ब्रह्मा जी बोले हे नारद विष्णु जी को प्रणाम करने के उपरांत गरुड़ ने उन्हें यह शुभ समाचार दिया कि शिवजी गिरिजा जी तथा अन्य गानों सहित या पधार रहे हैं इस संदेश को सुनकर विष्णु जी को अत्यंत प्रसन्नता हुई इस समय उन्होंने यह देखा कि शिवजी अपनी सुना सहित काशीपुरी में प्रवेश कर रहे हैं उसकी भुजाएं सहस्त्र सुरिया के समान चमक रही थी जिसे चारों ओर प्रकाश फैल रहा था अनेक प्रकार के बजे बज रहे थे तथा जय जय कर का शब्द हो रहा था विष्णु जी ने उसे दृश्य को देखकर जय शिव जय शिव शब्द का उच्चारण किया तदुपरांत अग्नि बिंदु से या कहा कि तुम हमारे चक्र को स्पर्श कर लो जिससे तुम्हें मुक्ति प्राप्त हो जाएगी विष्णु जी की आज्ञा अनुसार अग्नि बिंदुओं ने जब चक्र का स्पर्श किया तो उसे मुक्ति प्राप्त हुई तत्पश्चात विष्णु जी ने गरुड़ को भेज कर ब्रह्मा को बुलाया साथी योगी गाना सूर्य तथा गणेश को भी ले आने की आज्ञा दी कुछ देर में जब यह सब लोग आ गए उसे समय विष्णु जी प्रसन्नता पूर्वक शिव जी की अगवानी करने के लिए चले हे नारद जिस समय शिव जी ने काशीपुरी में प्रवेश किया उसे समय विष्णु जी ब्रह्मा गणपति आदि ने उसके समीप पहुंचकर दंडवत प्रणाम किया शिव जी ने उन सबको आशीर्वाद देकर प्रसन्न किया तथा गणपति का मस्तक सुनकर उन्हें अपने आसन पर बैठा लिया उसे समय शिवजी की इच्छा अनुसार योगी गण मंगल गान करने लगे तथा 12 सूर्य स्तुति ज्ञान करने लगे शिव जी ने विष्णु जी को आसन पर भाई और तथा दूसरे मुझे दाहिनी और बैठाया और गानों की ओर कृपा दृष्टि करके उन्हें भी प्रसन्नता प्रदान की फ्री योगी गण एवं सूर्य को बैठने की आज्ञा देकर हर्षित किया हे नारद उसे समय मैं शिव जी को प्रसन्न देखकर यह कहा हे प्रभु मैं आपकी सेवा नहीं कर सका इसका अपराध के लिए मुझे क्षमा प्रदान करें आपकी यह काशी पुरी है ही ऐसी की इसमें आने के बाद मेरा मन किसी भी प्रकार लौटने को ना हुआ मेरे मन से यह शब्द सुनकर शिवजी बोल ही ब्राह्मण तुम अपने मन में किसी प्रकार का भाई मत करो मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूं तुमने आज समय की आज्ञा किए हैं इसलिए तुम्हारे संपूर्ण पाप नष्ट हो गए हैं इस सबके साथ ही तुमने काशी पुरी में हमारे लिंग की स्थापना भी की है इससे तुम्हारा यस और भी अधिक बढ़ गया है जो मनुष्य काशी में एक भी लिंग की स्थापना करता है उसके सहस्त्र पाप नष्ट हो जाते हैं फिर भी ब्राह्मण कभी भी दंड की योग्य नहीं है जो लोग ब्राह्मण को दंड देते हैं उनका संपूर्ण सुख विभव थोड़े ही दिन में नष्ट हो जाता है
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Brahma Ji said, O Narada. After saluting Vishnu Ji, Garuda gave him the good news that Shiv Ji is arriving with Girija Ji and other gods. Vishnu Ji was very happy to hear this message. At that time, he saw that Shiv Ji is entering Kashipuri with his Sun. His arms were shining like Sahastra Surya, from which light was spreading all around, many types of instruments were playing and sounds of Jai Jai were being heard. Seeing that scene, Vishnu Ji uttered the words Jai Shiv, Jai Shiv. Thereafter, he told Agni Bindu to touch his Chakra, which would give him salvation. As per Vishnu Ji's order, when Agni Bindu touched the Chakra, he attained salvation. Thereafter, Vishnu Ji sent Garuda and called Brahma. He ordered to bring fellow Yogis Gana, Surya and Ganesh as well. After some time, when all these people had arrived, Vishnu Ji happily went to welcome Shiv Ji. O Narada. When Shiv Ji entered Kashipuri, Vishnu Ji, Brahma, Ganapati etc. went near him and bowed down. They bowed down to them. Shiv Ji made them happy by blessing them and after listening to the prayer of Ganpati, made him sit on his seat. At that time, according to Shiv Ji's wish, the Yogis started singing Mangal Gaan and started praising the 12 Suns. Shiv Ji made Vishnu Ji sit on the seat and me on the right side and looked at the Ganpati with kindness and made them happy too. He made all the Yogis and the Sun happy by ordering them to sit. O Narada, seeing Shiv Ji happy at that time, he said, O Lord, I could not serve you, please forgive me for this crime. This Kashi Puri of yours is such that after coming here, I did not feel like returning in any way. Hearing these words from my mind, Shiv Ji said, Brahmin, do not have any kind of doubt in your mind. I am very happy with you. Today, you have obeyed the time, that is why all your sins have been destroyed. Along with all this, you have also established our Linga in Kashi Puri, due to which your fame has increased even more. The person who establishes even one Linga in Kashi, his thousand sins are destroyed. Even then, a Brahmin is never worthy of punishment. Those who punish a brahmin, all their happiness and prosperity gets destroyed in a few days.
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