ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद हम देवताओं की स्तुति सुनकर शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए उन्होंने सब लोगों को इच्छित वरदान दिए दादू प्रांत उन्हें मुझे तथा विष्णु जी को अपने स्वामी बैठ कर यह कहा कि तुम्हारा सामान हमारा प्रिय हमने कोई नहीं है आप तुम्हारी जो इच्छा हो वह व हमसे मांग लो यह सुनकर विष्णु जी ने प्रणाम करते हुए कहा हे प्रभु हम यही चाहते हैं कि हमारे हृदय में आपकी भक्ति का सदैव निवास रहे शिवजी में यह सुनकर एवं वास्तु कहा था दो प्राण उन्होंने काशी की महिमा वर्णन की फिर मुक्त मंडल की वह कथा सुनाई जहां महानंद नामक ब्राह्मण को मुक्ति प्राप्त हुई थी उसे स्थान का दूसरा नाम कुक्त मंडल भी है सो जी बोले है ऋषियों या वृत्तांत सुनकर नारद जी ने ब्रह्मा जी से कहा है पिता उसे स्थान का नाम कुकुट मंडल किस प्रकार हुआ और महानंद ने वहां किस प्रकार मुक्ति पाई यह कथा आप मुझे सुनने की कृपा करें यह सुनकर ब्रह्मा जी बोले हे नारद जब शिवजी ने कुक्त मंडल का नाम लिया उसे समय विष्णु जी ने उसकी प्रार्थना करते हुए यह कहा हे प्रभु मुझे बताएं कि कूकाटमंडल तीनों लोक में सुखदायक किस प्रकार होगा उसे समय शिव जी ने उत्तर दिया है विष्णु आगे जब द्वापर युग आएगा उसे समय यहां महानंद नामक एक ब्राह्मण उत्पन्न होगा वह ब्राह्मण ऋग्वेद का पंडित होगा और किसी से दान आदि न लगा कुछ समय पश्चात जब वह करुणा अवस्था को प्राप्त होगा और उसके पिता की मृत्यु हो जाएगी तब वह कामदेव की वशीभूत हो एक अन्य जाति की स्त्री को अपने घर में रखकर उसके साथ भोग विलास करेगा और वेद के प्राचीन मार्ग को त्याग देगा वह उसे स्त्री के अधीन होगा मध्य आदि का पान करेगा वह विष्णु भक्तों को ध्यान देकर स्वयं भी वैष्णव बन जाएगा तथा शिव भक्तों की निंदा करेगा फिर कुछ दिन बाद वह शिव भक्त बनाकर वैष्णवन की निंदा करना आरंभ करेगा हे विष्णु वह अपने मस्तक में तिलक लगाएगा श्वेत वेस्टन को धारण करेगा तथा कंठ में माला पहनकर भूत का प्रदर्शन करेगा वह देखने में तो निर्मल और साजन होगा परंतु हृदय का अत्यंत मालिन और दुर्जन रहेगा कुछ दिन पश्चात एक पर्वत निवासी तीर्थ स्थान करने के लिए यहां आएगा उसके पास दान करने के लिए बहुत धन होगा वह चक्र तीर्थ में स्नान करके यह बात कहेगा कि मैं जाति का चांडाल हूं परंतु धनवान हूं मैं अपने धन को दान में देना चाहता हूं यदि कोई मेरा दान देने के लिए तैयार हो तो वह मेरे समीप आए उसकी बात सुनकर सब लोग उसे मनाना नमक भूत ब्राह्मण की और उंगली उठाकर यह उत्तर देगा कि तुम्हारा दान यह व्यक्ति ले सकता है जब चांडाल महानंद के पास जाकर दान ग्रहण करने के लिए प्रार्थना करेगा उसे समय महानंद उसे यह उत्तर देगा कि तुम अपने साथ जितना धन लो यदि वह सब मुझे देना स्वीकार करो तथा अन्य किसी को उसे धान में से कुछ भी ना दो तो मैं तुम्हारा दान लेने को तैयार हूं यह सुनकर वह चांडाल उत्तर देगा कि मेरे पास जो भी धन है वह शिवजी की प्रशंसा से निर्मित है इस काशी में रहने वाले निज व्यक्ति भी शिवजी के अंश है अस्तु मैं तुम्हें शिव जी के समान जानकर अपना संपूर्ण धन देना स्वीकार करता हूं हे विष्णु यह कहकर वह चांडाल महानंद को दान देकर अपनी घर को लौट आएगा उसे समय से सब लोग महान को चांडाल मन लगेंगे उसे राजा के कारण महानंद बहुत दिनों तक अपने घर में छिपा रहेगा तदुपरांत अपनी स्त्री को साथ लेकर काशी छोड़ तिल के देश को चल देंगे जिस समय वह मार्ग में जा रहा होगा उसे समय जल में एक तो को ढूंढ उसे पकड़ लेगा और इसका स्वर्गवास सचिन कर या रहेगा कि अब हम तुम्हें जान से करने वाले हैं आज तो तुम जिनका स्मरण करना चाहो कर लो फागुन के यह वचन सुनकर महानंद को श्रेष्ठ बुद्धि की प्राप्ति होगी उसे समय यह विचार करेगा कि मैं इस धन को लेकर अपने धर्म को भी खो दिया और आज मृत्यु के समय काशीपुरी को भी खो बैठा हूं इस प्रकार चिंता करते हुए वह अपने वंश का स्मरण करेंगे तब प्राण भाग उसे मार डालेगा महानंद को करने के पश्चात हुए करोंथा कहां से का महत्व सुनकर यहां आएंगे और मुक्ति मंडप के समय पर स्थित होगा स्थित गंगा स्नान तथा शिव कथा श्रवण करने के कारण निर्मल हो जाएगा उसे समय मेरा कृपा से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी तब से इस स्थान का नाम कुटक मंडप पड़ जाएगा
