श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 47



ब्रह्मा जी बोले हे नारद इस प्रकार अपनी सेवा को युद्ध क्षेत्र से भागते हुए देखकर अंदाज स्वयं रात पर अरुण हो युद्ध स्थल पर आ पहुंचा तब बलभद्र शक विशाखा गणेश सॉन्ग तथा नंदीश्वर आदि शिवगढ़ ने अंधा के ऊपर एक साथ आक्रमण कर दिया उधर ब्रिंग ने शिवजी के उधर में पूरा ब्रह्मांड देखा इसी प्रकार हुए 100 वर्ष तक शिव जी के उधर से ब्राह्मण करते रहे परंतु उसमें से निकलने के लिए उन्हें कोई स्थान नहीं मिला तब हुए शिवजी की वंदना करके उसके लिंग के छिद्र द्वारा प्रकट होकर शिवजी की स्तुति करने लगे शिवजी ब्रिंग की ऐसी चतुराई देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और बोल ही ब्रिंग तुम सुख रखे मार्गम से प्रगट हो इसलिए तुम्हारा नाम शुक्र होगा तुम हमारे पुत्र हो आप अपने घर सुखपूर्वक चले जाओ यह सुनकर शुक्र वहां से देवताओं की सेवा में लौट आए उन्हें पुनः देखकर आदित्य अत्यंत हर्षित हुए तब अंधक सावधानी के साथ शुक्र की रक्षा का पूरा प्रबंध करके किसी सुरक्षित स्थान पर उन्हें बैठक युद्ध करने लगा उसने अपने भीषण प्रहारों से गानों को दुखी कर दिया यहां तक की सभी गण युद्ध स्थल से भाग कर शिवजी के पास जा पहुंचे तथा राजापूर्वक बोल ही शिव जी हमको दैत्यों की सेवा मार डालती है हम अत्यंत दुखी हैं यह सुनकर शिवजी ने कहा तुम तुरंत ही हमारा रथ सुझाव तब उसकी आज्ञा अनुसार शीघ्र ही इस प्रकार जैसा कि तिरुपुर का वध करने के लिए सजाया गया था व्रत तैयार किया गया ताड़ूपरान शिव जी आपने गणेश के दुख का स्मरण कर क्रोधित हो उसे रात पर अरुण हुए तथा रणभूमि में पहुंचकर अंधाग से युद्ध करने लगे अंधक जो भी बाढ़ एवं शस्त्र चलता था उसको शिवजी अपने 30 नंबरों तथा अन्य उत्तम शास्त्रों से काट देते थे तब शिवजी जो शास्त्र छोड़ते थे उनको अंधक नष्ट कर देता था अंत में अंधक ने शिवजी पर अपनी मस्तिका का प्रहार किया शिवजी ने भी उत्तर स्वरूप प्रहार करके उसे पृथ्वी पर मौजूद करके गिरा दिया उसे समय शिवजी की इच्छा अनुसार चामुंडा देवी जो दुर्गा का स्वरूप है प्रगति हुई उसका शब्द घंगराज के समान महा भयंकर था दाढ़े बिकराल स्वरूप मा कठोर लाल लाल आंखें लाल लाल हॉट बहुत ही लंबा कहानी काली आंखें ऐसे स्वरूप से चामुंडा देवी दैत्य सेवा में प्रवेश कर दैत्यों को बिच्छू करने लगे तथा अपने केशव को बिखरकर रणभूमि में नृत्य करने लगे हे नारद अंधक ने चामुंडा का ऐसा विकराल स्वरूप तथा दैत्यों को भयभीत देख क्रोधित होकर अपना शूलचंदी के समझ कर दिया उसे समय शिव जी ने अंधड़ की ऐसी ठीक-थाई दिखाई बड़ा क्रोध किया आपने त्रिशूल से अंधा को छेड़ दिया जिससे रात तक की नदी बाहर निकली केवल अंधक के अस्थिर तथा चार माहिती त्रिशूल पर रह गई से शराब तक निकल गया वह कमाल के समान त्रिशूल पर रह गया उसे समय शिवजी ने सब शत्रुता बुलाकर अंधा को उत्तम बुद्धि प्रदान की जिससे वह सातों गुण धारण कर देते भाव से छूट गया तथा शिव जी की स्तुति करने लगा

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Brahma Ji said, O Narada, seeing his servant running away from the battlefield, Andhaka himself reached the battlefield at night, then Balabhadra, Shak, Vishakha, Ganesh, Sang and Nandishwar etc. Shivagarh attacked Andhaka together. On the other side, Bring saw the whole universe on the other side of Shivji. Similarly, for 100 years, the Brahmin kept on running from the side of Shivji, but he could not find any place to come out of it. Then, after praying to Shivji, he appeared from the hole of his penis and started praising Shivji. Shivji was very pleased to see such cleverness of Bring and said, Bring, you have appeared from a happy path, therefore your name will be Shukra, you are our son, you go to your home happily. Hearing this, Shukra returned from there to serve the gods. Aditya was very happy to see him again. Then Andhaka made all arrangements for the protection of Shukra with caution and made him sit at a safe place and started fighting. He made the Ganas sad with his fierce attacks, so much so that all the Ganas ran away from the battlefield and reached Shivji and said in a kingly manner, Shivji, save us from the demons. We are very sad. Hearing this, Shivji said that you immediately set our chariot on fire. Then as per his order, the chariot was decorated to kill Tiruppur. Shivji remembered Ganesh's sorrow and became angry. He became Arun at night and reached the battlefield and started fighting with Andhak. Whatever weapon Andhak used, Shivji used to cut it with his sword and other best weapons. Andhak used to destroy the weapons used by Shivji. Finally Andhak attacked Shivji with his head. Shivji also attacked him in reply and made him fall on the earth. At that time, as per Shivji's wish, Chamunda Devi, who is the form of Durga, progressed. Her voice was very fierce like Ghangraj. Her beard was fierce. Her fierce form was harsh, red eyes, red hot, very long story, black eyes. With such a form, Chamunda Devi entered the demon's body and started turning the demons into scorpions. She scattered her hair and started dancing in the battlefield. Oh Narada. Seeing such a fierce form of Chamunda and the demons frightened, Andhak became angry and thinking it to be his spear, gave it to him. At that time Lord Shiva showed such a strong force to the storm that he got very angry and teased the blind man with his trident that the river of the night came out and only the four parts of Andhak remained on the trident. Even the wine came out and remained on the trident like a miracle. At that time Lord Shiva called off all his enemies and granted the blind man great intellect due to which he got free from the feeling of adopting all the seven qualities and started praising Lord Shiva.

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