ब्रह्मा जी बोले हे नारद विष्णु जी की आज्ञा अनुसार गरुड़ शिव जी के समीप पहुंचे उसे समय शिव जी ने उनसे पूछा यह गरुड़ तुम कहां से आ रहे हो गरुड़ बोले हे प्रभु आप सब कुछ जानते ही हुए भी सांसारिक रीति के अनुसार जो यह बात मुझसे पूछ रहे हैं वह भी आपकी लीला ही है इतना कह कर गरुड़ ने योगी ने गंद गणेश जी ब्रह्मा एवं विष्णु जी की सब कथा शिव जी को कहा सुनाई और बताया कि इस समय मुझे विष्णु जी ने आपके पास भेजा है हे नारद गरुड़ की बात सुनकर शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए तथा गिरजा भी आनंद मग्न हो गई शिवजी के सब गण परम प्रसन्न हुए तदुपरांत शिव जी ने गरुड़ से इस प्रकार कहा हे गरुड़ तुम हमारे पास हितैषी हो आप तुम्हारी जो इच्छा हो वह हमसे वह मांग को श्री शिव जी के श्री मुख से ऐसे वचन सुनकर गरुड़ ने कहा हे प्रभु मैं आपके चरणों के दर्शन प्राप्त किया इससे बढ़कर अन्य किसी भी वस्तु की मुझे इच्छा नहीं है अब आप मुझ पर इतने प्रसन्न हैं तो मुझे यह निश्चय हो गया है कि मैं आपकी माया के बंधन से मुक्ति प्राप्त कर चुका हूं मेरे लिए यही सबसे बड़ा वरदान है है स्वामी यदि आप प्रसन्न होकर मुझसे पूछ देना ही चाहते हैं तो मैं आपसे यही मांगता हूं कि मुझे आपके कर कमल की भक्ति प्राप्त हो हे नारद गरुड़ कैसे श्रेष्ठ वचन सुनकर शिव जी ने एवं वास्तु कहते हुए उन्हें अपने हृदय से लगा लिया था दो प्रांत शिव जी ने सब लोगों को बुलाकर खांसी चलने की तैयारी की उसे समय मधुरचल पर्वत अत्यंत दुखी होकर शिवजी के चरणों पर गिर पड़ा और हाथ जोड़कर कहने लगा है प्रभु आप मुझे इस प्रकार त्याग कर मत जाइए मधुरचल की प्रार्थना सुनकर शिव जी ने उत्तर दिया यह पर्वत श्रेष्ठ तुम अपने मन में चिंता मत करो हम तुमसे अत्यंत इसने करते हैं और यह विश्वास दिलाते हैं कि मुझे कभी क्षण भर के लिए भी नहीं भूलेंगे तथा लिंग रूप होकर यह सदैव स्थित रहेंगे इस प्रकार बहुत कुछ समझा बूझकर शिव जी ने मंत्र आंचल के हृदय का दुख दूर किया और लिंग रूप धारण कर अपने एक आम से स्थित हो गए दादू प्रांत शुभ लग्न का विचार कर शिवजी गिर जाता था अन्य गानों सहित काशीपुरी को चल चलने के पूर्व शिवजी ने गरुड़ को यह आज्ञा दी कि तुम आगे जाकर विष्णु जी को हमारे आगमन का समाचार दो आज तो करूं वहां से चलकर सीधे विष्णु जी के समीप जा पहुंचे जिस समय विष्णु जी अग्नि बिंदु को उपदेश दे रहे थे उसी समय गरुड़ ने पहुंचकर उसके चरण कमल में अपना मस्तक झुकाया
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Brahma Ji said O Narada. As per Vishnu Ji's order, Garuda reached near Shiv Ji. At that time Shiv Ji asked him Garuda from where are you coming. Garuda said O Prabhu, even after knowing everything, the fact that you are asking me this according to the worldly custom is also your leela. Saying this, Garuda told the entire story of Yogi Gandh, Ganesh Ji, Brahma and Vishnu Ji to Shiv Ji and told that at this time Vishnu Ji has sent me to you O Narada. On hearing Garuda's words, Shiv Ji became very happy and Girja also became happy. All the Ganas of Shiv Ji became very happy. Thereafter Shiv Ji said to Garuda in this way O Garuda, you are our well-wisher. Whatever you wish, ask that from us. On hearing such words from Shri Shiv Ji's mouth, Garuda said O Prabhu, I have received the darshan of your feet. I do not wish for anything more than this. Now that you are so pleased with me, I am sure that I have attained freedom from the bondage of your Maya. This is the biggest boon for me, Swami. If you want to ask me being happy, then I only ask you that I may receive the devotion of your lotus hands. O Narada Garuda, on hearing such great words, Shiv Ji embraced him to his heart while saying Vastu. Shiv Ji called all the people and prepared to leave. At that time Madhuchal mountain, being very sad, fell on the feet of Shiv Ji and with folded hands said, "Lord, do not abandon me like this." Hearing the prayer of Madhuchal, Shiv Ji replied, "This is the best mountain, do not worry in your mind, we request you very much and assure you that we will not forget me even for a moment and that by taking the form of a linga, it will always remain there." In this way, after explaining a lot, Shiv Ji removed the sorrow from the heart of Mantra Aanchal and taking the form of a linga, he sat on one of his mango trees. Thinking of the auspicious time, Shiv Ji fell down. Before leaving for Kashipuri along with other songs, Shiv Ji ordered Garuda to go ahead and inform Vishnu Ji about our arrival. From there he went straight to Vishnu Ji. At that time Vishnu Ji was about to leave the fire. While he was preaching to Bindu, Garuda arrived there and bowed his head at his lotus feet.
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