हे नारद यह सब ब्राह्मण अपने हाथों में मांगलिक वस्तु लिए हुए थे यह सब जय जयकार करते हुए आए और शिव जी के दर्शन प्राप्त कर अत्यंत आनंद को प्राप्त हो गए उन ब्राह्मणों ने शंकर सूट पढ़कर शिवजी की स्तुति अत्यंत की तथा दंडवत प्रणाम करके अनेक आशीर्वाद दिए जिस समय शिव जी ने उनके कुशल पूछी उसे समय ब्राह्मणों ने यह उत्तर दिया है प्रभु आप कहां से छोड़कर चले गए तो हम सब लोग को अत्यंत दुख हुआ था और यहां रहकर आपका ध्यान धरते हुए आपके पुणे लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं हे नाथ इस काशी को तीन लोगों से नारी कहा गया है जो मनुष्य काशी में निवास करते हैं वह परम धन्य है इस प्रकार ब्राह्मणों ने कहां से किया अत्यंत प्रशंसा की इतना कथा सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद साथ बात तो यह है कि शिवजी और काशी में कोई अंतर नहीं है काशी शिवजी का ही स्वरुप है जो मनुष्य काशी में निवास करके शिवजी का भजन करता है उसे जैसा भाग्यवान अन्य कोई नहीं है अस्तु ब्राह्मण के मुख से काशी की प्रशंसा सुनकर शिवजी ने इस प्रकार कहा है ब्राह्मण तुम सब परम धन्य हो क्योंकि तुमने काशी सेवन द्वारा हमें अपने वश में कर लिया है काशी के प्रतीत भक्ति रखने के कारण तुम सब जीवन मुक्त हो गए हो जो लोग काशी के भागते हैं वह हमारे भी भक्त हैं और जो लोग दोनों के भक्त हैं उनकी तो सामान्य कोई कर ही नहीं सकता है हे ब्राह्मण ऑन तुम दोनों प्रकार से हमारे भक्त हो हमारी कृपा से तुम सदैव निर्भय हो काशी में हमारे अतिरिक्त यमराज की आज्ञा भी नहीं चल सकती काशी वासियों से हम कभी दूर नहीं रहते हैं जो लोग काशी में क्षेत्र संन्यास लेते हैं वह हमें अत्यंत प्रिय है आप तुम हमसे जो भी वरदान चाहे उसे मांग लो भगवान विश्वनाथ के मुख से ऐसे अमृत में वचन सुनकर वह सभी ब्राह्मण अत्यंत प्रसन्न हुए और बारंबार स्तुति करते हुए अपने दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहने लगे हे प्रभु यदि आप हम पर प्रसन्न है तो हम यही वरदान मांगते हैं की आप खांसी छोड़कर कहीं ना जाएं काशी में ब्राह्मणों का श्राप कि किसी पर फल दायक ना हो यह करने वालों को सूचित प्राप्त हुआ करें तथा यहां के निवासियों का अनेक चरणों में अत्यंत प्रेम बना रहे है स्वामी हम लोग ने यहां आपके जो लिंग स्थापित किए हैं उनमें आप शक्ति सहित निवास किया करें ब्राह्मणों की या प्रार्थना सुनकर शिव जी ने एवं वास्तु का आकार तदुपरांत अपनी दया दृष्टि द्वारा सबके दुख को दूर कर प्रेम पूर्वक विदा किया तब सब ब्राह्मण शिव जी से विदा होकर अपने अपने स्थान को लौट गए और भगवान विश्वनाथ का ध्यान धरते हुए उन्हें की पूजा में संलग्न हुए
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O Narada, all these Brahmins were carrying auspicious things in their hands. They all came chanting slogans and got immense joy after getting the darshan of Lord Shiva. Those Brahmins recited Shankar Sutra and praised Lord Shiva and gave him many blessings. When Lord Shiva asked about their well-being, the Brahmins replied that Lord, where did you leave us from? We all were very sad and we are staying here and meditating on you and waiting for your return to Pune. O Nath, this Kashi has been called Nari by three people. The person who resides in Kashi is extremely blessed. In this way, the Brahmins praised it immensely. After listening to this story, Brahma Ji said that O Narada, the truth is that there is no difference between Lord Shiva and Kashi. Kashi is the form of Lord Shiva. The person who resides in Kashi and worships Lord Shiva, no one is as fortunate as him. So, after listening to the praise of Kashi from the Brahmin, Lord Shiva said that Brahmins, you all are extremely blessed because you have brought us under your control by visiting Kashi. Due to your devotion towards Kashi, all of you have attained liberation in life. Those who go to Kashi are also our devotees and those who are devotees of both, no one can harm them. O Brahmin, you are our devotee in both the ways. By our grace, you are always fearless. In Kashi, even Yamraj's command cannot work except ours. We never stay away from the residents of Kashi. Those who take up Kshetra Sanyas in Kashi are very dear to us. You can ask for any boon you want from us. Hearing such words like nectar from the mouth of Lord Vishwanath, all the Brahmins became very happy and started praising him repeatedly and with folded hands, they said, O Lord, if you are pleased with us, then we ask for this boon that you should not leave your cough and go anywhere. The curse of Brahmins in Kashi should not be fruitful for anyone. Those who do this should get information and the residents of this place should have immense love for you at your feet. Swami, we have established your Lingas here, you should reside in them with your Shakti. Hearing the prayers of Brahmins, Lord Shiva gave the shape of the Vaastu with his mercy. After removing the sorrows of all, he bid farewell to them with love. Then all the Brahmins took leave from Lord Shiva and returned to their respective places and started worshipping Lord Vishwanath while meditating on him.
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