श्री शिव महापुराण कथा छव खंड अध्याय 22



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद प्रातः काल होने पर जब आनंद तथा मुंडन नमक शिव जी के दो गणों ने दो नए शिवलिंग देखे तो उन्होंने अत्यंत प्रसन्न होकर शिवजी के पास जा उन्हें सब समाचार का सुनाया हुए बोले हे प्रभु वरुण नदी के तट पर किसी धनवान व्यक्ति ने आपके दो शिवलिंग स्थापित किए हैं कल संध्या तक उसे स्थान पर कोई मंदिर नहीं था परंतु इस समय हम जब वहां गए तो हमने उसे देखा है यह सुनकर शिवजी गिरजा सहित रात पर चढ़कर वरुण नदी के तट पर जा पहुंचे और उन्होंने हिमाचल द्वारा बनाए गए हुए उसे सुंदर शिवालय को देखा यद्यपि वह मंदिर एक ही रात्रि में बना था किंतु इतना सुंदर था कि उसके समान शिवालय काशीपुरी में दूसरा न पंजाब में गिर जा सहित उसे शिवालय के भीतर पहुंचे तो वहां चंद्रकांत मणि द्वारा निर्मित शिवलिंग को देखकर उन्हें यह इच्छा उत्पन्न हुई कि हम इस मंदिर के बनाने वाले के नाम से परिचित हो इतने ही में उसकी दृष्टि उसे पति का पर जा पड़ी जो हिमाचल ने लगाई थी उसे पढ़कर शिव जी गिरजा बोले है प्रिया देखो यह हंसी वाले तुम्हारे पिता ने बनवाया है वह तुम्हें देखने के लिए यहां पधारे होंगे परंतु भेंट का उत्तम अवसर न पाकर बिना मिले ही इस शिवलिंग की स्थापना करके चले गए तुम्हारे पिता परम धन्य है हे नारद शिव जी के मुख से यह वचन सुनकर गिरिजा ने अत्यंत प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा हे प्रभु मेरे पिता में इस लिंक को वरुण के तट पर स्थापित किया है अतः मेरी या अभिलाषा है कि आप इसमें रात दिन पूरा वास में स्थित रहे तथा यह लिंगेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो जो मनुष्य इस लिंग की पूजा करें वे दोनों लोगों में आनंद प्राप्त करें तथा उसकी सभी मानों अभिलाषाएं पूर्ण हो गिरजा किया प्रार्थना सुनकर शिवजी ने एवं वास्तु कहा था दो प्रांत हुए वहां से चलकर इधर-उधर भ्रमण करते हुए काम राज के पास पहुंचे वहां कामराज से उत्तर की ओर उन्होंने एक अन्य शिवलिंग को देखा गिरिजा ने उसे देखकर शिवजी से कहा है स्वामी इस लिंग का प्रकाश आकाश तक फैला हुआ है और यह एकदम नवीन दिखाई देता है आप कृपा करके इसकी उत्पत्ति एवं प्रभाव का मुझे वर्णन करें यह सुनकर शिवजी ने उत्तर दिया है गिरजे तुम्हारे पिता हिमाचली हां अपने साथ बहुत से रत्न आदि लेकर आए थे हमारा लिंग स्थापित करने के पश्चात उनके पास जो धन बच रहा है उसे हुए यही फेक गए परंतु उसके पुणे के प्रताप से हुए फेक हुए रत्न आदि है खतरा होकर शिवलिंग के रूप में परिवर्तित हो गए हैं इस शिवलिंग का नाम रत्नेश्वर होगा क्योंकि यह रतन द्वारा निर्मित है है प्रिया हमारे अथवा तुम्हारे लिए जो मनुष्य भक्ति पूर्वक किसी का ध्यान का संकल्प करता है तो उसे उसका फल भी उसी प्रकार प्राप्त होता है आप तुम्हें यह उचित है कि तुम्हारे पिता जी स्वर्ण को यहां छोड़ गए हैं वह अभी तक यहां इधर-उधर फैला हुआ है उसी के द्वारा तुम्हारा इस लिंक का शिवालय बनवाओ क्योंकि शिवालय बनवाना देने से जो करम अपना आर जाते हैं वह भी पूर्णतः को प्राप्त होते हैं लिंग की स्थापना से प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति होती है और कलश चढ़ाने से भी वैसा ही फल मिलता है ध्वजा स्थापित करने का यह फल देता है की ध्वजा में जीतने पर वह होते हैं उतने कप पर्वत ध्वजा स्थापित करने वाले मनुष्य कैलाश में निवास करता है तथा वायु के चलने पर जितने बार उसे ध्वज का वस्त्र हिलता है उतने वर्षों तक वह शिवलोक में वास करता है हे नारद शिवजी के मुख से यह वचन सुनकर गिर जाने गानों को बुलाकर रत्नेश्वर शिवलिंग का मंदिर बनवाने की आज्ञा दी तब सम एवं नदी आदि गणों ने हिमाचल द्वारा फेके गए स्वर्ण से एक सुंदर शिवालय बनवा दिया इस वाले को देखकर शिवजी एवं गिरिजा को अत्यंत प्रसन्नता हुई और उन्होंने गानों को अनेक वरदान दिया था दो प्राण गिरजा के कहने पर शिव ने रत्नेश्वर शिवलिंग को यह वार दिया कि जो प्राणी इस लिंग की पूजा करेगा उसे संपूर्ण शिवलिंग के पूजन का फल प्राप्त हो जाएगा तबीयत लिंग अनाड़ी रूप से प्रसिद्ध होगा यह नारद रस रत्नेश्वर शिवलिंग के सम्मुख नृत्य करके एक आर्थिक ने मुक्ति प्राप्त की भगवान सदा शिव एवं भगवती गिरिजा ने उसे चरित्र का स्मरण करने से आनंद प्राप्त होता है

