श्री शिव महापुराण कथा छव खंड अध्याय 14 का भाग 2



हे नारद राजा देवदास की बात सुनकर ब्राह्मण रूपी विष्णु जी ने उसकी बहुत प्रशंसा करते हुए कहा है राजन हमें जो कुछ कहना था उसे तुम स्वयं ही कह चुके हो तुम्हारा कथन पूर्णता सत्य है हम तुम्हारे प्रताप को अच्छी तरह जानते हैं तुम्हारे सामान ना तो कोई राजा हुआ है और ना होगा तुम्हें ने देवताओं के साथ भेजो शत्रुता नहीं की है क्योंकि तुमने अपनी प्रजा का पालन इस श्रेष्ठ प्रकार से किया है कि उसे देवता भी अत्यंत आनंदित है परंतु हमें तुम्हारा एक ही पाप मालूम होता है तुमने शिव जी को काशी जी से दूर कर दिया है या तुमने बड़ा भारी पाप हो गया है यदि इस पाप को तुम किसी प्रकार नष्ट कर दो तो तुम्हारे संपूर्ण पाप नष्ट हो जाएंगे इसका केवल एक ही उपाय है वह हम बताते हैं वेद का कथन है कि जो मनुष्य शिवलिंग की स्थापना करता है उसके संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं मनुष्य के शरीर में जितने रोम है उतने पाप एक शिवलिंग की स्थापना करने से नष्ट हो जाता है विशेष कर काशी में शिवलिंग की स्थापना करने वाले को किसी आपसे स्वप्न में भी भयभीत नहीं होना चाहिए जो प्राणी काशी में शिवजी का एक भी लिंग स्थापित कर दे उसके संबंध में या समझना चाहिए मानव उसे बहुत से देश में शिवलिंग स्थापित किया है इसलिए तुम्हें यह उचित है कि तुम भी काशी जी में शिवलिंग की स्थापना करो इससे तीनों लोक में तुम्हारा यश फैलेगा और तुम अपने संपूर्ण मनोरथ को प्राप्त करोगे हे नारद इतना कह कर विष्णु जी कुछ देर के लिए चुप हो गए फिर कुछ मित्रों का पाठ करके राजा के शरीर को अपने हाथ से स्पर्श करते हुए इस प्रकार बोले हे राजन हमने ज्ञान दृष्टि से जो कुछ देखा है आप उसे तुम्हें बताते हैं तुम अत्यंत ज्ञानी तथा सर्वगुण संपन्न हो जिस मनुष्य को धन अथवा द्वेष प्राप्त करने की इच्छा हो उसे प्राप्त कल प्रतिदिन तुम्हारा नाम लेना चाहिए तुम्हारे पास आकर हमें भी बहुत आनंद प्राप्त हुआ है इतना कह कर ब्राह्मण वेशधारी विष्णु जी बारंबार हंसने लगा मस्तक हिलने लग धातु प्रांत मन ही मन गुनगुनाते हुए भोले इस राजा के बड़े भाग्य यह अब निश्चय ही मोक्ष को प्राप्त करेगा क्योंकि ब्रह्मा इंद्र विष्णु आदि देवता और ऋषि मुनि जिन शिवजी का हर समय ध्यान करते हैं हुए शिवजी स्वयं प्रतिदिन इस राजा का स्मरण करते हैं तीनों लोकों में इसके समान भाग्यशाली अन्य कोई नहीं है हे नारद इस प्रकार मन ही मन गुनगुनाने के पश्चात विष्णु ने राजा से फिर कहा है राजन तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी तुम इसी शरीर से परम पथ को प्राप्त करोगे जिस समय तुम शिवजी का लिंग स्थापित करोगे उसे समय तुम आवागमन के बंधन से मुक्त हो जाओगे आज के सातवें दिन शिव जी के गांड तुम्हें लेने के लिए आएंगे तुम भले ही इस लाभ को किसी अन्य पुण्य का फल समझो परंतु हम तो इसे काशी सेवन का ही माता समझते हैं काशी में निवास करने के कारण ही तुमने इसे उच्च पद को प्राप्त किया है तुम्हारे दर्शन का बड़ा फल है उसकी बात सुनकर राजा देवदास अत्यंत प्रसन्न हुआ और हाथ जोड़कर कहने लगा है प्रभु आपने मुझे भवसागर से पर उतार दिया अब यदि मैं आपको कुछ भेंट करूं तो वह सब इस उपाय के देखते हुए अत्यंत उच्च होगा राजा कैसे वचन सुनकर विष्णु जी उसे आशीर्वाद देने के उपरांत विदा हो गए और अपने काशी स्थान में स्थित हुआ तदुपरांत उन्होंने गरुड़ को शिवजी के समीप भेजो और उसके आवागमन की प्रतीक्षा करने लगे फिर अग्नि बिंदु ब्राह्मण पर कृपा करके उन्होंने उसे देश का राजा राज उसे दे दिया और स्वयं सिद्धांत के ऊपर बैठकर प्रेम पूर्वक शिवजी का ध्यान करने लगे

