श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 50



ब्रह्मा जी बोले हे नारद एक दिन उड़नसुर ने अपने तांडव नृत्य से शिवजी को अत्यंत प्रसन्न करके उनसे यह विनती की है शिवजी मैं आपकी कृपा से अत्यंत बलवान हुआ हूं परंतु आपने मुझे जो सहस्त्र भुजाएं देने की कृपा की है वह मेरे शरीर पर बाहर के समान है क्योंकि उनके बाल से आज तक मैंने कोई कार्य नहीं किया है अब तीनों लोकों में कोई युद्ध भी मुझसे नहीं हुआ है मैं इस समय तीनों लोकों में केवल युद्ध के निर्माता फिरता हूं है शिवजी मेरी पूजा है बल्कि अधिकता एवं जूल करती है तो आप आप ही कृपा करके मेरे या झोली दूर करें मैंने संपूर्ण ब्रह्मांड को जीत कर सबको अपने अधीन कर लिया है परंतु मुझे युद्ध की अभी भी बहुत बड़ी इच्छा है आज तू या तो कोई मेरी भुजाएं काट डाले या मैं उसकी भुजाएं काट दूं है नारद शिवजी ने वादा और के मुख से ऐसे वचन सुनकर कहा है वनसुर मुझे दिखा रहा है जो तुमने अपने ऊपर इतना गर्व है तो दैत्यों के कुल में महा धर्म है तू बाली का पुत्र तथा हमारा भक्त होकर भी ऐसी व्यर्थ की बातें करता है यह तेरा अभियान सीख रही मिट जाएगा हमने हमारे समान ही एक मनुष्य तेरे पास आएगा वह तेरी अभिलाष को भले भांति फोन कर देगा उसे समय केवल हमारी कृपा द्वारा ही तेरे प्राणों की रक्षा होगी हम तुझको वह समय भी बताते हैं जब यह सब बात प्रकट होगी जब तेरा या ध्वज जिसका सर मनुष्य के सिर के समान पहचान नीचे मोर का आकार है बिना पवन के ही पृथ्वी पर गिर पड़ेगा तथा नाना प्रकार के आप शगुन कष्ट होंगे तब तुम यह हमेशा समझना कि आप वही समय आया है या शब्द शिवजी ने प्रगति में क्रोध तथा भारतीय से प्रसन्न होकर कह हे नारद शिवजी कैसे वचन सुनकर वनसुर अत्यंत प्रसन्न हुआ था उसने शिवजी की बड़ी पूजा की फिर उसने घर जाकर अपनी स्त्री से संभल कहा उसकी स्त्री का नाम का डाला था जब उसने यह समाचार सुना तो वधाम चिंतित हुए और बोले हे नाथ या क्या आनंद की बात है यह तो बहुत बुरी बात हुई है शिवजी सदैव अहंकार को नष्ट करते हैं इस पर आपकी सब भुजाएं कट जाएगी अब तक आप पराजित नहीं हुए थे परंतु आप आप अवश्य ही आपको पर आ जाए मिलेगी शिवजी ने आपको यह श्राप दिया है वरदान नहीं इससे तो उत्तम है कि आप आप भी शिवजी की भली प्रकार प्रसन्न करके उसकी ऐसी सेवा करें जिससे आपका भला हो कादल का यह कहकर अत्यंत दुख के साथ शिवजी का स्मरण कर वाराणसी के चरणों पर गिर पड़े तब भी आकाशवाणी हुई है कादल तुम अपनी मन में किसी प्रकार का दुख मत करो उसे समय शिवजी ही तुम्हारे सहायक होंगे तथा बाणासुर का गर्भ नष्ट करके उसे पर कृपा करके कादल इस आकाशवाणी को सुनकर कुछ प्रसन्न हुए परंतु इस बात को वर्णसुर ने नहीं जाना साधु प्रांत वह घर से निकाल कर बाहर आया और अपने सभा सदस्यों को एकत्र कर युद्ध की सलाह करने लगा

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Brahma Ji said, O Narada, one day Udansur made Lord Shiv very happy with his Tandava dance and requested him that Lord Shiv, I have become very strong by your grace, but the thousand arms that you have blessed me with are like external ones on my body because till date I have not done any work with them, now I have not fought any war in the three worlds. At present I roam around in the three worlds only as the creator of war. Lord Shiv, if you worship me excessively, then please do me a favour and remove this problem from me. I have conquered the entire universe and brought everyone under my control, but I still have a great desire for war. Today either someone cuts off my arms or I cut off his arms. Narada, on hearing such words from the mouth of Udansur, said that Vanasura is showing me that you are so proud of yourself, then there is a great religion in the clan of demons. You are the son of Bali and our devotee and yet you talk such useless things. This campaign of yours will be destroyed. If we learn this, a man like us will come to you, he will be yours. He will call Abhilash properly and tell him that only by our grace your life will be saved. We will also tell you that time when all this will be revealed. When your flag whose head looks like a human head and has the shape of a peacock below it will fall on the earth without any wind and you will face various kinds of omens and troubles. Then you should always understand that that time has come. Shivji, being pleased with the anger and anger of Shivji, said O Narada. Shivji, hearing such words, Vansur was very pleased. He worshipped Shivji a lot. Then he went home and told his wife to be careful. His wife's name was mentioned. When he heard this news, Vadham got worried and said, O Nath, what a happy thing this is. This is a very bad thing. Shivji always destroys ego. Because of this all your arms will be cut off. Till now you were not defeated, but you will definitely get defeated. Shivji has given you this curse, not a boon. It is better that you also please Shivji well and serve him in such a way that it benefits you. Saying this, Shivji said with great sorrow. Remembering this, he fell at the feet of Varanasi, even then a voice was heard from the sky that Kadal, you should not feel any kind of sorrow in your heart, at that time only Lord Shiva will help you and will show mercy on Banasura by destroying the womb of Banasura. Kadal became happy on hearing this voice from the sky, but Banasura did not understand this, he came out of the house like a saint and gathering the members of his assembly, started advising about war.

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