श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 55



ब्रह्मा जी ने कहा है नारद अब हम तुम्हें नगासुर अर्थात गज के संघर्ष का वृतांत सुनाते हैं जिस प्रकार शिवजी ने अपने त्रिशूल द्वारा उसका वध करके उसे अपना घर बनाया था वह कथा सुनो आप भगवती जगदंबा ने विष्णु जी तथा मुझ पर कृपा करते हुए भगवान सदाशिव की आज्ञा अनुसार देवताओं एवं ऋषि मुनियों का उपकार करने के हेतु महिषासुर का संघार किया तब उसका पुत्र गजसुर अत्यंत दुखी हो अपने पिता केवट का स्मरण करके देवताओं से बदला लेने की इच्छा करने लगा इसी उद्देश्य से उसने वन में जाकर अत्यंत विश्राम पूर्वक हमारा तब करना आरंभ किया उसकी अभिलाष यह थी कि जो स्त्री पुरुष कामदेव से नहीं जीत पाए हैं उनमें से कोई भी मेरा संघर्ष न कर सके वस्तु वह हिमाचल के शिखर पर अंगूठे के बल खड़ा हो आकाश की ओर आंखें उठाई अपने दोनों भुजाओं को ऊंचा किया बहुत वर्षों तक तपस्या करता रहा हे नारद उसकी तपस्या के तेज के सम्मुख सूर्य का तेज भी मालिन पड़ गया जब उसका तब पूर्णता को प्राप्त करने के निकट पहुंचा उसे समय उसके शरीर से अग्नि की ऐसी ज्वालामुखी की वह अपनी तेज द्वारा संपूर्ण संसार को भ्रम करने लगी उसे समय सब देवता ऋषि मुनि अत्यंत दुखी होकर मेरे पास आए और गजसुर के तब का वर्णन करते हुए कहे लगे हे प्रभु आप कृपा करके गजसुर के पास जाइए और उसे वरदान देकर संतुष्ट कीजिए अन्यथा हमारा दुख बढ़ता ही चला जाएगा देवताओं की यह प्रार्थना सुनकर माय रिंग तथा दक्ष आदि अपने पुत्रों को साथ ले गज और के पास पहुंचा वहां उसे वह व्रत आप करते हुए देखकर मैं अत्यंत आश्चर्य में भरकर बोला एक हजारों हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न है तुम जो वरदान चाहे मांग लो हे नाथ मेरे मुंह से निकले हुए इन शब्दों को सुनकर गजसुर ने अपने नेत्र खोलकर मुझे प्रणाम किया दादू प्रांत बहुत प्रकार से स्तुति करते हुए इस प्रकार बोला है प्रभु माया चाहता हूं कि जो स्त्री पुरुष कामदेव के अधीन रहते हैं उनमें से कोई भी मुझे किसी दशा में नहीं मार सके तथा मेरे ऊपर किसी भी शास्त्र का प्रहार अपना प्रभाव ना डाल सके गजसुर किया इच्छा सुनकर मैं यह वस्तु कहकर अपने स्थान को लौट आया तब गजसुर भी अपने घर लौट गया वहां जाकर उसने बहुत सी सीन इकट्ठी की और तीनों भुनो को अपने कम पराक्रम से जीत लिया फिर वह अच्छी तरह से प्रजा का पालन करता हुआ कपाट राज करने लगा इस प्रकार को समय तक तो उसने धरमपूर्वक राज किया परंतु जब उसे राजपथ का अहंकार हुआ और यह विश्वास हो गया कि कोई भी नहीं जीत सकता तब वह धर्म करने पर उतर आया उसे समय अपने ब्राह्मण को अनेक प्रकार के कष्ट देने आरंभ कर दिए तथा तपसियों एवं धर्मात्माओं को भी सताने लगा एक दिन वह जाकर में भर शिव जी की राजधानी आनंदवन अर्थात काशी जा पहुंचा हे नारद इसकी उत्पादन से भयभीत होकर आनंदवन अर्थात काशी के निवासी शिवजी के समीप जहां हाथ जोड़कर इस प्रकार कहने लगे हैं प्रभु तीनों लोक को जीतने के पश्चात गज और आप काशीपुरी में भी आप पहुंचा है उसने अपने अत्याचारों से सब लोगों को दुख पहुंचा है जिस समय वह हाथी के समान चाल से चलता है उसे समय पर्वत हिल उठाती है तथा वृक्ष टूट कर गिर पड़ते हैं बादल उसकी आज्ञा पाकर ही आकाश में उड़ सकते हैं तथा उसके भाई से समुद्र भी सूख जाते हैं इस समय वाराणसी क्षेत्र में आकर उसने आपके भक्तों को बहुत दुख पहुंचा है आपके अतिरिक्त उसे जीतने वाला अन्य कोई नहीं है अतः आप उसका संघार करके सब लोगों को प्रसन्न कीजिए

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Brahma Ji said, Narad, now we will tell you the story of the struggle of Nagasur i.e. Gaj. How Shiv Ji killed him with his trident and made his home, listen to that story. Bhagwati Jagdamba, showering her blessings on Vishnu Ji and me, killed Mahishasur as per the order of Lord Sadashiv to do good to the Gods and Rishis. Then his son Gajsur became very sad and remembering his father Kewat, he wanted to take revenge from the Gods. For this purpose, he went to the forest and started meditating after taking a lot of rest. His wish was that none of the men and women who could not defeat Kaamdev should be able to fight with him. Therefore, he stood on his toes on the peak of Himalaya, raised his eyes towards the sky and kept meditating for many years. O Narad, the brightness of his penance faded away even before the brightness of the Sun. When he came close to attaining perfection, at that time such a volcano of fire came out of his body that it started misleading the whole world with its brightness. At that time all the Gods Rishi Muni came to me in great sorrow and while describing the story of Gajsur said, O Lord, please go to Gajsur and satisfy him by giving him a boon, otherwise our sorrow will keep on increasing. On hearing this prayer of the gods, My Lord and Daksh etc. reached Gajsur with their sons and on seeing him observing that fast, I was very surprised and said, “We are pleased with your penance, you can ask for any boon you want, O Lord.” On hearing these words from my mouth, Gajsur opened his eyes and bowed down to me. Dadu praised me in many ways and said, “Lord Maya, I want that none of the men and women who are under the control of Kaamdev, should be able to kill me under any circumstances and the attack of any weapon should not have any effect on me.” On hearing Gajsur’s wish, I said this and returned to my place. Then Gajsur also returned to his home. There he collected a lot of sins and won over the three bhunas with his might. Then he started ruling Kapat taking good care of his subjects. For some time he ruled with dharma. He ruled but when he became arrogant about his royal path and was convinced that nobody can defeat him, then he started doing Dharma. At that time, he started giving many kinds of troubles to his Brahmins and started harassing ascetics and religious people as well. One day, he went and reached Shiva's capital Anandvan, i.e. Kashi. O Narada, frightened by his antics, went to Shiva, the resident of Anandvan, i.e. Kashi, where, with folded hands, he said, "Lord, after conquering the three worlds, Gaj and you have also reached Kashipuri. He has caused pain to all the people with his atrocities. When he walks with the speed of an elephant, mountains shake and trees break and fall. Clouds can fly in the sky only after getting his permission. And because of his brother, even the oceans dry up. At this time, by coming to Varanasi region, he has caused a lot of pain to your devotees. There is nobody else except you who can defeat him. So, please all the people by killing him.

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