श्री शिव महापुराण कथा सातवां खंड अध्याय 3



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद अब मैं तुमसे शिव जी के पांच अवतारों की कथा का वर्णन करता हूं उन्होंने सर्वप्रथम मुझे सृष्टि उत्पन्न करने की शक्ति दी दादू प्रांत ज्ञान दिया था फिर प्रत्येक कप में हुए मुझे उपदेश देते रहे जिसके द्वारा मैं सृष्टि को उत्पन्न किया तुम उन अवतारों की कथा ध्यान पूर्वक सुनो हे नारद जब श्वेत लोहित नामक 19वां कप आया उसे समय मैंने यह विचार किया कि आप सृष्टि उत्पन्न करनी चाहिए तब मैं शिवजी का ध्यान किया उसे समय शिवजी बाल स्वरूप धारण श्वेत लोहित वंश से अपने चारों शिष्यों के साथ प्रकट हुए हुए मुझे बड़ी कृपा दृष्टि से देख रहे थे उसे समय मैं उन्हें देखकर अपने मन में या विचार किया कि यह बालक कौन है तभी भगवान सदाशिव की कृपा से मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि यह बालक और कोई नहीं अभी तो परम ब्रह्म शिव जी ही है उसे समय मैं उसकी स्तुति करते हुए हाथ जोड़कर इस प्रकार कहा है प्रभु आपका सामान कृपालु और कौन है अब आप मुझे ऐसी शक्ति दीजिए जिससे मैं सृष्टि को उत्पन्न कर सकूं हे नाथ आप मुझे यह वरदान भेज दीजिए कि मेरे हृदय में आपके भक्ति एक क्षण के लिए भी दूर ना हो तथा सृष्टि उत्पन्न करने में मुझे किसी प्रकार का द्वेष ना लगे मेरी इस प्रार्थना को सुनकर शिवजी ने एवं वास्तु कहा तदुपरांत हुए इस प्रकार कहने लगे हे ब्रह्मा तुम्हें हमारे चरणों में सच्ची प्रतीत है इसलिए हमें प्रकट होकर तुम्हें अपना दर्शन दिया है हमारा नाम सबूत जात है और हम योग का प्रचार करेंगे हे नारद इतना कह कर शिवजी ने अपने अंग से चार लड़कों को उत्पन्न किया उन सबके शरीर का रंग श्वेत था वह शिष्य नाम से प्रसिद्ध होकर योग शास्त्र की पद्धति को प्रकट करने के हेतु शास्त्र पार्टी हुई उनके नाम इस प्रकार हैं संदीप साधन विश्वनाथ तथा उमंग अपने इस चार शिष्यों द्वारा शिवजी ने संसार में योग शास्त्र को प्रकट किया हे नारद भगवान शिव जी के दूसरे अवतार की कथा इस प्रकार है जब और आप तत्काल्प नामक 20 में चल पाया उसे समय मेरा हुआ लाल रंग का था उसे समय मैं लाल वस्त्र तथा लाल ही माला पहनना हुआ था आज तो जब मैं सृष्टि उत्पन्न करने की इच्छा से भगवान सदाशिव का ध्यान किया तो वह लाल वस्त्र लाल नेत्र तथा लाल रंग के ही आभूषण धारण किए हुए एक बालक के रूप में प्रकट हुए उसे समय मैं उनका नाम बामदेव जानकारी स्तुति तथा प्रणाम किया और यह प्रार्थना की की है प्रभु आप मुझ पर ऐसी कृपा करें जिससे मैं सृष्टि रचना कार्य में समर्थ हो सकूं या सुनकर उन बाल रूपी धारी शिव जी ने युवा वस्तु कहा था दो प्रांत उन्होंने अपने चार शिष्य उत्पन्न किए जिनका स्वरूप कुमार तथा वस्त्र आदि सब लाल रंग के थे उनका नाम विराज विवाह विश्व तथा विश्व भावना हुआ दादू प्रांशु ने अपने उन चारों शिष्यों सहित योग की स्थापना की हे नारद तीसरे अवतार की कथा इस प्रकार है कि जब भी तो आशा नाम की किशमिकल पाया तब मैं सृष्टि उत्पन्न करने की इच्छा से शिवजी का ध्यान किया उसे समय शिव जी पित्त वस्त्र पित्त अलंकार तथा विद्वान धारण किए हुए मेरे सम्मुख प्रकट हुए जब मैं ध्यान धरकर उन्हें पहचान तब शिवजी गायत्री का जाप करके उनकी बहुत प्रकार से स्तुति किया उसने यह प्रार्थना की कि आप मुझे सृष्टि उत्पन्न करने की सामर्थ प्रदान करें तब उन तत्पुरुष नमक शिव जी ने एवं वास्तु का कर अपनी शरीर से चार शिष्यों उत्पन्न किया जो पीले रंग के वस्त्र आभूषण धारण धारण किए हुए थे और उनके शरीर का रंग भी पिला था उसके द्वारा शिव जी ने संपूर्ण संसार में योग शास्त्र उत्पन्न किया यह नारद चौथा अवतार की कथा इस प्रकार है कि जब पिटवाशा कप को एक दिव्या शास्त्र वर्ष व्यतीत हो गए तथा परी व्रत नमक कप आया उसे समय मैं सृष्टि उत्पन्न करने की इच्छा से शिवजी का ध्यान किया तब हुए काले वस्त्र कल यज्ञोपति कल मुकुट तथा कल भस्म को धारण किए हुए बालक रूप में प्रकट हुए जब मैं ध्यान धरकर उन्हें