श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 54



इतनी कथा सुनकर नारद जी ने कहा हे पिता आप श्री कृष्ण जी अनुरोध भरोसा को साथ लेकर द्वारा का को चले गए तब वनसुर ने क्या किया हुआ मुझे बताने की कृपा करें शिव जी ने मनसूर को अपना घर किस प्रकार बनाया हुआ ब्रिटेन भी मुझे विस्तार पूर्वक चाहिए या सुनकर ब्रह्मा जी बोले ही पुत्र श्री कृष्ण चंद्र के चले जाने के पश्चात वनसुर अपने मूर्खता पर अत्यंत लज्जित हुआ तथा अपने अहंकार को अधिकार नहीं लगा गुस्सा में नंदीश्वर ने वादा और के पास पहुंचने पहुंच कर उसे समझाते हुए कहा यह वाला सूट ने शिव जी के सम्मुख अपने संघट का प्रदर्शन किया था उसी का यह फल तुम्हें प्राप्त हुआ है आप तुम शिव जी के शरण में आए हो शिवजी की इच्छा से जो कार्य ह हो तुम उसी में प्रसन्न  रहा करो और संपूर्ण अहंकार को त्याग करके उन्हें की सेवा में लगे रहो तुम तांडव नृत्य द्वारा शिवजी को रिजाओ तब हुए प्रसन्न होकर तुम्हारी चिताओं को नष्ट कर देंगे हे नारद यह सुनकर वनसुर अत्यंत प्रसन्न हो शिवजी के समीप जाकर रोने लगा और अपने अपराध की क्षमा मांगते हुए स्तुति करने लगता दो प्रांत उसने शिवजी के सम्मुख तांडव नृत्य करना आरंभ किया उसे नृत्य में उसने पैड गति प्रत्यय चित प्रमुख गति मदन बाद गति तथा सरकांबा आदि सब प्रकार की गतियां एवं भागों का प्रदर्शन किया उसे नृत्य को देखकर शिवजी ने अध्ययन प्रसन्न होकर होना शुरू यह कहा है वनसुर तेरे नृत्य एवं गण द्वारा हम अत्यंत प्रश्न है तू हमें अत्यंत प्रिय है इसलिए हमें अपनी लीला द्वारा तेरे संघार को नष्ट कर दिया अब तू जो चाहे वरदान मांग ले यह सुनकर बाणासुर में उत्तर दिया है प्रभु आप मेरे ऊपर यही कृपा कीजिए कि मेरा शरीर दैत्य भाव से छूट जाए और मैं आपकी घरों में स्थान प्राप्त करूंगा इसके साथ ही आप मुझे यह वरदान भी दीजिए कि मेरे पुत्री उषा द्वारा जी बालक की उत्पत्ति हो वह सोपुर का राज प्राप्त करेगा वह बालक देवताओं से कभी भी शत्रुता ना करें तथा मेरे वंश से देते भव सदा के लिए नष्ट हो जाए मायाबीन चाहता हूं कि मुझे आपकी नवधा भक्ति की प्राप्ति हो और मैं आपके भक्तों से विशेष इसने रखो हे नारद इतना कह कर वादा और शिव जी के चरणों पर गीत पड़ा इसने की अधिकता के कारण उसके नेत्र से आंसू धरा पर निकाली और कांड घाट हो गया यह दशा देखकर शिवजी अत्यंत प्रसन्न हो वनसुर को अपने हाथों से उठाकर हृदय से लगाते हुए बोले ही वनसु तुम हमारे परम भक्त हो तुमने हमसे जो वरदान मांगे हैं हम उन सबको तुम्हें देते हैं तुम हमारे घरों के स्वामी होकर महाकाल नाम से प्रसिद्ध होगी तुम युद्ध में कभी भी किसी से प्रार्थना होंगे और हमारी कृपा से सभी देवता तुम्हारे सेवक बने रहेंगे इतना कहा शिवजी ने वहां और को अत्यनिष ने पूर्ण दृष्टि से देखा और उसके मस्ताक्स पर अपना हाथ फेरने लगे उसे समय वहां शुरू भी अत्यंत प्रसन्न हुआ तथा महाकाल होकर शिवजी की सेवा में रहने लगा

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Hearing this story, Narad ji said, O father, you went to Dwaraka taking Shri Krishna ji with you on the request and trust, then what did Vanasura do? Please tell me in detail how Shiv ji made Mansur his home. On hearing this, Brahma ji said, son, after Shri Krishna Chandra left, Vanasura was ashamed of his foolishness and his ego did not take over. In anger, Nandishwar reached Vanasura and explained to him, saying that this person had displayed his strength in front of Shiv ji, you have got this result of that. You have come under the shelter of Shiv ji, whatever work is done by Shiv ji's wish, you should be happy in that and leaving all the ego, keep on serving him. You should please Shiv ji with Tandava dance, then he will be pleased and will destroy your pyres. O Narad, hearing this, Vanasura became very happy and went near Shiv ji and started crying and started praising while asking forgiveness for his crime. He started doing Tandava dance in front of Shiv ji. In the dance, he did 4000 steps. Pratyay Chit major movement, Madan Baad movement and Sarkamba etc. all types of movements and parts were performed. Seeing that dance Shiv ji started studying with pleasure and said, "Vanasur, we are very much pleased with your dance and Gan, you are very dear to us, that is why we have destroyed your body through our leela, now you can ask for any boon you want." Hearing this Banasura replied, "Prabhu, please do this favour on me that my body should be freed from the demon form and I will get a place in your house, along with this, please also give me this boon that a child should be born from my daughter Usha, he will get the kingship of Sopur, that child should never be inimical to the gods and the evil spirit should be destroyed from my lineage forever." Mayabin, I want that I may get your Navdha Bhakti and I will be specially blessed by your devotees. Keep this promise, O Narada, saying this, he fell on the feet of Shiv ji, due to the excessiveness of this, tears came out of his eyes and the incident happened. Seeing this condition Shiv ji became very pleased and lifting Vanasura with his hands, hugging him to his heart said, "Vanasur, you are ours." You are a supreme devotee, whatever boons you have asked from us, we give them all to you. You will become the lord of our houses and will be famous by the name Mahakal. You will never be prayed to by anyone in war and by our grace, all the gods will become your servants. Having said this, Lord Shiva looked at him with full sight and started caressing his forehead. At that time, Shri Ram also became very happy and became Mahakal and started living in the service of Lord Shiva.

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