नंदीश्वर ने कहा हे प्रभु मैं आपकी आज्ञा अनुसार आठ बैलों का रात सजाया है उन सभी बैलों के कंठ में घंटे बंधे हुए उसके साथ ही आठ घोड़े भी जो वस्त्र अलंकारों से अलंकृत हैं रथ में जुट रहे हैं सूर्य चंद्रमा पवन गंगा सरस्वती ब्रह्मा आदि सब अपने-अपने स्थान पर सुशोभित है वस्तु आप कृपया करके उसे रात पर विराजमान हो इस प्रकार का कर नंदेश्वर चुप हो गए उसे समय मैं विष्णु जी तथा अन्य सब देवता अत्यंत प्रसन्न हुए शिवजी ने भी प्रसन्न होकर हम सबको पहले तो भक्ति का वरदान दिया फिर चलने की तैयारी की उसे समय देव माता ने शिव जी का निरंजन किया तथा अनेक प्रकार से मंगल मन सब लोगों के कंठ से शिवजी का जय जयकार गूंज उठा एवं अनेक प्रकार के बजे बजने लग दादू प्रांत विष्णु जी ने शिवजी को हाथ पकड़ कर आसान से उठाया और उन्हें रात की ओर ले चले हे नारद उसे समय की शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता शिवजी के गांड आने अपने-अपने डमरू बजाने लगे उसका शब्द संपूर्ण दिशाओं में भर गया दादू प्राण तीनों लोक के निवासी उसे स्थान पर आ पहुंचे हम उनका संक्षेप में वर्णन करते हैं 33 करोड़ इंद्र आदि देवता 2 करोड़ तुरंत एक करोड़ भर बादल 9 करोड़ चामुंडाल दल तथा वीरभद्र की सेवा 8 करोड़ बाल की ऋषि 86 सहस्त्र ब्रह्म ज्ञानी मुनि 7 करोड़ गणेश जी के गाने जिनका स्वरूप गणेश जी के ही समान था संख्या गृहसास ब्राह्मण 8 करोड़ पाताल के निवासी नाग आदि 3 करोड़ शिवजी की गांड दो-दो करोड़ धरो तथा नित्य की संताने अर्थात दोनों और दैत्य 8 करोड़ गंधर्व 50 लाख रक्षा तथा यश आप आठ सहस्र पथ धारी तथा पंपकिन पर्वत छाया व्यक्ति गरुड़ एक आयुक्त विद्याधर 603 ईश्वर 300 वनस्पति 800000 शरीर धारण किए औषधीय साथ उत्तम उत्तम रत्न दिए हुए समुद्र तीन सहस्त्र रहता था पांच युक्त नदियां एवं ऑटो देखभाल उसे स्थान पर आप पहुंचे हे नारद यह सब शिव जी को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए तथा विधिवत प्रकार से उसकी सेवा करने लगे उन सबको सेवा करते हुए देखा शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन सब की ओर कृपा दृष्टि देखकर आशीर्वाद प्रदान करने लगे इसके उपरांत शिवजी उसे रात पर अरुण हुए गिरजा को उन्होंने अपने वां भाग में बैठाया जिस समय शिवजी गिरजा सहित रात पर बैठे उसे समय इंद्र आदि देवताओं ने उनकी बहुत प्रकार से स्तुति की तदुपरांत शिव जी काशी के भीतर प्रविष्ट हुए अपने शरीर काशी को देखकर उन्हें अत्यंत प्रसन्नता प्राप्त हुए और अपने मुख से जय का सी संजय आनंदवन आदि शब्द का उच्चारण करने लगे इसने की अधिकता के कारण उनका कांड गाधगट हो गया उसे समय शिव जी के परम भक्त जैविक ने पर्वत की कड़हारा से निकलकर शिवजी के दर्शन किए शिव जी ने भी आप उन्होंने अपने समय बुलाकर प्रसन्न किया दादू प्रांत शिवजी काशी निवासी ब्राह्मणों का सत्कार करते हुए वरुण नदी के समीप पहुंचे वहां हिमाचल के बजे हुए दो मंदिरों को देखकर उन्हें अत्यंत प्रसन्नता हुई फिर उन्होंने विश्वकर्मा को बुलाकर अपना भवन बनाने के लिए आजा दिए उसे सुनकर विश्वकर्मा ने तीनों लोक से सामग्रीय एकत्र करके एक सुंदर मंदिर का निर्माण किया शिवजी ने अपने पुत्रों गिरजा गणपति तथा देवताओं के साथ अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक उसमें प्रवेश किया फिर उन्होंने सब लोगों का आदर सत्कार करके विदा कर दिया और आप गिरजा तथा परिवार सहित वही निवास करने लगे हे नारद शिवजी और काशी का यह आख्यान संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला है इसको पढ़ने तथा सुनने से दोनों लोक में सुख की प्राप्ति होती है
