इतनी कथा सुनकर नारद जी ने कहा हे पिता आप मुझे यह संपूर्ण वृतांत विस्तार पूर्वक सुनाएं ब्रह्मा जी बोले हे नारद सुनो ब्राह्मण रूपी विष्णु जी से उपदेश प्राप्त कर राजा देवदास ने अपनी सेवकों द्वारा सभी राजा प्रजा मंत्रीमंडलेश्वर पारिवारिक ज्ञान पुरोहित सेनापति वेदपति यज्ञ करने वाले तथा राजकुमारों को बुलाया था दो प्रांत उसने अपने बड़े पुत्र रिपु जाए एवं सब स्त्रियों को भी बुलाया जब सब लोग आ गए तब राजा ने ब्राह्मण वेधारी विष्णु जी की कही हुई सब बातों को सुना कर उनसे इस प्रकार कहा कि स्वजनों आप हम इस पृथ्वी पर 7 दिन तक और हैं दादू प्रांत शिवलोक को चले जाएंगे इसलिए आप मेरे बड़े पुत्र श्री पूजा को राजपथ पर असीम कर दीजिए और मुझे अपनी सेवा से निर्मित कीजिए हे नारद राजा देव दास की यह बात सुनकर सब लोग को अत्यंत आश्चर्य हुआ परंतु भाई के कारण किसी ने कुछ नहीं पूछा तो उपरांत राजा ने संपूर्ण सामग्री एकत्र करवाएं शुभ लग्न में अपने पुत्र हरी पूजा का अभिषेक कार लिया इसके पश्चात राजा ने गंगा के पश्चिम की ओर एक विशाल शिव मंदिर का निर्माण कराया उसने अन्य देशों को जीतकर जितना धन एकत्र किया था और जो धन श्रेष्ठ रीति नीति द्वारा संग्रह हुआ उसे धन को शिवालय बनाने में ब्याज कर दिया फिर उसने उसे मंदिर मैं नरेश्वर नमक शिवलिंग की स्थापना की उसका स्मरण करने मात्र से ही संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं शिवलिंग स्थापना करने पर राजा के हृदय में प्रसन्नता भर गई और उसका मुख सूर्य की भांति चमकने लगा संपूर्ण सामग्री एकत्र करके शिवलिंग की पोषण उपचार विधि से पूजन की उसे पूजन के कारण राजा के हृदय में जो थोड़ा बहुत दुख अथवा विरक्ति का भाव बज गया था वह भी नष्ट हो गया उसने काशी में स्थापित अन्य शिवलिंगों की भी पूजा की पूजन और प्रमाण करने के उपरांत वह एक स्थान पर ध्यान मग्न होकर बैठ गया हे नारद विष्णु जी के बताएं अनुसार जब सातवां दिन आया उसे दिन एक अत्यंत श्रेष्ठ विमान आकाश से उतारकर उसे स्थान पर आ पहुंचा जहां राजा देवदास बैठा हुआ था उसे विमान में चारों ओर शिव जी के गण बैठे हुए थे उन सब गानों के चार-चार भुजाएं थी और उसके शरीर से निकलने वाला सूर्य के समान प्रकाश सब और फैला रहा था वह सब अपने हाथ में त्रिशूल लिए हुए थे देखने में पास साक्षात शिव के समान ही प्रतीत होते थे ऐसा प्रतीत होता था की संपूर्ण संसार की सुंदरता उसे विमान में हो हे नारद उन शिव गणों ने विमान से उतरकर राजा के शरीर को स्पर्श किया जिसके कारण उसका शरीर दिव्या हो गया और शिव गानों के समान ही उसके शरीर में भी हुए ही सब चिन्ह प्रकट हो गए तब प्रांत वह अभियान पर बैठकर समस्त गानों के साथ शिवजी के लोग को चला गया इस प्रकार वह शिवगणोस में गिना गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जिस स्थान से शिवजी के गांड राजा को विमान में बैठकर शिवलोक ले गए थे वह स्थान भोग श्री के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुआ उसे लिंग की राजा देवदास ने स्थापना की थी वह देवदास ईश्वर के नाम से प्रसिद्ध है उसे शिवलिंग की पूजा करने से आवागमन का भाई नष्ट हो जाता है तथा मनुष्यों को अपनी संपूर्ण मानों कामना प्राप्त होती है हे नारद जो कोई इस कथा को सुनता अथवा दूसरे को सुनता है उसे भी इस लोक में सब प्रकार के आनंद प्राप्त होते हैं तथा परम लोक में शुभ गति मिलती है
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On hearing this tale, Narad ji said, O father, you tell me this entire story in detail. Brahma ji said, O Narad, listen, after receiving teachings from Vishnu ji in the form of Brahmin, king Devdas had called all the kings, subjects, ministers, ministers, commanders, family knowledge, priests, commanders, Vedapatis, yagya performers and princes through his servants. He called his elder son Ripu Jaye and all the women as well. When everyone arrived, the king narrated all the things said by Brahmin Vedahari Vishnu ji and told them this way that relatives, we are on this earth for 7 more days, Dadu province will go to Shivalok, therefore you make my elder son Shri Pooja unlimited on the Rajpath and make me happy with your service. O Narad, on hearing this from king Dev Das, everyone was very surprised, but because of brother, no one asked anything. Then the king got all the materials collected and on the auspicious occasion, he anointed his son Hari Pooja. After this, the king built a huge Shiva temple on the west side of Ganga. He had collected all the wealth by conquering other countries and the wealth that was collected by good practices and policies. He got interested in making a Shiva temple. Then he established a Shivling named Nareshwar in the temple. Just by remembering it, all sins are destroyed. After establishing the Shivling, the king's heart was filled with joy and his face started shining like the Sun. After collecting all the material, he worshipped the Shivling with the nourishing method. Due to this worship, whatever little sadness or apathy was there in the king's heart also vanished. He also worshipped other Shivlings established in Kashi. After worshipping and performing the rituals, he sat down in meditation at one place. As per the instructions of Lord Vishnu, on the seventh day, a very great plane descended from the sky and reached the place where King Devdas was sitting. Shiva's Ganas were sitting all around him in the plane. All of them had four arms and the light emanating from their bodies was spreading like the Sun everywhere. All of them were holding tridents in their hands. They looked like Lord Shiva himself. It seemed as if the beauty of the whole world was in that plane. Narada, those Shiv Ganas took off from the plane. He got down and touched the body of the king due to which his body became divine and all the signs appeared in his body just like those of Shiva Ganas. Then he sat on the plane and went with the people of Shiva along with all the Ganas. In this way he was counted among the Shiv Ganas and he attained salvation. The place from where Shiva Ganas took the king in his plane to Shivalok became famous in the world by the name of Bhog Shri. That Linga was established by King Devdas. That Devdas is famous by the name of Ishwar. By worshipping that Shivling, the cycle of birth and death is destroyed and humans get all their wishes fulfilled. O Narada, whoever listens to this story or makes others listen to it, he also gets all kinds of happiness in this world and gets auspicious progress in the supreme world.
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