श्री शिव महापुराण कथा छव खंड अध्याय 19


इतनी कथा सुनकर नारद जी ने कहा हे पिता जब शिवजी अपने भवन में आए उसे समय हुए मार्ग में कहीं रुके भी थे अथवा नहीं जो मनुष्य योगी ब्रह्मण आदि उनके दर्शन से निर्मित आते हुए उन सबके चरित्र को भी आप कहें यह सुनकर ब्रह्मा जी बोले हे नारद काशी में आकर सर्वप्रथम शिवजी अपने भक्त जितवी के घर जाएं हुए मनु एकांत निवास करते हुए शिव जी के ध्यान में दिन-रात सलाद रहते थे जिन दिनों शिवजी काशी को त्याग कर मंदराचल पर्वत पर गए थे उसे समय ज्योतिष मुनि ने यह प्रतिज्ञा की थी कि जब शिवजी फिर यहां लौट कर आएंगे तभी मैं आंचल ग्रहण करूंगा या निश्चय करके हुए एक कदार में जो छिपे और शिवजी का स्मरण एवं ध्यान करके लगे 28 में सहस्त्र वर्ष तक उन्होंने ना तो पानी पिया और ना भोजन किया इससे यह तो मुनि का योग बल समझना चाहिए अथवा या समझना चाहिए कि उनके ऊपर शिवजी की कृपा थी शिवजी की अतिरिक्त मुनमुनि की महिमा को और कोई नहीं जान सकता आपने इस वक्त के कारण ही शिवजी ने काशी में पुनः लौट के लिए अनेक उपाय किए थे क्योंकि शिवजी भक्त वात्सल्य है उन्होंने अपने भक्त के प्रमाण की रक्षा के निर्माता ही रहा ही राजा देवड़ा जैसे धर्म महात्मा की नानी को स्वीकार कर लिया था यह नारद ज्योतिष में मुनि की कुटीर में शिव जी के जाने का वृतांत इस प्रकार है कि जब शिवजी उसके स्थान के समय पहुंचे उसे समय उन्होंने नंदेश्वर गाना खाया आज्ञा दी है नदी इस स्थान पर एक गड़ा है जिसके भीतर हमारा भक्त ज्योतिषवि रहता है उसने हमारे पर दर्शनों के निर्माता बहुत कष्ट उठाए हैं अथवा उसके शरीर का कर मतदाता हड्डियां के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचा है जब से हमने खांसी को त्याग था तभी से वहां एंजल त्याग कर हम हमारे लौटने की राह देख रहा है जब तक हम उसे अपना दर्शन नहीं देते तब तक हम आनंद नहीं मिलेगा आज तो तुम इस कमल को लेकर उसे गुफा के भीतर चले जाओ और मुनि के शरीर से इसका स्पर्श कर देना कमल का स्पर्श पाते ही जाती हुई का शरीर पूर्वक हो जाएगा तब तुम उनके अपने साथ लेकर यहां चले जाना हे नारद शिवजी की आज्ञा पाकर नंदीश्वर ने ऐसा ही किया और वह ज्योतिष विकास को शिव जी के समीप ले आए उसे समय मुनि ने शिवजी के दर्शन प्राप्त किया उसे समय इतना हर्ष हुआ कि हुए आनंद के कारण मुर्जित हो गए दादू प्राण जब उन्हें चैतन्य प्राप्त हुई तो उन्होंने स्वर्ण निर्मित स्तुति द्वारा शिवजी की बहुत प्रकार से प्रार्थना की और यह कहा प्रभु मैं तीनों लोक में आपको सर्वश्रेष्ठ समझ कर अपनी शरण में आया हूं आप मेरे ऊपर कृपा करें शिवजी ने इसी स्तुति को सुनकर अत्यंत प्रसन्न होकर कहा है मनी हम तुम्हारे ऊपर अत्यंत प्रसन्न है अब तुम चाहो वह वरदान हम से मांग लो यह सुनकर ज्योतिष बोला है प्रभु यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो तो कृपा करके मेरे मस्ताक्स पर अपना हाथ रख दीजिए तथा वह यह वरदान दीजिए कि मैं आपके चरण कमल से कभी भी दूर ना हो इसके अतिरिक्त मेरा यह अभिलाषा भी पूर्ण किया कि मैंने जो आपका लिंग स्थापित किया है उसे आप गणपति तथा इसका अंत सहित निवास करें बीजेपी स्विच की प्रार्थना सुनकर शिवजी ने उत्तर दिया है मनी तुम जो चाहते हो वही होगा इसके अतिरिक्त हम तुम्हें यह भी वार देते हैं कि तुम योग सिद्ध को प्राप्त होकर निवड पद को प्राप्त करेंगे तुम योग सहस्त्र के आचार्य होकर सबको उनके उपदेश करोगे और सबके सामने संदेश को नष्ट करोगे जिस प्रकार बूटी सोम तथा नंदेश्वर हमारे घर है उसी प्रकार तुम भी हमारे एक गण होंगे