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Brahma Ji said O Narada, on hearing the praise of us gods, Shiv Ji became very happy. He gave the desired boons to all the people. Dadu Pranam, to him, me and Vishnu Ji, sitting as his master, said that none of us are dearer than you. Whatever you wish, ask us for it. On hearing this, Vishnu Ji bowed down and said O Lord, we only want that your devotion always resides in our hearts. On hearing this, Shiv Ji said to Vastu, give him two lives. He described the glory of Kashi and then narrated the story of Mukt Mandal where a Brahmin named Mahanand got salvation. On hearing this, Narad Ji said to Brahma Ji, father, how did that place get the name Kukut Mandal and how Mahanand got salvation there, please let me hear this story. On hearing this, Brahma Ji said O Narada, when Shiv Ji took the name of Kukut Mandal, Vishnu Ji while praying to him said O Lord, tell me how Kukat Mandal will be soothing in all the three worlds. On hearing this, Vishnu Ji replied that when Vishnu further said in Dwapar The age will come when a Brahmin named Mahanand will be born here. That Brahmin will be a scholar of Rigveda and will not accept donations from anyone. After some time when he will reach the state of Karuna and his father will die, then under the influence of Kamadev, he will keep a woman of another caste in his house and will indulge in pleasures with her and will abandon the ancient path of Vedas. He will be under the control of that woman and will drink alcohol etc. He will become a Vaishnav by paying attention to the devotees of Vishnu and will criticize the devotees of Shiva. Then after some days, he will become a devotee of Shiva and start criticizing the Vaishnavites. O Vishnu, he will apply Tilak on his forehead, will wear white clothes and will wear a garland around his neck and will show off as a ghost. He will look pure and gentle but will be very impure and wicked at heart. After some days, a mountain dweller will come here to visit the pilgrimage. He will have a lot of wealth to donate. He will bathe in Chakra Tirtha and say that I am a Chandal by caste but I am rich. I want to donate my wealth. If anyone is ready to donate me, he should come to me. He will listen to his words. Hearing this, everyone will try to convince him. The ghost will point his finger towards the Brahmin and reply that this person can accept your donation. When the Chandal will go to Mahanand and pray for the donation, Mahanand will reply that whatever wealth you have with you, if you agree to give it all to me and do not give anything from the rice to anyone else, then I am ready to accept your donation. Hearing this, the Chandal will reply that whatever wealth I have is made from the praise of Lord Shiva. The people living in Kashi are also the parts of Lord Shiva. Therefore, considering you as Lord Shiva, I accept to give you all my wealth. O Vishnu, saying this, the Chandal will return to his home after donating to Mahanand. In time, everyone will consider Mahanand as a Chandal. Due to the king, Mahanand will hide in his house for many days. Thereafter, taking his wife along, he will leave Kashi and go to the land of Til. When he will be going on the way, a person will find him in the water and catch him and send him to heaven. He will say that now we are going to kill you, today you can remember whomever you want. On hearing these words of Mahanand, he will get superior wisdom. He will think that by taking this wealth I have lost my religion as well and today at the time of death I have lost Kashipuri as well. Worrying like this, he will remember his lineage, then the life force will kill him. After doing this Mahanand will come here after hearing the importance of Karontha, and at the time of Mukti Mandap, it will become pure due to bathing in the Ganga and listening to the Shiv Katha. At that time, by my grace, he will attain salvation. From then on, this place will be known as Kutak Mandap.
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