विष्णु जी की चरित्र सुनाया जिस प्रकार विष्णु जी ने बहुत मत का प्रचार कर उन सबको धर्म भ्रष्ट किया तथा राजा देवदास ने विष्णु जी की आज्ञा का पालन कर काशी छोड़ गोमती तट पर निवास किया वह सब कथा भी सुने इसके उपरांत ब्रह्मा जी ने या वृतांत कहा जिस प्रकार की शिवजी के गाना राजा देवदास को शिवलोक ले गए थे विष्णु जी की गरुड़ जी द्वारा शिव जी के पास संदेश भेजना तथा शिव जी के काशी आवा गमन की कथा को कहा करो चरित्र का वर्णन किया जिस प्रकार की शिवजी रथ पर अरुण हुए थे तथा उन्होंने गुहा में जाकर को दर्शन दिया था इसके उपरांत जस्ट स्वर शिवलिंग की स्थापना जेतेश्वर देवी का प्रगट होना हिमाचल का काशी में आकर शिवालय का निर्माण करना तथा शिव के काशी में निवास करने की कथा को आदि से अंत तक का सुनाया ब्रह्मा जी द्वारा इस सब वृत्तांत को सुनकर नारद जी को अत्यंत प्रसन्नता हुई
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Hearing this much, Narad Ji asked, “Oh father, what was the reason for Shiv Ji leaving Kashi?” Hearing this, Brahma Ji told Maharaj Ji the clear story from beginning to end. He told how there was a famine in Kashi and King Devdas got the Varg, after that he narrated the story of Ganpati and the character of Vishnu Ji. How Vishnu Ji corrupted the religion of all those people by propagating many sects and how King Devdas left Kashi following the orders of Vishnu Ji and lived on the banks of Gomti. He also heard all that story. After this, Brahma Ji told the story of how Shiv Ji took King Devdas to Shivlok, Vishnu Ji’s sending a message to Shiv Ji through Garuda Ji and the story of Shiv Ji’s visit to Kashi. He described the character of Shiv Ji who appeared on the chariot and gave darshan to Shiv Ji by going to the cave. After this, the installation of Just Swar Shivling, the appearance of Jeteshwar Devi, Himachal coming to Kashi and building a Shivalaya, and the story of Shiv living in Kashi, all this was narrated from beginning to end by Brahma Ji after listening to all these stories. Narada ji was very happy
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