श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 49



इतनी कथा सुनकर नारद जी बोले ही पिता इस चरित्र के सुनने से वास्तव में मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है अब आप सदा शिव जी का अन्य चरित्र कहें नारद जी की ऐसे लालसा देखकर ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद अब हम तुम्हें शिव जी तथा विष्णु जी के युद्ध का वर्णन सुनते हैं मेरे पुत्र अमरजीत के द्वारा कश्यप उत्पन्न हुए हुए शिव जी के परम भक्त हैं उनके तेरा पटिया थी जिसे अनेक संतान उत्पन्न हुए उसकी सबसे बड़ी पत्नी का नाम द्वितीय था द्वितीय के गर्व से बड़े वीर्य दैत्य उत्पन्न हुए उनमें से दो का नाम ही रन कश्यप शिशु तथा हिरण्याक्ष था वह बहुत समय तक तप करते रहे हिरण कश्यप शिशु के चार पुत्र हुए उनमें पहलाद सबसे छोटा था पहले से विरोचन उत्पन्न हुआ जो शिवजी का अन्यत्र भक्त था विरोचन से बाली उत्पन्न हुआ बल्कि शिव जी का भक्ति बाद उधर तथ तथा देवताओं के साथ युद्ध करने में अत्यंत पहलवान था उसका एक पुत्रवाद नाम का उत्पन्न हुआ बढ़ भी शिवजी का बड़ा भक्त था वह संतानों का मित्र अपने नियम तथा व्रत में अत्यंत दिन निराकार तथा सहस्त्र भुज था उनसे अत्यंत उदारता के साथ महत्वपूर्ण ब्रह्मांड पर राज किया उनसे अपनी राजधानी सोयतीपुर में स्थापित कर बड़ी धूमधाम के साथ स्थान राज किया उसके राज्य में कोई भी दुखी ना था हे नारद एक दिन बाढ़ शिव जी की भक्ति एवं प्रेम में मग्न होकर अपनी सहस्त्र भुज से बाज बाज कर शिवजी के सम्मुख तांडव गति से नृत्य करने लगा यह अधिक शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए और बोल ही बढ़ हम तुमसे बहुत प्रसन्न है तुम हमसे अपनी इच्छा अनुसार वरदान मांगो या सुनकर बाणासुर ने विनती की है प्रभु सहदेव मेरे सहायक रहा है तथा मेरे दुख दूर किया करें शिवजी बाणासुर की यह बात मानकर अपनी कल सहित मनसूर के घर में निवास करने लगे तथा अपनी संपूर्ण शक्ति सहित आनासुर की रक्षा करने लगे एक दिन समस्त देवता के राजा शिवाजी देवताओं सहित नर्मदा नदी के तट पर एक उत्सव बिहार करने लगे सब देवता सिद्ध आदि शिवजी के उसे उत्सव को देखने के लिए वहां आए उसे समय वहां नृत्य दान तथा अनेक प्रकार की आनंद की बातें होने लगी उनसे शत्रुओं को दुख तथा भक्तों को सुख प्राप्त हुए उसे समय तीनों प्रकार की वायु बहने लगी नाना प्रकार के पुष्प खिल उठे पक्षी मधुर वाणी में वाले उठे मानव वह भी गायक बनाकर गाने लगे हो तथा संपूर्ण वन फुल उठा ऐसे समय में शिव जी ने इच्छा अनुसार बिहार किया फिरते फिरते उन्होंने काम के वर्ष हो नंदीगण को बुलाकर यह कहा कि तुम तुरंत कैलाश में जाकर गिरजा को अपने साथ ले आओ नंदी ने यह सुनकर तुरंत ही गिरजा की सेवा में पहुंच कर शिवजी का समाचार का सुनाया शिव के गिरिजा ने उत्तर दिया कि तुम चलो हम सिंगार करके पीछे आते हैं नदी यह सुनकर वहां से चला गया तथा गिरजा सिंगर करने लगी तब नंदी ने यह सुनकर शिवजी के निकट पहुंचकर कहा कि गिरजा पीछे आ रही है यह सुनकर शिवजी बोले तुम फिर शीघ्र जाकर उन्हें अपने साथ ले जाओ फिर नंदी गिरजा के पास जा पहुंचे तथा उनसे शीघ्र चलने के लिए कहा तब गिरिजा ने कहा अच्छा मैं अभी चलती हूं तुम बैठो यह कह कर उन्होंने सिंगर करने में अपना बहुत समय लगाया उधर शिवजी अप्सराओं के नृत्य तथा रंग को देखकर बहुत ही कामवास हो गई जब गिरिजा ने आने में बहुत देर की तब सब सभा की स्त्रियों ने यह निश्चित किया कि हम सभी स्त्रियां अपना-अपना और ही प्रकार का पवित्र रूप धारण करें या निश्चित कर सब स्त्रियां अपना-अपना आज स्वरूप धारण करने लगे उन्होंने यह सोचा था कि ऐसा करने से शिवजी किसी प्रकार बोली में आ जाए वस्तु नंदी ने उर्वशी का रूप शुभा केसरी ने लक्ष्मी का स्वरूप पिताजी ने काली का स्वरूप विंध्याचल ने चांदी का स्वरूप प्रेम गोत्र ने सावित्री का स्वरूप मैं ने गायत्री का स्वरूप पद्मावती ने विजय स्थल का स्वरूप तथा जया ने शाहजहान्य का स्वरूप धारण किया है नारद उषा ने जो बाढ़ आंसू की कन्या थी गिरजा का स्वरूप धारण कर लिया फिर उन्होंने यह निश्चय किया कि इस समय हम शिवजी को अपने वश में करके उसके साथ भली प्रकार को गिलास करें जब शिवजी ने उषा को बुलाए तभी वह गिरजा आप पहुंची तथा हंस कर इस प्रकार कहा है उषा तुमने कामवास हो हमारा स्वरूप धारण किया है इसलिए हमारा वचन सुनो मधुमास की शुक्ला द्वादशी को सोते समय एक मनुष्य तुम्हें मिलेगा तुम उसके साथ जी भर कर भोग विलास करना वही तुम्हारा पति होगा यह कहकर गिरजा अत्यंत प्रसन्नता के साथ शिवजी के पास पहुंची शिवजी यह लीला करके अपनी संपूर्ण सभा सहित अंतर ध्यान हो गए

