श्री शिव महापुराण कथा सातवां खंड अध्याय 5 का भाग 2


हे नारद दूसरे सत्य नमक द्वापर युग में प्रजापति ने बिहार जी का अवतार लिया और वेद के भाग किए दादू प्राण उन्होंने पुराने के भी रचना की परंतु संसार में किसी ने भी उसके मत को स्वीकारना किया उसे समय उन्होंने दुख ही होकर शिवजी का ध्यान किया तथा शिव जी ने सुथार नमक से पृथ्वी पर अवतार लिया और ब्याज जी के मत को प्रसिद्ध कर योग शास्त्र का प्रचार किया उसके संदर्भ में सात रूप अचरुख तथा मृत मान नामक चार शिष्य थे इस प्रकार उन्होंने अपने शिष्यों सहित व्यास जी के धर्म की स्थापना कर सभी सांसारिक जीवन को आनंद पहुंचा हे नारद तीसरे द्वापर युग में शुक्र ने व्यास जी का अवतार लिया और वेदों के विभाग कर पुराने का निर्माण किया जब उन्होंने भी सिद्ध प्राप्त न हुई तब शिवजी ने उसकी प्रार्थना पर दमन नमक अवतार लिया और बिहार जी के मत को संसार में प्रसिद्ध किया उनके विश्व विवेक व्यास तथा सुप्रकाश नामक चार शिष्य थे उन शिव के दामन अवतार के योग्य आभास की कृतियों को अपने शिष्यों द्वारा संसार में प्रचलित कराया तथा पुराणों क कीमत को स्थिर करके लोगों को मुक्ति का मार्ग दिखाया हे नारद चौथ द्वापर युग में बृहस्पति ने व्यास जी का उतार लेकर वेद के विभाग किए गए तथा पुराने को प्रसिद्ध किया परंतु कलियुग के कारण उसकी अभिलाषा पूरी नहीं हुई तब उन्होंने शिवजी का स्मरण एवं ध्यान किया जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने सुब्होसरा नामक से पृथ्वी पर अवतार लिया और व्यास जी के मनोरथों को पूरा किया उसे समय उसके सुमुख दुर्मुख दुर्मुख तथा दूर की कम नमक कर शिष्य हुए उन्होंने अपने शिष्यों को योग अभ्यास की शिक्षा दी और उसके द्वारा ब्याज जी के मत को संसार में प्रसिद्ध कराया यह नारद पांचवें द्वापर युग में सरियाविता देवता के विकास का अवतार लिया और वेद के विभाग करके पुराने का निर्माण किया जब उनका मत प्रसिद्ध नहीं हुआ तब शिवजी ने उसकी प्रार्थना पर कनक नमक से पृथ्वी का अवतार लिया उसे समय सक सनत सनातन तथा संत कुमार नमक उनके चार शिष्य थे इन शिष्यों को प्रभु विभु निर्भर तथा निराकृत भी कहा गया जाता है वास्तु इन शिष्यों को योग आभास का उद्देश्य करके शिवजी ने अभ्यास मत का प्रचार किया तथा संसार में पुराने की प्रतिष्ठा बधाई है नाराज छठवें द्वापर युग में मुनि ने व्यास का अवतार लिया तथा उन्होंने अपना नाम महंत रखा हूं उन्हें अन्य अभ्यासन की अपेक्षा और अधिक श्रेष्ठ पुराने का निर्माण किया परंतु जब उनके मत को कलियुग के सांसारिक जीवन में स्वीकार नहीं किया तब उन्होंने भी शिवजी की सहायता लेने के लिए बढ़े होना पड़ा उसे समय शिव जी ने लोक पक्ष नाम से पृथ्वी पर अवतार लिया उनके शिष्यों के नाम सुदामा विरुद्ध सॉन्ग तथा अबूझ थे उन्होंने योग शास्त्र को प्रसिद्ध कर अपने शिष्यों द्वारा ब्याज जी ने पौराणिक मत का प्रचार किया और लोगों को मुक्ति का सरल मार्ग दिखलाया हे नारद साथ में द्वापर युग में संस्कृत में व्यास का अवतार लिया तथा वेद के विभाग करके पुराने को बनाया किंतु किसी ने भी उसके मत को स्वीकार नहीं किया यह देख बिहार जी ने भगवान सदाशिव जी का स्मरण किया तब शिवजी जीवनी नमक धारण कर पृथ्वी पर अवतरित हुए उसके शिष्यों के नाम शाश्वत पढ़ाना बैजनाथ तथा सुहावना थे अपने उन शिष्यों के साथ जेषित अवतार में योग शास्त्र को प्रकट किया तथा संसार में पुराण का धाम प्रतिष्ठा किया यह वीक के समान व्रत का पालन करने वाला कोई नहीं हुआ जिस समय शिव जी काशीपुरी को त्याग कर मंदराचल पर्वत पर चले गए थे उसे समय जातिविटने या प्रण किया था कि जब तक शिवजी पुणे यहां लौटकर नहीं आएंगे तब तक मैं एंजल ग्रहण नहीं करूंगा आपने इस प्राण का निवास दिन उन्होंने पूरा किया यह वीक का चरित्र पढ़ने और सुनने में अत्यंत आनंद प्रदान करने वाला है

