हे नारद जी समय भैरू ने गिरजा को खुद दृष्टि से देखा उसे समय गिर जाने उन्हें यह श्राप दिया है भैरव तुम मुझे साधारण मनुष्य की भांति को दृष्टि से क्यों देखते हो अतः तुम मनुष्य हो जाओ यह सुनकर भाइयों ने भी गिरजा को यह श्राप दिया कि तुम मेरी तरह मनुष्य बनो तब मैं वहां तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा इस शराब के कारण शिवजी ने पृथ्वी पर अवतार लिया उसे समय गिरजा का नाम शारदा हुआ और शिव महेश होकर प्रगति हुई है नारद महानंदा नामक वेश्या ने शिवजी की बड़ी भक्ति की थी तब शिवजी ने वेश्या का रूप धारण कर उसके दुख को दूर किया भद्र उसे नामक एक राजा रिंग नमक मुनि का शिष्य था तथा शिव जी का परम भक्त था शिवजी उसके समीप ब्राह्मण बनकर पहुंचे और उन्हें संपूर्ण कासन से रहित बनाया इस प्रकार आहट नामक एक भूल था जिसकी पत्नी का नाम आहुति था शिवाजी ने उसके लिए भी अवतार लेकर उन्हें कृतार्थ किया तब वह दोनों दूसरे जन्म मैं नल और दमयंती हुए यहां शिव ने हंस बनाकर उन दोनों में मेल कराया था यह नारद राजा मुनि के छोटे पुत्र ना भागने जब अपने भाइयों से राज का भाग नहीं पाया तब शिवजी ने कृष्ण दर्शन नमक अवतार लेकर उसे उसका भाग दिलाया दिया उसे समय राजा 17th लड़ाई में मर गय और उसकी गर्भवती रानी वन में भाग कर वहां एक पुत्र को जन्म देने के पश्चात स्वयं भी मृत्यु को प्राप्त हो गई और वह बालक रोता हुआ वही पढ़ रहा उसे समय शिव जी ने दया करके एक ब्रिंग का रूप धारण किया और एक स्त्री को यह उपदेश दिया कि वह उसे बालक का पालन करेगा जब वह बालक बड़ा हो गया तब शिव ने उसे उसके पिता का राज वापस दिलवा दिया इस प्रकार शिव ने इंद्र का अवतार लेकर उपमऊ नामक ब्राह्मण की परीक्षा ली तथा उसे सब पापों से रहित देखकर दोनों लोग में सुख प्रदान किया है नारद जी समय गिर जाने वन में जाकर कठिन तप किया और सब देवता शिव जी की शरण में गए उसे समय शिवजी जटिल रूप धारण कर परीक्षा लेने के निर्माता गिरजा के पास जा पहुंचे और उन्होंने यहां वरदान दिया कि हम तुम्हारे साथ विवाह करेंगे तब उपरांत हुए नाटक का रूप धारण कर पर्वत राज हिमाचल के घर गए और उन्होंने अनेक प्रकार की लीलाएं की उन्होंने ब्रह्म रूप धारण कर हिमाचल की पत्नी महीना को भी बहुत भड़काया द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के रूप में भी शिव जी ने ही अवतार लिया था उन्होंने की रात बनाकर अर्जुन का दुख दूर किया तथा वरदान देकर कौरवों को नष्ट कराया उन्हें शिवजी ने गोरखनाथ रूप लेकर योग शास्त्र को प्रसिद्ध किया और जोगियो के धर्म को संसार में स्थित किया उन गोरखनाथ रूपी शिव जी के दो प्रधान शिष्य थे उसमें से एक का नाम गोपीचंद था हे नारद जी समय 18वीं लोग ने सब प्रकार सोच को त्याग कर धर्म को भ्रष्ट कर देना चाह तथा संसार में आदिवासी वार्ड का प्रचार किया उसे समय शिव जी ने एक ब्राह्मण के यहां शंकराचार्य नाम से अवतार लिया उन्होंने धर्म का नाश किया तथा आदित्य एवं सन्यास माता का प्रचार किया सूर्य द्वारा जो ज्योतिर्लिंग स्थापित किए गए हुए सभी शिवजी के ही अवतार हैं शिवजी के चित्रों का वर्णन करने तथा सुनने से बहुत सुख प्राप्त होता है हे नारद मैं संक्षेप में तुमसे शिव जी के सब अवतारों की यह कथा कही है
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O Narad Ji, Bhairu himself saw Girja with his eyes. Bhairav, why do you look at me like an ordinary man, so you become a human. Hearing this, the brothers also cursed Girja that you become a human like me, then I will take birth there as your son. Due to this, Shiv Ji took incarnation on earth. At that time Girja's name was Sharda and Shiv became Mahesh. A prostitute named Narad Mahananda did great devotion to Shiv Ji, then Shiv Ji took the form of a prostitute and removed her sorrow. A king named Bhadra was a disciple of sage Ring and was a great devotee of Shiv Ji. Shiv Ji reached him in the form of a Brahmin and made him free from all the sins. In this way, there was a fool named Ahat whose wife's name was Ahuti. Shiv Ji also fulfilled his wish by taking incarnation for him. Then both of them became Naal and Damyanti in the second birth. Here Shiv united them by making them swans. This Narad was the younger son of King Muni who could not run away from his brothers and could not escape the kingdom. Then Shivji took the form of Krishna Darshan and got him his share. At that time the king died in the 17th battle and his pregnant queen fled to the forest and after giving birth to a son, she herself died and the child was crying and lying there. At that time Shiv ji took pity and took the form of a bear and advised a woman that he would take care of her child. When the child grew up, Shiv got his father's kingdom back. In this way Shiv took the form of Indra and tested a Brahmin named Upmau and seeing him free from all sins, he gave happiness to both the people. Narad ji went to the forest and did hard penance and all the gods took refuge in Shiv ji. At that time Shiv ji took the form of Jatil and reached the creator of the temple to test him and here he gave the boon that I will marry you. After that he took the form of a drama and went to the house of mountain king Himachal and he performed many types of plays. He took the form of Brahma and provoked Himachal's wife Mahina a lot. Shiv ji also took the form of Dronacharya's son Ashwatthama. He did By creating night, he removed the sorrow of Arjun and by giving a boon, destroyed the Kauravas. Shiva took the form of Gorakhnath and made the Yoga Shastra famous and established the religion of Jogis in the world. Shiva in the form of Gorakhnath had two main disciples, one of them was named Gopichand. Oh Narada, at the time of 18th century, people wanted to corrupt the religion by abandoning all kinds of thinking and propagated tribal religion in the world. At that time, Shiva took incarnation in the house of a Brahmin as Shankaracharya. He destroyed the religion and propagated Aditya and Sanyas Mata. All the Jyotirlingas established by the Sun are incarnations of Shiva only. One gets immense pleasure by describing and listening to the pictures of Shiva. Oh Narada, I have told you in brief this story of all the incarnations of Shiva.
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