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After listening to this story, Narad ji said that father, I am really very happy to hear this story. Now you should always tell me other stories of Lord Shiva. Seeing such a desire of Narad ji, Brahma ji said that O Narad, now we will tell you the description of the war between Lord Shiva and Lord Vishnu. Kashyap was born from my son Amarjeet, who was a great devotee of Lord Shiva. He had a wife named Dwitiya, who gave birth to many children. His eldest wife's name was Dwitiya. Due to Dwitiya's pride, great demons were born. Two of them were named Ran Kashyap Shishu and Hiranyaksh. He kept on doing penance for a long time. Hiranya Kashyap Shishu had four sons, out of whom Pahalad was the youngest. From the first, Virochana was born, who was a great devotee of Lord Shiva. Bali was born from Virochana. In fact, he was a great wrestler in fighting with the gods and the devotees of Lord Shiva. He had a son named Badaam, who was also a great devotee of Lord Shiva. He was a friend of children, very strict in his rules and fasts. He was formless and Sahastrabhuj. He ruled over the important universe with great generosity. He had his capital in Soytipur. After establishing himself, he ruled the place with great pomp and show. No one was unhappy in his kingdom. O Narada, one day, immersed in the devotion and love of Lord Shiva, he started dancing in the Tandava motion in front of Lord Shiva with his thousand arms. This pleased Lord Shiva and he said, “We are very pleased with you, ask for a boon as per your wish.” Hearing this, Banasur requested, “Lord Sahadev has been my helper and please remove my sorrows.” Accepting this of Banasur, Shivaji started living in Mansoor's house along with his sword and started protecting Banasur with all his might. One day, Shivaji, the king of all gods, started organizing a festival on the banks of the Narmada river along with all the gods. All the gods, Siddhas etc. came there to see the festival of Lord Shiva. At that time, dance, donation and many types of joyful talks started taking place there. The enemies got pain and the devotees got happiness. At that time, all the three types of winds started blowing, various types of flowers bloomed, birds with sweet voices arose, humans also became singers and started singing, and the entire forest blossomed. At such a time, Lord Shiva performed as per his wish. While roaming around, he called the Nandiganas of lust and said that you should immediately go to Kailash and bring Girja with you. Hearing this, Nandi immediately reached the service of Girja and told the news of Shivji. Girija of Shiv replied that you go, we will follow after dressing up. Hearing this, Nandi left from there and Girja started singing. Then Nandi, on hearing this, went near Shivji and said that Girja is coming behind. On hearing this, Shivji said that you go quickly and take her with you. Then Nandi reached near Girja and asked him to come quickly. Then Girija said, okay I am leaving now, you sit. Saying this, he spent a lot of time singing. On the other hand, Shivji became very lustful after seeing the dance and colours of the Apsaras. When Girija took a lot of time to come, then all the women of the assembly decided that all of us women should assume our own different types of sacred forms. After deciding this, all the women started assuming their own forms. They had thought that by doing this, Shivji would somehow come in their way. Vastu Nandi took the form of Urvashi, Shubha Kesari took the form of Lakshmi, father took the form of Kali, Vindhyachal took the form of Silver, Prem Gotra took the form of Savitri, I took the form of Gayatri, Padmavati took the form of Vijay Sthal and Jaya took the form of Shahjahan. Narad Usha, the daughter of Barh Aansoo, took the form of Girja. Then they decided that at this time they should control Lord Shiva and have a good sex with him. When Lord Shiva called Usha, then Girja reached there herself and smilingly said, Usha, you have taken my form because of lust, therefore listen to my words, on the Shukla Dwadashi of Madhumas, while sleeping, you will meet a man, you can enjoy with him to your heart's content, he will be your husband. Saying this, Girja reached near Lord Shiva with great happiness. After doing this leela, Lord Shiva along with his entire assembly went into meditation.

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