श्री शिव महापुराण कथा छव खंड अध्याय 12



इतनी कथा सुनकर नारद जी ने कहा है पिता राजा देवदास ने अपना राज्य किसी प्रकार छोड़ तथा शिवाजी मधुरचल पर्वत से उतरकर किसी प्रकार का सीजी में पहुंचे और वहां उन्होंने क्या-क्या चरित्र किया यह सब आप मुझे विस्तार पूर्वक सुनने की कृपा करें ब्रह्मा जी बोले ही पुत्र या शिव ने यह देखा कि गणेश जी की काशी से लौटकर वही आए तो उन्हें अत्यंत चिंता हुआ फिर उन्होंने विष्णु जी की ओर देखते हुए यह कहा है विष्णु जी तुम संपूर्ण संसार को आनंद प्रदान करने वाले तथा सब का पालन करने वाले हो हम तुम्हें अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय समझते हैं देखो आप तक हमने बहुत से लोगों को काशी भेजा परंतु वे सब वही स्थिति हो गए ना तो उन्हें हमारा काम ही पूरा किया और न लौटकर किया है पता नहीं उन्हें किसी विपत्ति ने घेर लिया है आज तो हम तुमसे यह कहते हैं कि आप तुम्हें जाकर हमारे कार्य को पूर्ण करो तुम अन्य लोगों के समान वहीं मत रह जाना आप तुम वहां उपाय करो जिससे हमारा यह कार्य भी सिद्ध हो जाए तुम स्वयं ही बुद्धिमान हो अतः तुम्हें अधिक क्या समझ आया जाए हे नारद भगवान सदा शिव के मुख से निकले हुए इस वचनों को सुनकर विष्णु जी ने कहा यह प्रभु आप परम ब्रह्म है हमारा तो यह विश्वास है की संपूर्ण अंक पर आपकी जांच को दिलाने वाले आप ही हैं आप ही यदि किसी को कोई सेवा करने की आज्ञा देते हैं तो उसका सौभाग्य ही समझना चाहिए सब लोग अपने-अपने बुद्धि के अनुसार आने के उपाय करते हैं परंतु उनकी सिद्धि आपके ही हाथ में रहती है सभी सांसारिक कार्य आपकी कृपा के बिना इस्पाल है आप ही सब कर्मों के साक्षी तथा सबको जीवन दान देने वाले हैं संपूर्ण मंत्र आपके ही अधीन रहते हैं तथा आपकी कृपा से ही सब कार्य की पूर्ति होती है आपकी शुभ दृष्टि द्वारा ही जीव को आनंद प्राप्त होता है आपकी प्रतिक्षण करके यदि किसी कार्य को किया जाए तो वह अवश्य ही सफल होता है आप यदि आप स्वयं आ गया देखकर इस कार्य को करने के लिए भेज रहे हैं तो मैं भी अपने माया के बल द्वारा इसे पूर्ण करूंगा मुझे मुर्गित देखने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जिस समय आपने मुझे आज्ञा दी है वह समय ही मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ है मैं आप सीख रही खांसी में पहुंचता हूं और आप विश्वास रखें की प्राण चले जाए पर भी मैं इस कार्य को पूर्ण करूंगा हे नारद इतना कह कर विष्णु जी ने शिवजी को बारंबार प्रणाम किया था दो प्रांत हुए उसकी स्तुति करते हुए काशीपुरी चल दिए जिस समय में काशी में पहुंचे तो वहां की सुंदरता देखकर उन्हें अत्यंत प्रसन्नता हुई उन्होंने मस्तक नया कर सर्वप्रथम काशी को प्रणाम किया फिर उसे स्थान को गए वहां जहां गंगा तथा वरुण नदी परस्पर मिलती है उन्होंने वहां हाथ-पौध होकर आज मन किया तथा स्नान करके शिव जी का पूजन किया जिस स्थान पर उन्होंने स्नान किया था वह स्थान उसे दिन से पदों तक तीर्थ के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुआ वहां जो व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा करते हैं उन्हें संपूर्ण पापों से मुक्ति प्राप्त होती है विष्णु जी ने वाहन आदि केशव नमक अपने स्वरूप का भी पूजन किया जिस स्थान पर वह मूर्ति प्रतिपादित उसे श्वेत दीप कहकर पुकारा जाता है वहां हीरो दादी आदि अनेक तीर्थ और भी है वहां स्नान करने से मनुष्य के संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं उसे तीर्थ से दक्षिण की ओर चक्र तीर्थ गड़ा तीर्थ पाषाण तीरथ राम तीरथ गरुड़ तीर्थ नारा तीर तथा पहले तीर्थ आदि अनेक तीर्थ है उन सब में स्नान करने से मनोकामना की प्राप्ति होती है और मनुष्य समस्त पापों से छुटकारा मुक्ति पद को प्राप्त करता है

TRANSLATE IN ENGLISH 

Hearing this story, Narad ji said that father, king Devdas somehow left his kingdom and Shivaji came down from Madhurachal mountain and somehow reached CG and what all they did there, please tell me all this in detail. Brahma ji said that son, Shiva saw that only Ganesh ji returned from Kashi, then he got very worried, then looking towards Vishnu ji, he said that Vishnu ji, you are the one who gives happiness to the whole world and protects everyone, we consider you dearer than our lives, look, we sent many people to you in Kashi, but they all got into the same condition, neither did they complete our work nor did they return, we don't know what trouble has surrounded them, today we tell you that you go and complete our work, you don't stay there like other people, you find a way there so that our work also gets accomplished, you yourself are intelligent, so what more do you understand, O Narad, on hearing these words coming out of Lord Sada Shiva's mouth, Vishnu ji said that Lord, you are the supreme Brahma, this is our belief. You are the one who gets your complete examination done. If you order someone to do any service, then it should be considered his good fortune. Everyone tries to achieve it according to their own intelligence, but their success is in your hands. All worldly works are impossible without your grace. You are the witness of all the deeds and the giver of life to everyone. All the mantras are under your control and all the work is accomplished by your grace. The living being gets happiness only by your auspicious sight. If any work is done by following you every moment, then it is definitely successful. If you yourself have come and are sending me to do this work, then I will also complete it by the power of my Maya. I do not need to look for a mortuary because the time when you have ordered me is the best time for me. I will reach the place where you are learning and you should be confident that even if I lose my life, I will complete this work. O Narada, saying this, Vishnu ji repeatedly bowed to Shiv ji and went to Kashipuri, after passing through two provinces, praising it. When he reached Kashi, he was impressed by the beauty of the place. He was very happy to see this. He bowed his head and first of all saluted Kashi. Then he went to the place where the Ganga and Varuna rivers meet. He prayed there and after taking a bath worshipped Lord Shiva. The place where he bathed became famous in the world as a pilgrimage from the day to the day. The person who worships Lord Vishnu there gets freedom from all sins. Lord Vishnu also worshipped his form like Keshav, the vehicle etc. The place where that idol was installed is called Shwet Deep. There are many other pilgrimages like Hero Dadi etc. By taking a bath there, all the sins of a man are destroyed. To the south of that pilgrimage, there are many pilgrimages like Chakra Tirtha, Gada Tirtha, Paashn Tirtha, Ram Tirtha, Garuda Tirtha, Nara Tirtha and Pehle Tirtha etc. By taking a bath in all of them, the wish is fulfilled and man gets freedom from all sins and attains salvation.

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