श्री शिव महापुराण कथा छव खंड अध्याय 13



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद विष्णु जी आपने आदि केशव मूर्ति में प्रविष्ट होकर खांसी में स्थापित हुए और कुछ अंशु में निकाल कर शिवजी के कार्य में प्रभावित हुए या सुनकर नाराज जी बोले ही पिता विष्णु जी कुछ हंस से क्यों निकले और कहां गए यह आप मुझे सुनने की कृपा करें ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया है नारद जिस कारण से विष्णु का संपूर्ण अंश उसे आदि केशव मूर्ति से बाहर नहीं निकला वह यह है कि जब पूर्व जन्म के पुण्य उदय होते हैं तभी काशी का वास मिलता है जी प्राणियों पर शिवजी की कृपा नहीं होती वह काशी में नहीं रह पाता जो मनुष्य काशी में नहीं रहते उनके जन्म को व्यर्थ समझना चाहिए संसार के सभी तीर्थ सेवकों के समान काशी की सेवा किया करते हैं काशी परम श्रेष्ठ और तीनों लोकों से न्यारी है झांसी में मृत्यु होने पर स्वर्ग से भी अधिक आनंद प्राप्त होता है हे नारद यही कारण था कि विष्णु जी आपने पूर्ण अंत से आदि केशव रूप धारण कर काशी में स्थित हुए और अपने छोटे से आस से उसे मूर्ति से निकाल कर कहां से में ब्राह्मण करने लगे गरुड़ और लक्ष्मी भी उनकी मूर्ति से कुछ दूर उत्तर की ओर स्थित हुए जिस स्थान पर गरुड़ तथा लक्ष्मी स्थित हुए उसे धर्म क्षेत्र कहा जाता है उसके दर्शन से अत्यंत आनंद प्राप्त होती है अस्तु विष्णु जी ने अपना स्वरूप इस प्रकार धारण किया जो तीनों लोक को मोहित करने वाला था उन्होंने श्रेष्ठ वस्त्र आभूषणों से सुसर्जित हो अपने को पूर्ण कीर्ति नाम से प्रसिद्ध किया गरुड़ भी उसके शीश बनाकर विनय कीर्ति के नाम से प्रसिद्ध हुए लक्ष्मी जी भी मनुष्यों के समान स्वरूप धारण गोमुख नाम से विख्यात हुए सब लोग इन तीनों के सुंदर स्वरूप को देखकर मोहित होने लगे फिर विष्णु जी विभिन्न प्रकार के अरित्रों द्वारा का सी वीडियो को मोहित करने लगे हे नारद जी समय काशी वासी ढूंढ के झुंड विष्णु का दर्शन करने के लिए आते उसे समय विष्णु जी और गरुड़ जी गुरु शिष्य की भारती आपस में इस प्रकार वार्तालाप करने लगते थे शिष्य गरुड़ जी जिन्होंने अपना नाम विनय कीर्ति रख छोड़ा था पूर्ण कृति नमक विष्णु की स्तुति करते हुए कहते थे है गुरु जी आप उसे धर्म का वर्णन करने की कृपा कीजिए जिससे संसार को आनंद प्राप्त हो गरुड़ की बात को सुनकर विष्णु जी मन ही मन मुस्कुरा कर तथा उच्च स्वर से सब लोगों को सुना कर इस प्रकार उत्तर देते हैं शिष्य या सृष्टि आनंदित है पुरातन काल से यह इस प्रकार चलती आती है इसे उत्पन्न करने वाला कोई नहीं है यह स्वयं ही प्रकट होती है और स्वयं ही नष्ट हो जाती है ब्रह्मा से लेकर ट्रिप ना परियतना सभी जीव बारंबार जन्म लेते हैं और बारंबार मृत्यु को प्राप्त होते हैं आत्मा को ही ईश्वर समझना चाहिए आत्मा के अतिरिक्त अन्य कोई किसी का स्वामी नहीं है ब्रह्मा आदि बड़े देवता को भी कल में नहीं छोड़ा इस बात पर जो विश्वास रखता है उसी को बुद्धिमान समझना चाहिए है शिष्य संसार में ना कोई बड़ा है और ना कोई छोटा ना कोई सुखी और ना कोई दुखी आहार बिहार में सब एक समान है अच्छा बुरा भी कोई नहीं है किसी को ना तो पाप लगता है और ना कोई निष्पाप रहता है भोजन सबको तृप्ति करता है और पानी सब की प्यास बुझाता है मृत्यु का भाई ऐसा है जो देवताओं को भी लगा रहता है ब्रह्मा और विष्णु भी उससे भयभीत रहते हैं जितने में भी शरीर धारी है हुए सब विद्या बुद्धि और ज्ञान के कारण एक से है संसार में मनुष्य को केवल एक ही बात का ध्यान रखना चाहिए और वह बात यह है कि किसी भी जीव को दुख देना पाप है प्राणी पर दया करने के समान अन्य कोई धर्म नहीं है

