नारद जी ने कहा हे पिता ब्राह्मणों तथा शिवजी में जो वार्तालाप हुआ अब आप उसका वर्णन करने की कृपा कीजिए और यह भी बताइए कि वह ब्राह्मण संख्या में कितने थे यह सुनकर ब्रह्मा जी बोले है नारद जी समय शिवाजी काशी को छोड़कर मधुरचल पर्वत पर चली गई उसे समय काशी के ब्राह्मणों ने अत्यंत दुखी होकर क्षेत्र संन्यास ले लिया था हुए दिन रात शिवजी का स्मरण करते और उन्हीं की प्रतीत में मांगना रहते थे वह अपने दंड द्वारा पृथ्वी को खोज कर वर्षों की मूल को निकलने और उसी को खाकर अपना जीवन निर्वाह करते थे जिस स्थान से हुई जड़ों को होते थे वह स्थान उसे समय बाद एक जून के रूप में परिवर्तित होकर और उसका रिनीत के नाम से प्रसिद्ध हुआ तब उसी स्थान पर उन ब्राह्मणों ने एक शिवलिंग की स्थापना की जिसके दर्शन से संपूर्ण मनोरथ सफल होते हैं यह नारद यह ब्राह्मण प्रतिदिन शिवलिंग की उपासना करते रुद्राक्ष की माला पहना और शरीर में भस्म लगाते थे वह साथ रोटी का जाप करके शिव जी के पूजन किया करते थे तथा उन्हें की स्मरण के अतिरिक्त अन्य किसी से कुछ प्रयोजन नहीं रखते थे उन्होंने अपने-अपने स्थान पर अनेक शिवलिंगों की स्थापना की थी जब उन ब्राह्मणों ने यह शुभ समाचार सुना की शिवजी अपने परिवार सहित फैंसी में पधार रहे हैं तो वह अत्यंत प्रसन्न होकर शिवजी का दर्शन करने के लिए आए उसकी संख्या इस प्रकार थी डंडा घाट से पांच सहस्त्र मंद कहानी तीर्थ से 10 सहस्त्र हस्त क्षेत्र से 900 ऋण मोचन तीर्थ से 12 शास्त्र दूर से आज से भी 12 सहस्त्र का पालमोचन तीर्थ से 16 सहस्त्र रहे रावत आज से 300 मदन कुंड से 200 गंधर्व तीर्थ सेनन सो बृहस्पति तीर्थ से तीन सौ 90 33 से 150 ध्रुव तीर्थ से 600 प्रीत कुंड से 100 उर्वशी हाथ से 100 मृत तीर्थ से 1300 यक्षिणी हद से 3100 पिसाच्चार मोदनकुंड से 16 00 मानसर से 300 वास्तविक हद से एक आयुक्त सेट हद से 800 गौतम हद से 99 दूर तीर्थ से 1100 तथा गंगा के तट से 555 ब्राह्मण आए
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Narad Ji said, O father, please narrate the conversation that took place between the Brahmins and Lord Shiv, and also tell me how many Brahmins were there. On hearing this, Brahma Ji said, Narad Ji, when Lord Shiv left Kashi and went to Madhuchal mountain, at that time the Brahmins of Kashi became very sad and took up Sanyas. They used to remember Lord Shiv day and night and used to seek his blessings. They used to search the earth with their sticks and take out the roots of the trees and used to eat the same for their livelihood. The place from where the roots grew, after some time, got transformed into a jungle and became famous by the name of Rineet. Then at the same place, those Brahmins established a Shivling, by seeing which all wishes are fulfilled. This Narad, this Brahmin used to worship Shivling daily, wore a garland of Rudraksha and applied ashes on his body. He used to worship Lord Shiv by chanting the mantra of 'Saath Roti' and did not have any other purpose except remembering him. They had established many Shivlings at their respective places. When those Brahmins When they heard the good news that Lord Shiva is visiting Fansi with his family, they were very happy and came to see Lord Shiva. Their number was as follows: five thousand from Danda Ghat, 10 thousand from Mand Kahani Tirtha, 900 from Hasta Kshetra, 12 thousand from Rin Mochan Tirtha, 12 thousand from Aaj, 16 thousand from Palmochan Tirtha, 300 from Madan Kund, 200 from Gandharva Tirtha, Senan So, three hundred 90 from Brihaspati Tirtha, 150 from Dhruv Tirtha, 600 from Preet Kund, 100 from Urvashi Hath, 100 from Mrit Tirtha, 1300 from Yakshini Had, 3100 from Pisachar Modankund, 1600 from Mansar, 300 from Actual Limit, One Commissioner Set Limit, 800 from Gautam Limit, 1100 from 99 Shud Tirtha and 555 Brahmins came from the banks of Ganga.
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