श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 43



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद देवता अत्यंत दुखी हो हमारे पास आए और मुझे सब वृतांत का सुनाया उन्होंने यह भी कहा कि देवता अब अंधा के भाई से यज्ञ में भाग नहीं ले पाते इधर-उधर छिपाते रहते हैं यह कहकर देवताओं ने मेरी बड़ी स्तुति की तब मैंने उनसे यह कहा है देवताओं तुम सब किसी प्रकार का दुख मत करो तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे इस प्रकार अनेक पुरातन इतिहास का कर सबको साथ लिए हुए मैं विष्णु जी के पास गया था बहुत स्तुति घर उनसे आंध्र के अध्याय का वर्णन किया उसे समय विष्णु जी बोले तुम सब अपने अपने घरों को लौट जाओ हम सीख रहे देवताओं के पास पहुंचकर उसको नष्ट कर देंगे या सुनकर देवता अपने अपने घरों को लौट गए तब विष्णु जी तुरंत गरुड़ पर सवार होकर अपने शास्त्रों सहित अंधा के पास पहुंचे विष्णु जी बड़े-बड़े अस्त्र और तक पर चलते रहे तब अंधा कानून को नष्ट करता रहा इंडिया बंधक ने विष्णु जी को अपने शास्त्रों से दुखी कर दिया तो विष्णु जी में क्रोधित होकर सुदर्शन चक्र को अपने हाथ से छोड़ा जिसे संसार जलने लगा उसे समय से प्रतीत हुआ जैसे प्रलय हो रहा हो अंडा भी देते क्यों सहित भयभीत हो गया तब उसने शिव जी का ध्यान धर्म के अपना त्रिशूल चलकर सुदर्शन को व्यर्थ कर दिया उसे समय विष्णु जी ने शिवजी का ध्यान करके मन मे स्तुति करते हुए कहा है शिव जी मैं देवताओं के मनोरथ किस प्रकार पूर्ण करूंगा आप मुझे आज्ञा दीजिए है नारद शिव जी ने विष्णु के ऐसे वचन दो पूर्ण वचन सुनकर कहा है विष्णु जी मुझे तुम्हारे समर सामान और कोई भी प्यार नहीं है जो मनुष्य मेरी भक्ति चाहता है उसे पहले तुम्हारी भक्ति करनी चाहिए परंतु इस समय तुम स्वयं ही कुरीति से देवताओं के पक्ष में उद्धत हुए हो जब तक अंदर ब्राह्मणों से शत्रुता ना करेगा तब तक मैं उसके ऊपर क्रोध न करूंगा क्योंकि ब्राह्मण मुझको गिरजा से भी अधिक प्रिय है इसलिए तुम कोई ऐसा उपाय करो कि अंत तक मेरी आराधना भक्ति त्याग कर ब्राह्मणों से शत्रुता करें यह आज्ञा पाकर विष्णु जी ने अंधाग से कहा है अंधा तुम्हारी वीरता तथा बाल देखकर हम अत्यंत प्रसन्न हुए हैं तुम हमें वरदान मांगो यह सुनकर अंधाग नहीं घरों में भरकर कहा है विष्णु वरदान लेना छोटा मनुष्य का कर्तव्य है हमको किसी बात की कमी है जो हम तुमसे वरदान मांगे तुमको जो इच्छा हो वह तुम हमसे मांग लो हम तुमको देंगे विष्णु जी ने अंधा कैसे घरों पर वचन सुनकर प्रसन्नता से कहा यह अंधक हम तुमसे यह वरदान मांगते हैं कि तुम शिवजी की भक्ति छोड़कर स्वयं शिव बनाकर बिहार किया करो अंधक नहीं यह सुनकर विष्णु की माया में भूल कहां ऐसा ही होगा इसके पश्चात विष्णु जी तथा अंधा का अपने अपने स्थान को चले गए तब अंधक ने स्वयं अपने कोसी उठा रहा कर तीनों लोगों को या वश में कर लिया जिससे सबको दुख पहुंचा उसने ब्राह्मणों के मन को भी स्थिति ना रखा तथा स्वयं अपने को परम ब्रह्म सिद्ध किया दैत्यों की सब्रिटियां उसने चलाई

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Brahma Ji said O Narad Devta, very sad, came to us and narrated the whole incident to me. He also said that now the Gods are not able to participate in the Yagya from the brother of Andha, he keeps hiding here and there. Saying this, the Gods praised me a lot, then I told them that Gods, all of you should not be sad, all your sorrows will go away. In this way, narrating many ancient stories, taking everyone along, I went to Vishnu Ji and praised them a lot. At that time, Vishnu Ji said that all of you go back to your homes, we will reach the gods and destroy them. Hearing this, the Gods returned to their homes. Then Vishnu Ji immediately rode on Garuda and reached Andha with his scriptures. Vishnu Ji kept on using big weapons and weapons. Then Andha kept on destroying the law. Indo-bandhan made Vishnu Ji sad with his scriptures. Then Vishnu Ji got angry and released Sudarshan Chakra from his hand, due to which the world started burning. It seemed to him as if apocalypse was taking place. He got scared even after laying an egg. Then he meditated on Lord Shiva and threw his trident and destroyed Sudarshan in vain. At that time Vishnu Ji meditated on Shiv Ji and while praising him in his mind said, Shiv Ji, how will I fulfill the wishes of the Gods, please give me your permission Narad, Shiv Ji gave such words of Vishnu, after listening to his words he said, Vishnu Ji, I don't love anyone else as much as you, the person who wants my devotion should first worship you, but at this time you yourself have taken the side of Gods by bad custom, till the time he does not become an enemy of Brahmins, I will not be angry with him because Brahmins are dearer to me than even the church, therefore you should do something such that till the end you give up my worship and devotion and become an enemy of Brahmins, after getting this order Vishnu Ji said to the blind, blind, seeing your bravery and courage we are very pleased, you ask for a boon from us, on hearing this the blind said, filling his house with anger Vishnu, taking a boon is the duty of a small man, we lack anything, we want a boon from you, whatever you wish, you ask for it from us, we will give it to you, Vishnu Ji said happily on hearing the words of the blind, blind, we ask for this boon from you that you Leave the worship of Lord Shiva and become Shiva yourself and do Vihar, not Andhak, hearing this, Vishnu got mistaken in his illusion and this is what will happen, after this Lord Vishnu and Andhak went to their respective places, then Andhak himself lifted his Kosi and controlled all the three people, due to which everybody got hurt, he also did not keep the mind of the Brahmins in peace and proved himself to be the Supreme Brahma, he killed the demons.

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