है शिष्य दान चार प्रकार के होते हैं रोगी को औषधि देना चाहिए भयभीत का भाई छोड़ना भूखे को भोजन करना तथा विद्यार्थियों को विद्या दान देना औषधि और मंत्र के प्रभाव से धन एकत्र करना चाहिए और उसे अपने शरीर का पालन करना चाहिए सुख को स्वर्ग और दुख को नर्क समझना चाहिए वेद में प्रवृत्ति और निवृत्ति नामक दो प्रकार की मान्यताएं हैं उनका ठीक आश्रय यही है कि जीव हिंसा प्रवृत्ति और जीवन पर दया निवृत्ति है वेदांत का यह विचार है कि प्रत्यक्ष से बढ़कर प्रमाण योग्य और कोई बात नहीं है तुम अपने मन में विचार करके स्वयं देखा कि जो लोग यज्ञ में जीवन को बाली करके उसे मार डालते हैं और स्वर्ग प्राप्त करने की इच्छा से अग्नि में तिल घी आदि को जलाते हैं भला इस समय सबसे बढ़कर आश्चर्य और क्या होगा यह तो बिल्कुल व्यर्थ की बातें हैं हे नारद इस प्रकार पूर्ण कृति नमक विष्णु ने धर्म के विपरीत बहुत सी बातें कही है उन बातों को सुनकर कहां से निवासी मोहित हो गए और पुराने धर्म से उनका चित ऊंचा करने लगा जिस प्रकार विष्णु जी ने पुरुषों को मोहित किया इस प्रकार लक्ष्मी जी ने भी स्त्रियों को बौद्ध धर्म का उपदेश करके उन्हें उल्टी बातें सिखा दी तथा उन्हें अपने अधीन कर लिया उन्होंने स्त्रियों को केवल शरीर पालन करने की शिक्षा दी तथा अपने उपदेश से प्रति व्रत धर्म को व्यर्थ सिद्ध कर दिया उन्होंने वर्ण आश्रम धर्म को समाप्त कर देने वाले अनेक उपदेश किया है नारद उनके उपदेश का सारांश यह था वेद जी से आनंद स्वरूप ब्रह्मा कहते हैं वह अमृत नहीं है अपितु उसकी तपस्या यह है कि जब तक इस शरीर को इंद्रियां शिथिल नहीं होती तब तक खूब आनंद उपभोग करना चाहिए परोपकार के लिए इस प्रकार तैयार रहना चाहिए कि यदि कोई मनुष्य अपना शरीर मांगे तो उसे भी दान कर देना चाहिए उसकी उत्पत्ति पर भी अधिकार है कौवे कुत्ते सिया आर कीड़े आदि से अपना भाई मानते हैं यह एक न एक दिन अवश्य ही जल जाता है तब से रखने से भी क्या लाभ यदि आप जियो को इसके द्वारा कोई लाभ पहुंचा सके तो वह उत्तम है यदि संपूर्ण सृष्टि को उत्पन्न करने वाला ब्रह्मा जी को मनाना चाहिए जो सब लोग आपस में भाई के समान है फिर उन्होंने परस्पर विवाह करके धर्म क्यों किया है इसे सिद्ध होता है कि इस सृष्टि को उत्पन्न करने वाला ब्रह्मा नहीं है इस संबंध में वेद जो कहते हैं वह मिथ्या है वेदों के कहने पर कभी नहीं चलना चाहिए जिस दिन चार वर्णों का वर्णन किया जाता है उन यदि उन पर विचार किया जाए तो वह भी मिथ्या प्रतीत होता है क्योंकि यह शरीर पांच तत्वों से उत्पन्न होता है और उसी में मिल जाता है इस प्रकार सब जब सभी लोग पांच तत्वों से उत्पन्न हुए हैं तब उनमें अलग-अलग वर्ण किस प्रकार हो सकते हैं वास्तु जाति के विचार को झूठा समझना चाहिए और यह जानना चाहिए कि सब मनुष्य परस्पर एक समान है हे नारद इस प्रकार बहुत सी बातें करके लक्ष्मी ने स्त्रियों के प्रति व्रत धर्म को छुड़ा दिया विष्णु जी और लक्ष्मी के उन उपदेशों का काशी की प्रजा पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि सब लोग अपने धर्म को त्याग कर अपनी इच्छा अनुसार भोग विलास करने लगे सब पुरुष स्त्रियों के खाने में चल उठ स्त्रियां जो कहती उसी के अनुसार वह आचरण करते थे इस प्रकार धर्म विरुद्ध आचरण करने से सब और पाप फैल गया उसे सब राजा वायो दास ने ब्राह्मण रूपी गणपति का स्वरूप कर राजा राज कार्य से अपना हाथ खींच लिया अपनी प्रजा की ऐसी दशा देखकर उसकी बात को सत्य समझ कर वह इस प्रतीक्षा में रहने लगा कि कब दूसरा ब्राह्मण आए और मेरे मन के दुख को दूर करें इस चिंता में वह दिन-रात लग रह
TRANSLATE IN ENGLISH
There are four types of donations for a disciple. Medicine should be given to the sick, brother of the fearful should be left, food should be given to the hungry and knowledge should be given to the students. Wealth should be collected with the effect of medicine and mantra and one should take care of one's body. Happiness should be considered heaven and sorrow should be considered hell. There are two types of beliefs in the Vedas called Pravritti and Nivritti. Their correct basis is that violence against living beings is Pravritti and mercy on life is Nivritti. The Vedanta believes that there is nothing more provable than direct evidence. You can think in your mind and see for yourself that those people who sacrifice life in the yagya and kill it and burn sesame, ghee etc. in the fire with the desire to attain heaven. Well, what can be more surprising at this time? These are absolutely useless things, O Narada. In this way, the complete work of Vishnu has said many things contrary to religion. Hearing those things, the residents got fascinated and started elevating their mind from the old religion. Just as Vishnu ji fascinated men, in this way Lakshmi ji also taught women the opposite things by preaching Buddhism and made them subservient to her. She taught women only to take care of the body and He proved the religion of every fast to be futile by his preaching. He has preached many things which ended the Varna Ashram Dharma. The gist of Narad's preaching was that Brahma, who is the embodiment of bliss, says from the Vedas that it is not Amrit, but its penance is that till the senses of this body do not become weak, one should enjoy a lot of bliss. One should be ready for charity in such a way that if a person asks for his body, he should donate it. He also has a right over his birth. He considers crows, dogs, jackals and insects etc. as his brothers. It will surely burn one day or the other. Then what is the use of keeping it. If you can benefit someone by it, then it is good. If Brahma, who created the whole universe, should be appeased. All people are like brothers to each other, then why did they perform Dharma by marrying each other, it proves that Brahma is not the creator of this universe. What the Vedas say in this regard is false. One should never follow the Vedas. If we think about the description of the four Varnas, then that also seems false because this body is created from five elements. When all people are born from five elements, then how can they have different castes? The idea of caste should be considered false and it should be known that all human beings are the same. O Narada, by saying many things like this, Lakshmi got rid of the fasting religion towards women. Those teachings of Vishnu ji and Lakshmi had such an effect on the people of Kashi that everyone gave up their religion and started enjoying pleasures as per their wish. All the men started going to the women's food and behaved according to what the women said. By behaving against religion in this way, sin spread everywhere. King Vayo Das took the form of Ganpati in the form of a Brahmin and withdrew himself from the royal work. Seeing such a condition of his people, considering his words to be true, he started waiting for when another Brahmin would come and remove the sorrow of his heart. He was engaged day and night in this worry.
0 टिप्पणियाँ