श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 48



ब्रह्मा जी बोले हे नारद उसे समय अंधक ने शिवजी की बहुत स्तुति करने के पश्चात कहा है शिव जी मैं आपकी शारंगत हूं आप मेरी और दया दृष्टि कीजिए अंधा किया स्तुति सुनकर शिवजी ने उसकी और दया की दृष्टि से देखा था अत्यंत प्रशंसा करते हुए कहा है अंधक तुम धन्य हो हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हुए हैं अब तुम्हारी जो इच्छा हो वह वरदान हमसे मांग लो यह सुनकर अंधाप ने कहा है शिवजी आप मुझको अपना घर करके अपने निकट ही रखें तथा वीरभद्र के समान ही समझे यह सुनकर शिवजी ने प्रसन्न होकर कहा है अंधक तुम्हारी यह इच्छा अवश्य पूर्ण होगी है नारद इस प्रकार शिवजी ने अंधा को अपना घर बनाकर मुक्त किया तथा उसे अपने साथ ले जाकर कैलाश पर्वत पर वॉश करने लगे इतना कथा सुनकर ब्रह्मा जी बोले हैं नारद उसे समय विष्णु ने मैं तथा देवताओं ने कैलाश में पहुंचकर शिव शंकर को प्रणाम किया तथा सब ने अलग-अलग स्तुति की जो कोई दूसरी स्थिति तथा चरित्र को सुनेगा अथवा सुनवाइए वह अपने कुल सहित प्रसन्न होगा परलोक में उसे शिवजी का स्वामित्व प्राप्त होगा यह स्तुति के पश्चात देवता एवं शिव यथा स्थान चले गए

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Brahma Ji said, O Narada, at that time Andhak after praising Shiv ji a lot said, Shiv ji I am your devotee, please have mercy on me. On hearing the praise of the blind, Shiv ji looked at him with mercy and said, Andhak you are blessed, we are very pleased with you, now ask for any boon you wish from us. On hearing this Andhak said, Shiv ji make me your home and keep me near you and treat me like Veerbhadra. On hearing this Shiv ji got pleased and said, Andhak, your wish will surely be fulfilled. Narada, in this way Shiv ji freed the blind man by making him his home and took him with him and started worshipping on Mount Kailash. On hearing this much story Brahma Ji said, Narada, at that time Vishnu, I and the Gods reached Kailash and bowed down to Shiv Shankar and everyone praised him separately. Whoever will listen to the second status and character or get it listened to, he will be happy along with his clan, in the next world he will get the ownership of Shiv ji. After this praise, the Gods and Shiv went to their respective places.

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