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Brahma Ji said, O Narad, Vishnu Ji entered the idol of Adi Keshav and settled in the swan and by taking out some tears, got impressed in the work of Shiv Ji. On hearing this, Narad Ji said, father, why did Vishnu Ji come out of the swan and where did he go? Please tell me this. Brahma Ji replied, Narad, the reason why the complete part of Vishnu did not come out of the idol of Adi Keshav is that when the virtues of the previous birth emerge, only then he gets the place of Kashi. Those who do not have the blessings of Shiv Ji, they cannot live in Kashi. The birth of those people who do not live in Kashi should be considered futile. All the pilgrimages of the world serve Kashi like the servants. Kashi is the best and different from the three worlds. On death in Jhansi, one gets more happiness than heaven. O Narad, this was the reason that Vishnu Ji completely assumed the form of Adi Keshav and settled in Kashi. And by taking out him from the idol with his small wish, he started doing Brahmin work. Garuda and Lakshmi also settled a little away from his idol towards the north. At the place where Garuda and Lakshmi died, The place where the three worlds are situated is called Dharmakshetra. Its darshan gives immense bliss. So Vishnu Ji assumed his form in such a manner that it fascinated the three worlds. He adorned himself with the best clothes and ornaments and made himself famous by the name of Poorna Kirti. Garuda also became famous by the name of Vinay Kirti by making his head. Lakshmi Ji also assumed a human-like form and became famous by the name of Gomukh. Everyone started getting fascinated by seeing the beautiful form of these three. Then Vishnu Ji started fascinating Kashi with different types of demons. O Narad Ji, at that time the residents of Kashi would come in groups to see Vishnu. At that time Vishnu Ji and Garuda Ji would start conversing with each other in this manner. The disciple Garuda Ji who had kept his name as Vinay Kirti while praising Vishnu used to say, O Guru Ji, please describe that Dharma so that the world gets bliss. On listening to Garuda's words, Vishnu Ji smiled in his heart and made everyone listen to it in a loud voice and replied, the disciple or the world is blissful. It has been like this since ancient times. It keeps on going on, there is no one to create it, it appears on its own and gets destroyed on its own, from Brahma to Tripura, all living beings are born again and again and die again and again. Soul should be considered as God. No one other than soul is the master of anyone. Even the great gods like Brahma etc. were not spared by the past. Only he who believes in this should be considered wise. A disciple, in this world, no one is big and no one is small, no one is happy and no one is sad. In food and drink, everyone is the same. There is no one good or bad. No one commits sin and no one remains innocent. Food satisfies everyone and water quenches everyone's thirst. Death's brother is such that even the gods are attached to him. Brahma and Vishnu are also afraid of him. All who have bodies are the same due to knowledge, intelligence and wisdom. In this world, man should keep only one thing in mind and that thing is that giving pain to any living being is a sin. There is no other religion like showing mercy to living beings.

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