श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 52



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद जी समय चित्रलेखा ने अनुरोध को लेकर आकाश को चली थी उसे समय अनुरोध की पत्नी जोर-जोर से रोने लगी थी उसे रुद्रणाग को सुनकर तथा अनुरोध को ना देख कृष्ण बलराम सहित समस्त यदुवंशी को अत्यंत चिंता हुआ उसे सब ने अनुरोध को चारों ओर ढूंढा परंतु किसी भी प्रकार पता ना चलाओ किसी प्रकार चारों महीने बीट व्यतीत हो गए और कोई यहां ना जान सका की अनुरोध को कौन ले गया है हे नारद तब भगवान सदा शिव की आज्ञा पाकर एक दिन तुम श्री कृष्ण जी के पास पहुंचे और उन्हें आदि से अंत तक का संपूर्ण विस्तार का सुनाया उसे समय गरुड़ भी श्री कृष्ण की सहायता में निर्मित उसके पास जा पहुंचा सो सिद्धपुर पहुंचकर श्री कृष्ण ने अपनी सेवा द्वारा नगर को चारों ओर से घेर लिया और यह देखकर वर्णसुर युद्ध करने की इच्छा से श्री कृष्ण जी के सामने आया तथा उसके संरक्षक भगवान रुद्र भी युद्ध क्षेत्र में आप पहुंचे हे नारद उसे समय दोनों सेनन में घोर युद्ध लगा रूद्र ने श्री कृष्ण चंद्र जी के साथ युद्ध उठाना वीरभद्र प्रद्युमन के साथ लड़ने लगे तथा खूब कान और कुंभ बलराम जी के साथ युद्ध करने लगे वनसुर के पुत्र ने सांबा का सामना किया तथा शिव जी के वहां नंदीश्वर गरुड़ के साथ युद्ध करने लगे इस प्रकार सभी योद्धा अपना अपना जोड़ देखकर के साथ युद्ध छेड़ रखा था इस प्रकार उसे युद्ध में एक और दो श्री कृष्ण चंद्र जी थे और दूसरी और भगवान सदा शिव जी थे उसे खुद का वर्णन किस प्रकार किया जाए कोई भी युद्ध अपने स्थान से तनिक भी विचलित नहीं होता था जिस समय श्री कृष्ण जी और बलराम जी ने अपने शस्त्र वर्ष द्वारा देता हूं तथा शिव गानों का मुख्य फेर दिया उसे समय शिव जी ने भी अत्यंत क्रोधित होकर अपने घर गर्जना द्वारा यदुवंशियों की सेवा को भयभीत कर दिया जिसके कारण हुए लोग भी ब्लू क्षेत्र से भागने लगे तब श्री कृष्ण जी चंद्र जी ने बहुत क्रोध करके शिव जी के स्थान के ऊपर अपने बहन वालों का प्रहार किया परंतु शिव जी ने कौन सा वाहनों को पल भर में ही काट डाला तब श्री कृष्ण चंद्र जी ने क्रुद्ध होकर शिवजी के ऊपर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया उसे ब्रह्मास्त्र को भी शिवजी ने अपने ब्रह्मास्त्र से निष्फल कर दिया इस प्रकार श्री कृष्ण ने शिव जी के ऊपर जितने भी अस्त्र-शस्त्र चलाए हुए हुए सब निष्फल हो गए यह देख श्री कृष्ण चंद्र जी ने कॉप में भरकर शिव के ऊपर सितारों का प्रयोग किया जिसके कारण शिवजी की सेवा के सभी योद्धा तर-तर कर कांपने लगे तब शिवजी ने पीत ज्वर को छोड़ा जिसे सेट ज्वार को निष्फल कर दिया गया वह शिवजी की स्तुति करता हुआ उनके शरण में जा पहुंचा उसे समय शिव जी ने दोनों जड़ों को यह आज्ञा दी कि तुम दोनों हमारे भक्तों को कभी ना सताना हम तुम्हें आज से अपना सेवक बने लेते हैं और तू अब तुम प्रसन्न होकर अपने घर को जाओ या सुनकर सेट ज्वार तथा पीत ज्वर अपने-अपने स्थान को चले गए

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Brahma Ji said O Narad Ji, Chitralekha had gone to the sky with Anuradha. Anuradha's wife started crying loudly. Hearing Rudranag and not seeing Anuradha, all the Yaduvanshis including Krishna and Balram got very worried. Everyone searched for Anuradha everywhere but could not find out in any way. Somehow four months passed and no one could find out who had taken Anuradha. O Narad, then after getting the permission of Lord Sada Shiva, one day you reached Shri Krishna and told him the complete details from beginning to end. Garuda, also created with the help of Shri Krishna, reached there. So, reaching Siddhpur, Shri Krishna surrounded the city from all sides with his service. Seeing this, Varnsur came in front of Shri Krishna with the desire to fight. His protector Lord Rudra also reached the battlefield. O Narad, at that time a fierce battle started between the two armies. Rudra started fighting with Shri Krishna Chandra Ji. Veerbhadra started fighting with Pradyumna and Khub Kan and Kumbh started fighting with Balram Ji. Vansur's son faced Samba and Shiva Ji. There Nandishwar started fighting with Garuda. In this way all the warriors started the war by looking at their strength. In this way in that war there were two Shri Krishna Chandra Ji on one side and Lord Sada Shiv Ji on the other side. How should we describe ourselves? No warrior was moving from his place even a bit. When Shri Krishna Ji and Balram Ji used their weapons and turned the main fire of Shiv's weapons, at that time Shiv Ji also became very angry and frightened the Yaduvanshis by roaring in his house, due to which people also started running away from the Blue area. Then Shri Krishna Chandra Ji got very angry and attacked Shiv Ji's place with his sword, but Shiv Ji cut all the weapons in a moment. Then Shri Krishna Chandra Ji got angry and used Brahmastra on Shiv Ji. Shiv Ji also made that Brahmastra ineffective with his Brahmastra. In this way all the weapons that Shri Krishna used on Shiv Ji became ineffective. Seeing this, Shri Krishna Chandra Ji filled the cob with stars and used stars on Shiv, due to which All the warriors serving Lord Shiva started shivering and getting drenched. Then Lord Shiva released yellow fever which made Set Jwar ineffective. He went to his refuge while praising Lord Shiva. At that time Lord Shiva ordered both the soldiers that you both should never trouble our devotees. We will make you our servants from today and you can go to your homes happily. On hearing this Set Jwar and Yellow Fever went to their respective places.

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