श्री शिव महापुराण कथा सातवां खंड अध्याय 2



इतनी कथा सुनकर नारद जी बोले हे पिता आप संसार में शिवजी के सबसे बड़े भक्त हैं आज तू मेरी यह इच्छा है कि मैं आपके द्वारा शिवजी क्या अवतार का वर्णन विस्तार सहित सुनाओ आप मेरी इस अभिलाष को पूर्ण कीजिए नारद के मुख से यह शब्द सुनकर ब्रह्मा जी प्रेम मगन होकर कहने लगे हे नारद माय शिव जी की अन्य लीलाओं सुनाता हूं ध्यान से सुनो मुझे तथा विष्णु जी को शिव जी ने ही उत्पन्न किया है जिस समय उन्होंने मुझे तथा विष्णु जी को उत्पन्न करके यह आज्ञा दी कि तुम दोनों संसार की उत्पत्ति तथा पालन करो उसे समय हम दोनों ने शिवजी से यह कहा हे प्रभु आप भी अवतार लेकर प्रलय का कार्य स्वयं करना स्वीकार करें यह सुनकर शिव जी ने मेरी महू के बीच भाग से आपने आंसर रूप में अवतार लिया शिवजी के उसे अवतार का नाम महेश हुआ हर हुए कैलाश पर्वत पर निवास करने लगे हे नारद शिवजी तथा महेश में किसी प्रकार का अंतर नहीं है हुए पापों से रहित तथा परम दयालु हैं कोई अपने भक्तों का मनोरथ पूर्ण करते हैं तथा उनके ऊपर सदैव कृपा बनाए रखते हैं उन्होंने ही साबरी सब्र तथा मत को मुक्त किया है उन्होंने राजा भद्राक्ष के कासन को दूर किया उन्होंने अपने करोड़ पापी भक्तों को मुक्ति प्रदान की तथा भक्तों के कल्याण में निर्मित करोड़ अवतार धारण किया उन्होंने नंद वैश्य तथा की रात को मुक्ति देकर अपना द्वारपाल बनाया तथा ब्रिंग का स्वरूप धारण कर दारू कांड में अनेक प्रकार के चरित्र किया उन्होंने मुनियों को क्रोधित कर स्वयं को श्राप दिलाया तभी से संसार में शिवलिंग की पूजा प्रचलित हुई हे नारद खांसी के राजा की सुंदरी नामक एक पुत्री शिवालय में झाड़ू दिया करती थी इसलिए वह मुक्ति को प्राप्त हुई शिवजी ने एक बड़े भारी चोर को अपनी कृपा से तार दिया तथा रावण को तीनों लोक का राज प्रदान किया जिस समय रावण ने ब्राह्मणों को दुख पहुंचाना आरंभ किया उसे समय शिव जी ने रावण से अपने तेज को ले लिया और रामचंद्र जी को अपना भर देकर रावण को मरवा डाला उन हैं शिवजी ने राजा श्वेत के निर्माता कल का नाश किया तथा राजा रक्षक को उसकी पत्नी सहित मुक्ति प्रदान कर तीनों लोक में पांच अक्षरी मंत्र की महिमा प्रतिष्ठित किया शिवजी ने राजा मित्र राष्ट्र पर कृपा किया वह अपने राज्य को छोड़कर बैठा था जो शिवजी की दया से वह अपनी स्त्री सहित मुक्त हुआ चंद्रसेन तथा श्री गर्ग ने त्रयोदशी के तीन प्रयोग 10 प्राप्त करके शिवजी की कृपा द्वारा मुक्ति प्राप्त की और इसी व्रत द्वारा धाम गुप्त भी मुक्त हुआ

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After listening to this story, Narad ji said, O father, you are the biggest devotee of Lord Shiva in the world. Today, I wish that you narrate the description of Lord Shiva's incarnation in detail. Please fulfill this desire of mine. After listening to these words from Narad's mouth, Brahma ji became engrossed in love and said, O Narad, I am telling you about the other deeds of Lord Shiva. Listen carefully. Lord Shiva has created me and Lord Vishnu. When he created me and Lord Vishnu and ordered that both of you should create and nurture the world, at that time both of us said to Lord Shiva, O Lord, you should also take incarnation and accept to do the work of destruction yourself. After listening to this, Lord Shiva incarnated in the form of a child from the middle of my head. The name of that incarnation of Lord Shiva was Mahesh. He started living on Mount Kailash. O Narad, there is no difference between Lord Shiva and Mahesh. He is free from sins and is extremely kind. He fulfills the wishes of his devotees and always keeps his grace on them. He has freed patience and perseverance. He has removed the curse of King Bhadraaksh. He gave salvation to crores of his sinful devotees and assumed crore avatars for the welfare of his devotees. He gave salvation to Nand Vaishya and Raat and made them his gatekeepers. He assumed the form of Bhring and played many characters in Daru Kand. He angered the sages and got himself cursed. Since then, the worship of Shivling became popular in the world. The king of Narad Khansi had a daughter named Sundari who used to sweep the Shiva temple. Hence, she attained salvation. Shivji saved a big thief by his grace and gave the kingdom of three worlds to Ravana. When Ravana started to trouble the Brahmins, Shivji took away his power from Ravana and gave his power to Ramchandra ji and got Ravana killed. Shivji destroyed the creator of King Shwet and gave salvation to King Rakshak along with his wife and established the glory of five-lettered mantra in all the three worlds. Shivji showed mercy on King Mitra Rashtra. He had left his kingdom and was sitting there. He was freed along with his wife by the mercy of Shivji. Chandrasen and Shri Garg got three prayogs of Trayodashi and got Shivji's blessings. He attained salvation by grace and Dham Gupt also got liberated by this fast

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