श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 45



ब्रह्मा जी बोले हे नारद वहां से चलकर अंधक मंदराचल पर्वत पर जा पहुंचा वहां उसने देखा कि वह पर्वत अनेक प्रकार की औषधि तथा जड़ी बूटियां से सुशोभित है सिद्ध मुनेश्वर देवता तथा गांड उसकी रक्षा करते थे चंदन गरुड़ साल डंपर बल तथा रूद्र आदि अनेक प्रकार के वृक्ष वहां वर्तमान थे वह गंधर्व किन्नर अप्सरा आदि नृत्य करते थे हंस चकोर सिंह बाघ आदि जीवों से वह स्थान भरा हुआ था उसे आनंद दायक स्थान पर जब बंधक ने देवताओं को देखा तो बड़े क्रोध से यह कहा है मंदराचल तुम मुझको भली भांति जानते हो अपने सामान संसार में किसको नहीं समझता हूं तथा मुझे कोई भी नहीं मार सकता है संसार भर मेरे वश में है तुम भी मेरे प्रजा तथा मेरे अधीन हो अस्तु तुम मेरी आज्ञा को सुनो आज से मैं तुम तुम्हारे निकट के इस वन को अपने बिहार तथा भोग विलास के लिए नित्य करता हूं यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन ना करोगे तो बहुत दुख उठाओगे हे नारद इसी प्रकार अंधक में चारों प्रकार की राजनीति के वचन कहे परंतु शिवजी का हुआ मंत्राजल पर्वत बिल्कुल ही भयभीत न हुआ और वहां से इस समय अंतर ध्यान हो गए अंधक ने मंदराचल को इस प्रकार अंतर ध्यान होते देखकर क्रोध से कहा आज मैं तुझे अपने क्रोध से भस्म किया देता हूं यह कहकर उसे पर्वत को जड़ से उखाड़ कर मिट्टी के समान पीस डाला तथा उसे बहुत योजन की दूरी पर एक दिया उसे समय उसे वन के सहने वाले सब प्राणी तर-तर काटने लगे तब वह पर्वत उठते बैठने कापते भागते हुए शिवजी के समीप जब पहुंचा है नारद शिवजी उसे समय गिरजा के पास थे गिरिजा ने जब पर्वत को कहते हुए देखा तो यह कहा तू आज इस प्रकार क्यों तप रहा है तथा पृथ्वी आकाश और पाताल भी क्यों कांप रहे हैं भला आज किसने इतना क्रोध किया है तब शिवजी ने कहा है गिरजे तुम नहीं जानती कि यह उपद्रव किसने मचाया है देखो आज कौन यमलोक को जाता है यह कहकर शिव जी के पर्वत को प्रसन्न किया इसके पश्चात उन्होंने अपनी कृपा से पर्वत के टुकड़ों को जो टूट कर इधर-उधर गिर पड़े थे दैत्य की सेवा पर गिरना आरंभ कर दिया यह देख दैत्य ने हाल-चाल मच गई उसे समय अंधक क्रोधित होकर कहने लगा है पर्वत मुझको नहीं जानता कि मैं परम ब्रह्म हूं तू मुझे ऐसा चल क्यों करता है प्रगट होकर क्यों नहीं लड़ता रंधा की यह शब्द सुनकर शिव जी ने बड़ा क्रोधित किया इतने में स्वयं इंद्र तथा अन्य देवता आदि शिवजी की स्तुति करते हुए उसके पास जा पहुंचे है नारद शिवजी कि वह स्तुति ऐसी है जिसको सुनने तथा सुनने से दोनों लोक में मुक्ति मिलती है

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Brahma Ji said, O Narada, from there Andhak reached Mandaraachal mountain. There he saw that the mountain was decorated with many types of medicines and herbs. Siddha Muneshwar deity and Gand used to protect it. Many types of trees like sandalwood, Garuda, sal, dumper, bal and Rudra were present there. Gandharva, kinnar, apsara etc. used to dance there. That place was filled with animals like swan, Chakor, lion, tiger etc. When Bandhak saw the gods at that joyful place, he said with great anger, O Mandaraachal, you know me very well. I do not consider anyone in the world equal to me and no one can kill me. The whole world is under my control. You are also my subjects and are under my control. So listen to my order. From today onwards, I use this forest near you for my stay and pleasure. If you do not follow my order, you will suffer a lot. O Narada. In this way, Andhak said all the four types of words but due to Shiva's mantra, the mountain did not get scared at all and went into meditation from there. Seeing Mandarchal meditating in this way, Andhak angrily said that today I will burn you to ashes with my anger. Saying this, he uprooted the mountain from its roots and crushed it like soil and placed it at a distance of many yojanas. At that time all the creatures living in the forest started biting it. Then that mountain started getting up and sitting down and running and trembling. When Narada reached near Lord Shiva, Lord Shiva was near Girija at that time. When Girija saw the mountain saying this, she said, why are you meditating like this today and why are the earth, sky and netherworld also trembling. Who has got so angry today? Then Lord Shiva said, Goddess Shiva, you don't know who has created this ruckus. See who is going to Yamlok today. Saying this, he pleased Lord Shiva's mountain. After this, with his grace, the pieces of the mountain which had broken and fallen here and there started falling on the demon. Seeing this, the demon got into a commotion. At that time Andhak angrily started saying, the mountain doesn't know me that I am Param Brahma. Why are you treating me like this? Why doesn't he come forward and fight? Hearing these words of Randha, Shiv Ji became very angry. Meanwhile Indra himself and other gods reached there praising Shiv Ji. Narada says that the praise of Shiv Ji is such that by listening to it, one gets salvation in both the worlds.

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