पहचान तो यह ज्ञात हुआ कि यह घोड़ा अवतार है उसे समय मैं उसकी स्तुति करते हुए दंडवत की और यह कहा हे प्रभु आप मुझे सृष्टि उत्पन्न करने की शक्ति प्रदान कीजिए उसे समय उन घनघोर अवतार शिवजी ने मुझे तथास्तु का कार्य उत्तर दिए हे ब्रह्मा हमारी यह स्वरूप कासन को दूर करेगा तथा हमारा मंत्र तुम्हारे संपूर्ण कार्यों को सिद्ध करेगा इतना कहकर उन्होंने अपनी भुज से चार शिष्य उत्पन्न किया जो स्वयं में उन्हीं के समान थे तब उन्होंने घोर योग को संसार में प्रसिद्ध किया जिससे सब जीव को एक जैसा कहा गया है हे नारद पांचवी अवतार की कथा इस प्रकार है कि जब शिव रूप नमक 23 व कप आया तब मैं सृष्टि उत्पन्न करने के हेतु शिवजी का ध्यान किया और तू मेरी प्रार्थना पर सर्वप्रथम विश्व रूप भाभी प्रगति हुई उसके समस्त वस्त्र आभूषण सहित थे तथा उसके शरीर का रंग भी श्वेत था फिर उसी प्रकार के वस्त्र आभूषण एवं वर्णन से युक्त होकर भगवान सदा शिव भी प्रकट हुए उसे समय मैं ध्यान धरकर यह जाना कि इनका नाम निशान है और तू मैंने उन्हें दंडवत प्रणाम करने के उपरांत या प्रार्थना की कि आप कोई ऐसा उपाय कीजिए जिसे संपूर्ण सृष्टि पुणे वृद्धि हो या सुनकर किस रूप शिव जी ने अपनी शक्ति विश्व रूप सहित चार पुत्रों को उत्पन्न किया उसके शरीर का रंग तथा वस्त्र आदि भी श्वेत ही थे उन चारों के नाम इस प्रकार है जत्ती मंडी शिखंडी तथा अर्ध मंडी किस रूप शिव जी ने अपने इस शिष्यों द्वारा योग शास्त्र को प्रगट किया उसे धर्म द्वारा मनुष्य आवागमन से छुटकारा निर्भय हो जाते हैं यह नारद इस प्रकार पांचो कप में शिव जी ने पांच अवतार धारण कीजिए यह सभी अवतार भक्तों को आनंद देने वाले हैं तथा उनकी कथा सुनने से दोनों लोक में सुख प्राप्त होता है

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Brahma Ji said, O Narada, now I will narrate to you the story of the five incarnations of Lord Shiva. First of all, he gave me the power to create the universe and then he gave me the knowledge of Dadu province. Then in each cup, he kept preaching me, by which I created the universe. You listen to the story of those incarnations carefully. O Narada, when the 19th cup named Shwet Lohit came, I thought that I should create the universe. Then I meditated on Lord Shiva. At that time, Lord Shiva appeared in the form of a child with his four disciples from the Shwet Lohit clan and was looking at me with great kindness. At that time, after seeing him, I thought in my mind that who is this child. Then by the grace of Lord Sadashiv, I got the knowledge that this child is none other than Param Brahma Shiv Ji. At that time, while praising him, I said with folded hands, Lord, who else is as kind as you, now give me such a power by which I can create the universe. O Nath, please send me this boon that your devotion should not go away from my heart even for a moment and I should not have any kind of hatred in creating the universe. On hearing my prayer, Shivji said Vastu and then he said, O Brahma, you believe in my feet, that is why I have appeared and given you my darshan. My name is Sapt Jata and I will propagate yoga. O Narada, saying this, Shivji produced four boys from his body. The color of all their bodies was white. They became famous by the name of disciples. To reveal the method of yoga, a group of disciples was formed. Their names are Sandeep, Sadhan, Vishwanath and Umang. Through these four disciples, Shivji revealed yoga to the world. O Narada, the story of the second incarnation of Lord Shiv is as follows. When I was able to walk in the 20 named Tatkarap, at that time I was of red color. At that time