ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद शिवजी से यह कथा सुनकर विष्णु जी को अत्यंत प्रसन्नता हुई इस समय बड़े जोर से घटा बजाने का शब्द सुनाएं हिंदी उसे शब्द को सुनकर शिवजी ने नंदीश्वर को या आज्ञा दी कि तुम जाकर अभी यह पता लगाओ कि यह घंटे का शब्द कहां से आ रहा है जो लोग घंटा बजाते हैं वह मुझे अत्यंत प्रिय है और मैं उसकी संपूर्ण मनोकामना को सिद्ध करता हूं यह सुनकर नंदेश्वर उसे स्थान पर पहुंचे जहां वह घंटा बजा रहा था तदुपरांत उन्होंने लौट कर शिवजी से यह कहा कि हे प्रभु आपके श्रृंगार मंडप में उत्सव हो रहा है और वहां बैठे हुए आपके भाग तक घंटा बज रहे हैं यह सुनकर शिवाजी अत्यंत प्रसन्न हो संपूर्ण सभा सहित उसे स्थान पर जा पहुंचे वह स्थान रंग मंडप था जो संसार में श्रृंग मंडप के नाम से विख्यात है वहां जाकर शिवजी गिरजा सहित पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ गए हे नारद उसे समय शिव जी ने अपना दाहिना हाथ उठाकर विष्णु जी के द्वारा सब लोगों को यह सूचित किया कि विश्वनाथ नमक हमारा यह लिंग परम ज्योति स्वरूप तथा संपूर्ण आनंद मंगलम को प्रदान करने वाला है इस अवधि मुक्त तथा मुक्ति द भी कहा जाता है विशेश्वर के समान तीनों लोक में अन्य कोई लिंग नहीं है तीनों लोक में विशेश्वर लिंग मलिक तथा काशीपुरी यह तीन वस्तुएं ही स्वरुप है इतना कह कर मलिक तथा काशीपुर यह तीन वस्तुएं ही कर रूप है इतना कहा कर शिवजी तथा गिर जाने स्वयं उसे विश्वेश्वर लिंग का पूजन किया तदुपरांत वीरभद्र और गणपति ने उसकी पूजन की इस प्रकार सब लोग ने उसे लिंग का पूजन किया उसे समय बड़ा आनंद और उत्सव हुआ आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी और ऋषि मुनि वेद मित्रों द्वारा स्तुति करने लगे उसे समय वेद और पुराण शरीर धारण कर वहां आए उन्होंने शिव तथा गिरजा की बहुत प्रकार से विनती की दादू प्राण विष्णु आदि सब देवताओं ने भी उसकी बहुत प्राप्त ना कि उसे समय शिवजी और गिरजा ने अत्यंत प्रसाद न होकर सब लोगों की ओर अपनी कृपा दृष्टि से देखा जिसके कारण सभी के मनोरथ पूर्ण हो दादू प्राण शिवजी गिर जाता था अपने पुत्रों सहित सबके देखते-देखते अंतर ध्यान होकर विश्वनाथ लिंग में प्रविष्ट हो गए हे नारद शिवजी के उसे चरित्र को कोई भी प्राणी नहीं जाना सका इस प्रकार शिवजी लिंग स्वरूप होकर काशी में स्थित रहे और शरीर से काशी में जाकर निवास करने लगे इस आचार्य को देखकर सब लोग को बड़ा को तो हाल हुआ ताड़ूपरान अन्य सब देवता भी अपने-अपने वंश को काशी में स्थापित करके अपने-अपने लोग को चले गए शिव और गिरजा का यह चरित्र संपूर्ण मनोकामना को सिद्ध करने वाला है जो मनुष्य इसे पढ़ना सुनता अथवा दूसरों को सुनता है उसके हृदय से शिवजी की प्रति उत्पन्न होती है और भगवान सदाशिव गिरजा सहित उसके ऊपर अत्यंत कृपा रखते हैं
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Brahma Ji said, O Narada, Vishnu Ji was very pleased to hear this story from Shiva Ji. At this time, he made him play the sound of bell ringing very loudly. On hearing that sound, Shiva Ji ordered Nandishwar to go and find out from where this sound of bell is coming. Those who ring the bell are very dear to me and I fulfill all their wishes. On hearing this, Nandishwar reached the place where he was ringing the bell. Thereafter, he returned and told Shiva Ji that O Lord, a festival is going on in your Shringar Mandap and while sitting there, bells are ringing till your feet. On hearing this, Shiva Ji became very pleased and reached that place along with the entire assembly. That place was Rang Mandap, which is famous in the world as Shring Mandap. Going there, Shiva Ji sat facing east along with the church. O Narada, at that time, Shiva Ji raised his right hand and informed everyone through Vishnu Ji that our Linga named Vishwanath is the ultimate form of light and gives complete happiness and auspiciousness. It is also called Mukt and Mukti Da in this period. Like Visheshwar, all three There is no other linga in the world. In all the three worlds, Visheshwar Linga, Malik and Kashipuri, these three things are the form of the Linga. Saying this, Malik and Kashipuri, these three things are the form of the Linga, saying this, Shivji and Gir himself worshipped the Visheshwar Linga. Thereafter Veerbhadra and Ganapati worshipped it. In this way, everyone worshipped the Linga. There was great joy and celebration at that time. Flowers started raining from the sky and sages and saints started praising the Vedas and Puranas. At that time, Vedas and Puranas came there in human form. They prayed to Shiv and Girija in many ways. Dadu Pran, Vishnu and all the gods also received it very well. At that time, Shivji and Girja looked at everyone with their kind eyes, due to which everyone's wishes got fulfilled. Dadu Pran Shivji fell down and in front of everyone's eyes, along with his sons, in meditation, entered the Vishwanath Linga. Oh Narada, no creature could know the character of Shivji. In this way, Shivji took the form of Linga and stayed in Kashi and went to Kashi in his body and started living there. On seeing the Acharya, all the people were very happy and all the other gods of Tadupara also established their clans in Kashi and went to their respective places. This story of Shiva and Girija is the fulfiller of all wishes. The person who reads and listens to it or listens to it from others, the image of Shiva arises in his heart and Lord Sadashiv showers his blessings on him along with Girija.
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