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Nandishwar said, O Lord, as per your command, I have decorated a chariot of eight bulls. All the bulls have bells tied around their necks. Along with that, eight horses, which are decorated with clothes and ornaments, are harnessed to the chariot. The Sun, the Moon, the Wind, the Ganga, the Saraswati, the Brahma, etc., are all decorated at their places. You please make him sit on the chariot. Nandishwar became silent. At that time, Lord Vishnu and all the other gods were very happy. Lord Shiva too was pleased and first gave the blessings of devotion to all of us, then got ready to leave. At that time, the mother of the gods blessed Lord Shiva and made many auspicious sounds. The chants of Lord Shiva reverberated from the throats of all the people and many types of instruments started playing. Dadu, Lord Vishnu held the hand of Lord Shiva and lifted him from the seat and took him towards the chariot. O Narada, the beauty of that time cannot be described. The disciples of Lord Shiva started playing their damru, its sound filled all directions. Dadu, the inhabitants of all the three worlds reached that place. We describe them in brief. 33 crore gods like Indra, 2 crore immediately One crore clouds 9 crore Chamundaal group and service of Veerbhadra 8 crore Baal's sages 86 thousand Brahma-wise sages 7 crore Ganesh Ji's songs whose form was similar to that of Ganesh Ji Number of householders Brahmins 8 crore residents of underworld snakes etc 3 crore Shiva Ji's ass two crore Dharos and Nitya's children i.e. demons on both sides 8 crore Gandharvas 50 lakhs protection and fame you eight thousand path holders and pumpkin mountain shadow person Garuda one commissioner Vidyadhar 603 Gods 300 plants 8 lakhs vegetation 8 lakhs00000 body given the best of medicinal gems three thousand seas lived five rivers and auto care you reached that place O Narada All of them were very happy to see Shiva and started serving him in a proper manner. Seeing them all serving him, Shiva became very happy and started giving blessings seeing kindness towards all of them, after this Shiva became Arun on the night and made Girja sit in his seat. When Shivaji sat on the night along with Girja, at that time Indra The other gods praised him in many ways, after that Shiv Ji entered Kashi, he was very happy to see his own Kashi and started uttering the words Jai Ka Si Sanjay Anandvan etc. from his mouth, due to the excess of this, his body became deep in the throat. At that time, Shiv Ji's great devotee Jaivik came out of the mountain's gorge and had darshan of Shiv Ji, Shiv Ji also called him and pleased him by calling him at his time. Shiv Ji, while welcoming the Brahmins of Dadu province, reached near Varun river, there he was very happy to see two temples built in Himachal, then he called Vishwakarma and asked him to build his house, on hearing this Vishwakarma collected materials from all the three worlds and built a beautiful temple, Shiv Ji entered it very happily with his sons Girja, Ganapati and Gods, then he welcomed everyone with respect and sent them off and he started living there with Girja and family, O Narada, this story of Shiv Ji and Kashi destroys all sins, by reading and listening to it Happiness is attained in both the worlds
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