TRANSLATE IN ENGLISH 

Brahma Ji said, O Narad, in the morning when Anand and Mundan, two followers of Shiv Ji saw two new Shivlings, they became very happy and went to Shiv Ji and told him all the news and said, O Lord, on the bank of Varun river, some rich man has installed two Shivlings of yours. Till yesterday evening, there was no temple at that place, but this time when we went there, we saw it. On hearing this, Shiv Ji along with Girja climbed the roof and reached the bank of Varun river and saw that beautiful Shivalaya made by Himachal. Although that temple was made in one night, but it was so beautiful that there was no other Shivalaya like it in Kashipuri or Punjab. When he reached inside the Shivalaya, on seeing the Shivling made by Chandrakant Mani, he felt the desire to know the name of the person who made this temple. At the same time, his eyes fell on the line of the line that Himachal had made, Shiv Ji said to Girja, "Priya, see, this Hansi has been made by your father. He must have come here to see you, but on not getting a good opportunity to meet you, he saw this Shivling without meeting you. After establishing it, he left. Your father is extremely blessed. O Narada. On hearing these words from Lord Shiva, Girija expressed her happiness and said, O Lord, my father has established this Linga on the banks of Varuna. Hence, my desire is that you reside in it day and night and it should be famous by the name of Lingeshwar. The person who worships this Linga should get happiness in both the worlds and all his desires should be fulfilled. On hearing the prayer of Girija, Lord Shiva and Vastu said that there were two provinces. From there, roaming here and there, they reached Kamaraj. There, to the north of Kamaraj, they saw another Shivling. On seeing it, Girija said to Lord Shiva, Swami, the light of this Linga is spread till the sky and it looks absolutely new. Please describe its origin and effect to me. On hearing this, Lord Shiva replied, O Lord, your father Himachali had brought a lot of gems etc. with him. After establishing our Linga, whatever wealth was left with him, he threw it here. But due to the power of Pune, the gems etc. that were thrown away got converted into Shivling. The name of this Shivling will be Ratneshwar because it is made of gems. Dear, for us or for you, the person who resolves to meditate on someone with devotion, he also gets the result in the same way. It is appropriate for you that your father has left the gold here, it is still scattered here and there, get this Shivling built with the same because by getting the Shivling built, the deeds that are left behind are also fully achieved. By establishing the Linga, one gets everything and by offering the Kalash, the same result is obtained. Establishing the flag gives the result that if the flag is victorious, then that many mountains are there. The person who establishes the flag lives in Kailash and the number of times the cloth of the flag moves when the wind blows, he lives in Shivlok for that many years. O Narada, after hearing these words from the mouth of Shivji, he called the Gir Ganas and ordered them to build the temple of Ratneshwar Shivling. Then the Ganas like Sam and Nadi etc. built a beautiful Shivling with the gold thrown by Himachal. Seeing this, Shivji and Girija were very happy. And he had given many boons to the songs. On the request of two Prana Girija, Shiva gave this boon to the Ratneshwar Shivling that whoever worships this ling will get the fruits of worshipping the entire Shivling. This ling will become famous in a unique way. This Narada Ras was a great man who attained salvation by dancing in front of Ratneshwar Shivling. Lord Sada Shiv and Bhagwati Girija blessed him. One gets bliss by remembering his character.

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