I was wearing red clothes and red garland. Today, when I meditated on Lord Sadashiv with the desire to create the universe, he appeared in the form of a boy wearing red clothes, red eyes and red ornaments. At that time I gave him the name Bamdev, praised and bowed down and prayed that Lord, please bless me so that I can be capable of creating the universe. Hearing this, Shiv Ji in the form of a child had said that he was a young boy and his four disciples were of red colour. They were named Viraj, Vivah, Vishwa and Vishwa Bhavana. Dadu Pranshu established Yoga along with his four disciples. The story of the third incarnation of Narad is that when I found a raisin named Asha, then I meditated on Shiv Ji with the desire to create the universe. At that time Shiv Ji appeared in front of me wearing yellow clothes, ornaments and scholarship. When I meditated and recognized him, Shiv Ji chanted Gayatri and praised him in many ways. He prayed that you give me the power to create the universe. Then Shiv Ji named Tatpurush created four disciples from his body who were wearing yellow clothes and ornaments and the colour of their bodies was also yellow. Through him, Shiv Ji created Yoga Shastra in the entire world. The story of the fourth incarnation of Narad is that when one year of Divya Shastra passed for Pitvaasha and a person named Pari Vrat came to him with the desire to create the universe. With the desire of doing this, I meditated on Lord Shiva and then he appeared in the form of a child wearing black clothes, Yagyopaati, crown and ashes. When I recognized him by meditating, I came to know that he is the horse incarnation. I praised him and bowed down to him and said, O Lord, please give me the power to create the universe. At that time, that fierce incarnation Lord Shiva replied to me with a tathastu. O Brahma, this form of mine will remove the sins and our mantra will accomplish all your tasks. Saying this, he created four disciples from his arms who were similar to him in themselves. Then he made the fierce yoga famous in the world, by which all living beings are said to be the same. O Narada, the story of the fifth incarnation is like this that when the 23rd incarnation of Lord Shiva came, then I meditated on Lord Shiva to create the universe and on my prayer, first of all, the world form Bhabhi appeared. His all clothes were with ornaments and the color of his body was also white. Then, adorned with the same type of clothes, ornaments and description, Lord Sada Shiva also appeared. By meditating, I came to know that his name is Nishan and I bowed down to him. After paying obeisance or prayed that you should do such a remedy which would increase the youth of the entire creation or on hearing this, Shiv Ji along with his power Vishwa Roop created four sons, the color of their bodies and clothes etc. were also white, the names of all the four are Jatti Mandi, Shikhandi and Ardha Mandi, in which form Shiv Ji revealed Yoga Shastra through his disciples, through that religion, humans get freedom from the cycle of birth and death and become fearless, this is Narada, in this way Shiv Ji took five incarnations in all the five forms, all these incarnations give joy to the devotees and by listening to their tales, one gets happiness in both the worlds.

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