TRANSLATE IN ENGLISH 

O Narada, in the second Dwapar Yuga, Prajapati took the form of Bihar Ji and divided the Vedas. Dadu Pran, he also composed the Puranas, but nobody in the world accepted his opinion. At that time, he meditated on Shiva in sorrow. Shiva took incarnation on earth in the form of Suthar and made Byas Ji's opinion famous and propagated Yoga Shastra. In this context, he had seven forms and four disciples named Acharukh and Mrit Maan. In this way, he established the religion of Vyas Ji along with his disciples and brought joy to all worldly lives. O Narada, in the third Dwapar Yuga, Shukra took the form of Vyas Ji and divided the Vedas and created the Puranas. When he too did not achieve Siddhi, then Shiva took the form of Daman on his prayer and made Bihar Ji's opinion famous in the world. He had four disciples named Vishwa Vivek Vyas and Suprakash. Those works of Abhas, worthy of Shiva's Daman incarnation, were made popular in the world by his disciples and by stabilizing the price of Puranas, people were shown the path of salvation. O Narada, in the fourth Dwapar Yuga, Brihaspati took Vyas Ji's incarnation and divided the Vedas. He went and made the Purana famous, but due to Kaliyug his wish was not fulfilled, then he remembered and meditated on Lord Shiva, pleased with which Lord Shiva took incarnation on earth in the name of Subhosara and fulfilled the wishes of Vyas ji. He made his disciples Sumukh, Durmukh and Door ki Kam and became their disciples. He taught yoga practice to his disciples and through that made the opinion of Vyas ji famous in the world. This Narad took incarnation of the development of Sariyavita deity in the fifth Dwapar Yuga and created the Purana by dividing the Vedas. When his opinion did not become famous, then Lord Shiva on his prayer took incarnation on earth in the form of Kanak. He had four disciples named Samay Sak Sanat Sanatan and Sant Kumar. These disciples are also called Prabhu Vibhu Nirvair and Nirakrit. With the aim of giving yoga experience to these disciples, Lord Shiva propagated the practice opinion and the prestige of the Purana in the world is appreciated. In the sixth Dwapar Yuga, the sage took the incarnation of Vyas and he kept his name Mahant. He created a more superior Purana than other Abhyasans, but when his opinion was not recognized, When the worldly life of Kaliyug did not accept him, then he too had to go ahead to take the help of Shiv Ji. At that time Shiv Ji took incarnation on earth by the name of Lok Paksha. The names of his disciples were Sudama, Viruddh Singh and Abhuj. He made the Yoga Shastra famous. Through his disciples Byaj Ji propagated the mythological belief and showed the people the easy path of salvation. Along with Narad, in the Dwapar era, he took the incarnation of Vyas in Sanskrit and made the old one by dividing the Vedas, but no one accepted his belief. Seeing this, Bihar Ji remembered Lord Sadashiv Ji. Then Shiv Ji incarnated on earth wearing the name of Jivani. The names of his disciples were Shashwat Padhna Baijnath and Suhavana. Along with those disciples, he revealed the Yoga Shastra in the incarnation and established the abode of Puranas in the world. There was no one who followed this fast like Vakya. When Shiv Ji left Kashipuri and went to Mandarachal mountain, at that time Jativita had vowed that till Shiv Ji does not return to Pune, I will not accept the angel. He took the residence of this soul. Completed This Character of the Week is an absolute joy to read and listen to

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