श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 56



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद अब मैं तुम्हें दुर्वेश के संघार की कथा सुनाता हूं जिस प्रकार विष्णु ने नरसिंह का अवतार धारण कर देवताओं को आनंद प्रदान करने के लिए ड्यूटी के दोनों पुत्रों को मारा था वह अद्भुत वृतांत तुम जानते ही हो अब आगे की कथा सुनो जब विष्णु ने नरसिंह तथा 12 रूप धारण कर ड्यूटी के दोनों पुत्रों का संघार कर दिया उसे समय ड्यूटी ने अत्यंत विलाप किया तब ड्यूटी के भाई डर्बीज ने उसे समझाते हुए यह कहा कि तुम किसी प्रकार का शौक मत करो परंतु द्वितीय का शक दूर ना हुआ यह देख दुर्वासा ने अपने मन मे विचार किया कि देवताओं ने विष्णु के हाथ से मेरे बहनोई को अनस मरवा डाला है इसलिए मुझे उन्हें कष्ट पहुंचाना चाहिए सबसे पहले मुझे यह पता लगाना चाहिए कि वह किस कारण अमर है और किस कारण बाल का भरोसा रखते हैं तथा किस उपाय द्वारा उन्हें दुख पहुंचाया जा सकता है वस्तु बहुत सोच विचार करने के उपरांत वही इस निश्चय पर पहुंचा कि ब्राह्मण वेद द्वारा अपनी रक्षा करते हैं और विवेक देवता ब्राह्मणों द्वारा पालते हैं यदि ब्राह्मण नष्ट हो जाए तो वेद भी नष्ट हो जाएगा और जब वेद तब देवता भी दुर्लभ हो जाएंगे इस प्रकार जब देवता दुर्लभ हो जाएंगे तब मैं उन्हें जीत कर उन पर राज करूंगा और आनंद को प्राप्त हो जाऊंगा वस्तु किस प्रकार ब्राह्मण संसार में सबसे बड़े हैं आयुर्वेद के मार्ग पर चलते हैं उसी प्रकार का सी ब्राह्मणों का सबसे बड़ा घर है इसलिए मुझे सर्वप्रथम काशी में पहुंचकर ब्राह्मणों को मारना चाहिए तदुपरांत अन्य स्थानों में जाकर ब्राह्मणों को नष्ट करना चाहिए हे नारद या विचार कर डर्बीज काशी में जा पहुंचा वहां उसने शास्त्रों ब्राह्मणों का वध कर डाला या ब्राह्मण उसके भाई से भयभीत हो अपने प्राण की रक्षा करने के हेतु वन में भागने लगे तब वह 1 में जाकर उन सबको करने लगा वह अनेक प्रकार की माया करना जानता था इसलिए कभी वन में जाकर पशु बन जाता कभी जाल में पहुंचकर मगर बन जाता और कभी पृथ्वी पर रहकर रक्षा रूप द्वारा ब्राह्मणों को खा लेता था एक दिन की बात है की रात्रि के समय एक शिव भक्त शिवजी के मंदिर में बैठकर पूजा कर रहा था उसे समय दूरदर्शन ने उसे देखकर यह विचार किया कि मैं सिंह का स्वरूप धारण कर इसे मार डालूंगा परंतु जब उसने यह देखा कि सिंह का रूप धारण करके मैं उसे नहीं खा सकता हूं तब वह पर्वत के समान विशाल स्वरूप धारण कर उसे स्पर्श करने में असमर्थ रहा उसका यह अनाचार देखकर शिवजी भक्त की रक्षा हेतु उसी क्षण व्यास के रूप में प्रकट हो गए

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Brahma Ji said, O Narada, now I will tell you the story of the killing of Durvesh. You already know the amazing story of how Vishnu killed both the sons of Durvesh by taking the form of Narasimha to give pleasure to the Gods. Now listen to the story further. When Vishnu killed both the sons of Durvesh by taking the form of Narasimha and Dwitiya, at that time Durvesh wept a lot. Then Durvesh's brother Derbij explained to him that you should not be sad at all. But Durvasa's doubt was not cleared. Seeing this, Durvasa thought in his mind that the Gods have got my brother-in-law Anas killed by Vishnu's hands, so I should hurt them. First of all, I should find out why they are immortal and why they trust Baal and by what means they can be hurt. After thinking a lot, he came to the conclusion that Brahmins protect themselves through Vedas and the Gods nurture wisdom through Brahmins. If Brahmins are destroyed, Vedas will also be destroyed and when Vedas will also become rare, then Gods will also become rare. In this way, when Gods will become rare Then I will conquer them and rule over them and attain bliss. Just as the Brahmins are the greatest in the world and follow the path of Ayurveda, similarly, Kashi is the biggest house of Brahmins. Therefore, I should first reach Kashi and kill the Brahmins, and then go to other places and destroy the Brahmins. O Narada, after thinking this, Derbyj reached Kashi. There he killed the Brahmins. The Brahmins, scared of his brother, started running to the forest to save their lives. Then he went to Kashi and started killing them. He knew how to do many types of illusions. Therefore, sometimes he would go to the forest and become an animal. Sometimes, after reaching a trap, he would become a crocodile. Sometimes, staying on the earth, he would eat the Brahmins by using the protective form. One day, at night, a Shiva devotee was sitting in the temple of Shiva and worshiping. At that time, Durdarshan saw him and thought that he would take the form of a lion and kill him. But when he saw that he could not eat him by taking the form of a lion, he assumed a form as huge as a mountain and was unable to touch him. Seeing this misconduct of his, Shiva protected the devotee. Hetu appeared in the form of Vyasa at that very moment

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