TRANSLATE IN ENGLISH 

On hearing this story, Narad ji said, O father, when Shiv ji came to his palace, did he stop anywhere on the way or not? You should also tell the character of all those people, Yogis, Brahmins etc. who came after meeting him. On hearing this, Brahma ji said, O Narad, on coming to Kashi, first of all Shiv ji went to the house of his devotee Jitvi. Manu used to live in solitude and used to meditate on Shiv ji day and night. During the days when Shiv ji had left Kashi and gone to Mandarachal mountain, Jyotish Muni had pledged that when Shiv ji would return here again, only then would he wear Aanchal. After making this determination, he hid himself in a rock and started remembering and meditating on Shiv ji. For 28 thousand years, he neither drank water nor ate food. From this, it should be understood that Shiv ji had his grace on him. Apart from Shiv ji, no one else can know the greatness of Muni. It was because of this time that Shiv ji had taken many measures to return to Kashi because Shiv ji is affectionate towards his devotees. He had taken many measures to return to Kashi. The creator of the protection of the evidence of the religion was the king Devda who had accepted the grandmother of the sage. In Narada Jyotish, the story of Lord Shiva's visit to the sage's hut is as follows that when Lord Shiva reached his place, he ordered Nandeshwar to dig a pit at this place, inside which our devotee Jyotish lives. He has suffered a lot for our darshan. Nothing is left of his body except the bones. Ever since we gave up the cough, the angel has been waiting for our return. Till we do not give him our darshan, we will not get happiness. Today you take this lotus and go inside the cave and touch it with the body of the sage. As soon as the lotus touches it, the body of the sage will become normal. Then you take him with you and go here. O Narada, after getting the order of Lord Shiva, Nandeshwar did the same and he brought Jyotish Vikas near Lord Shiva. When the sage got the darshan of Lord Shiva, he was so happy that he became pale due to happiness. When Dadu Pran became conscious, he prayed to Lord Shiva in many ways by using a prayer made of gold and said, "Prabhu, I have come to you in my refuge considering you the best in the three worlds. Please have mercy on me." On hearing this prayer, Lord Shiva became very pleased and said, "Mani, we are very pleased with you. Now ask us for the boon you want." On hearing this, the astrologer said, "Prabhu, if you are pleased with me, please place your hand on my forehead and give me this boon that I should never be away from your lotus feet. Apart from this, please fulfill my wish that you should make your Linga Ganapati and reside in it with its end." On hearing Dadu Pran's prayer, Lord Shiva replied, "Mani, whatever you want will happen. Apart from this, we also give you this boon that you will attain Yog Siddha and attain the Nivad position. You will become the Acharya of Yog Sahastra and will preach to everyone and destroy the message in front of everyone. Just as Booti Som and Nandeshwar are in our house, in the same way you will also be one of our Gan."

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