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O Narada, after listening to the words of king Devdas, Vishnu Ji in the form of Brahmin praised him a lot and said, O king, whatever we had to say, you have said it yourself. Your statement is completely true. We know your glory very well. There has never been any king like you and there will never be. You have not had any enmity with the gods because you have looked after your subjects in such a great way that even the gods are very happy. But we see only one sin of yours. You have distanced Shiv Ji from Kashi Ji or you have committed a very big sin. If you destroy this sin in any way, then all your sins will be destroyed. There is only one remedy for this, we will tell you. The Vedas say that the man who establishes Shivling, all his sins are destroyed. The number of hairs on the body of a man, that many sins are destroyed by establishing one Shivling. Especially the one who establishes Shivling in Kashi should not be afraid of you even in his dreams. The person who establishes even one ling of Shiv Ji in Kashi should understand that man has established Shivling in many countries, so you should consider it appropriate. You should also establish a Shivling in Kashi Ji. This will spread your fame in all the three worlds and you will achieve all your desires. Oh Narada. Saying this, Vishnu Ji became silent for a while. Then after reciting some verses, he touched the body of the king with his hand and said, Oh King, whatever I have seen through my eyes of knowledge, you tell me that. You are extremely knowledgeable and full of virtues. The person who wants to gain wealth or malice should take your name daily. I have also got immense pleasure by coming to you. Saying this, Vishnu Ji dressed as a Brahmin started laughing repeatedly. His head started shaking. He started humming in his mind, “Bhole, this king is very fortunate. He will definitely achieve salvation now because Brahma, Indra, Vishnu and other gods and sages and saints meditate on Lord Shiva all the time. Lord Shiva himself remembers this king daily. There is no one as fortunate as him in the three worlds. Oh Narada. After humming in his mind, Vishnu again said to the king, “Oh King, your desire will be fulfilled. You will attain salvation in this very body.” You will attain the ultimate path from this. The moment you establish the Linga of Lord Shiva, you will be freed from the bondage of birth and death. On the seventh day of today, Lord Shiva will come to take you. You may consider this benefit as the result of some other good deed, but we consider it as the result of visiting Kashi. You have attained this high position only because of living in Kashi. Your darshan is a great fruit. Hearing his words, King Devdas was very happy and with folded hands said, "Prabhu, you have taken me above the ocean of existence. Now if I offer you something, it will be very great considering this remedy." Hearing such words of the king, Lord Vishnu left after blessing him and settled in his Kashi place. Thereafter, he sent Garuda near Lord Shiva and started waiting for his arrival. Then, showing mercy on Agni Bindu Brahmin, he gave him the kingship of the country and himself sat on the Siddhant and started meditating on Lord Shiva lovingly.

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