हे नारद बाणासुर ने अपने सेवकों को यह आजा देकर अनुरोध को देखा उसे समय उनका तेजस्वी स्वरूप देखकर उसे बहुत संदेह हुआ इसलिए दास सहस्त्र सी अनुरोध को करने के लिए तैयार हुए यह देखकर अनुरोध भी निर्भय हो उठ खड़े हुए हुए अपने एक हाथ में परिंदा उठाकर तुरंत ही द्वारा की ओर चले तथा उसे सी पर हुई इस प्रकार आक्रमण किया कि एक भी सुना जीवित न बचा इसके पश्चात अनुरोध ने युद्ध करने के लिए जो और सुना ए उसको भी उन्होंने बुरी तरह मारा फिर एक लाख वीर जाकर अंगूर से लड़ने लगे अनुरोध ने उनको भी मार कर वहां से भाग दिया जब बाणासुर को युद्ध का समाचार मिला तब वह स्वयं अपने हालात पर सवार होकर युद्ध करने के लिए चला उसके रथ पर ब्रह्मांड नमक मंत्री सारथी के स्थान पर बैठा हुआ था उसे समय अनुरोध ने अपनी तलवार द्वारा सारथी सहित वर्णन और को घायल कर दिया तब बाणासुर ने अनुरोध पर अपनी सॉन्ग चलाई अनुरोध निभाना शुरू के हाथ से सॉन्ग छीन ली और उसी से वर्णसुर के ऊपर आक्रमण किया उसे युद्ध को देखकर देखते एवं देवता अत्यंत आश्चर्य चकित हुए था वह वाला सुरंग रोड को अत्यंत बलशाली समझ कर वहां से अंतर ध्यान हो गया तब माया युद्ध करके अनुरोध को पर कष्ट दिया कंबाइंड ने वर्णसुर को अनेक प्रकार से समझाया था उसका क्रोध शांत किया फिर उसने अनुरोध को अच्छे-अच्छे उपदेश देकर भली प्रकार समझते हुए कहा है अनुरोध आप तुम वहां और के हाथ जोड़कर कहो कि हम तुमसे हर गए वस्तु तुम हमको प्राण दान दो या सुनकर अनुरोध ने कहा है मूर्ख तो छतरी धर्म नहीं जानता क्षत्रियों को युद्ध के में समझ होकर मारना अत्यंत आनंदी तथा मोक्ष प्रदान करने वाला होता है जब धर्म ही ना रहा तो जीना किस काम का ऐसा मनुष्य दोनों लोक में आनंद नहीं उठा सकता ऐसे वचन सुनकर वनसुर अत्यंत क्रोधित हुआ तथा उसने चाहा कि अनुरोध का वध कर डालें आज तू इस इच्छा से जीवन ही उसने अपना त्रिशूल उठाया तभी आकाशवाणी हुई उस आकाशवाणी को अनुरोध सहित सब ने सुना वह यह थी कि है वनसु तू ऐसा पाप क्यों करता है तू बाली का पुत्र और शिव का भक्त है आज तू यह काम अच्छा नहीं यह बालक मार डालने की योग्य नहीं इसके शिवजी रक्षक हैं शिवजी सबके स्वामी है जिनके अधीन तीनों लोक है वह शिवजी सबका पालन करने वाले तथा प्रलय करने वाले हैं तुझको यही उचित है कि तू ऐसे शिवजी की पूजा किया करें जब शिवजी तेरे ऊपर कृपा करेंगे उसे समय टेरा गव नष्ट हो जाएगा है नारद ही सा आकाशवाणी को सुनकर गाना शुरू से स्थान से उठकर अपने घर चला गया था वह अनुरोध ने भी देवी का स्मरण किया तथा मन मे बड़ी स्तुति की जिस की महा काली जी अत्यंत प्रसन्न हुए वह महाकाली गिरजा का ही एक रूप है उन्होंने अनुरोध को आनंद दिया तथा स्वयं अंतर ध्यान हो गई तब अनुरोध फिर उषा के पास चले गए
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O Narada, after giving this order to his servants, Banasura saw Anuradha. Seeing his radiant form, he became very suspicious. So, Das Sahastra got ready to fight with Anuradha. Seeing this, Anuradha also stood up fearlessly, took a bird in his one hand and immediately went towards the door and attacked him in such a way that not even a single bird was left alive. After this, Anuradha also beat up other warriors who came to fight with him badly. Then one lakh warriors went and fought with Anuradha. Anuradha also killed them and ran away from there. When Banasura got the news of the war, then he himself rode on his chariot and went to fight. On his chariot, a minister named Brahmand was sitting in the place of the charioteer. At that time, Anuradha injured Varnasur along with the charioteer with his sword. Then Banasura played his sword on Anuradha, snatched the sword from the hands of Anuradha and attacked Varnasur with the same. Seeing this fight, the gods were very surprised. Considering that the tunnel to be very powerful, he disappeared from there. Then by fighting with Maya, the combined force troubled Anuradha in many ways. He explained to Anurodh and calmed his anger. Then he explained to Anurodh by giving him good advice and explaining it well, he said, "Anurodh, you and me, with folded hands say that we have lost the thing from you, please give us our life." On hearing this, Anurodh said, "The fool does not know the Chhatri Dharma. Killing Kshatriyas wisely in a war is very pleasurable and gives salvation. When there is no Dharma left, then what is the use of living. Such a person cannot enjoy in both the worlds." On hearing such words, Vansur got very angry and he wanted to kill Anurodh. With this wish, he raised his trident. Then there was an Akashvani (voice from the sky). Everyone including Anurodh heard that Akashvani. It was, "O Vansu, why are you committing such a sin? You are the son of Bali and a devotee of Shiva. What you are doing today is not good. This boy is not worthy of being killed." His Shivaji is the protector. Shivaji is the master of all, under whom all the three worlds are. Shivaji is the protector and the destroyer. It is appropriate for you to worship such Shiva. When Shivaji will shower his blessings on you, at that time your village will be destroyed." Narada On hearing the voice from the sky, the singer got up from his place and went to his house. Anuradha also remembered the goddess and praised her in his heart. Maha Kali was very pleased with her. She is a form of Mahakali Girija. She gave joy to Anuradha and went into inner meditation. Then Anuradha again went to Usha.
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