श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 42



ब्रह्मा जी बोले हे नारद शिव जी की स्तुति करने के उपरांत सब देवता शांत खड़े रहे तब शिवजी बोले हे विष्णु ब्रह्मा तथा समस्त देवताओं तुम लोग की जो भी इच्छा हो वह हमसे कहो हम तुम सबको वरदान देने के लिए तैयार हैं यह सुनकर देवताओं ने कहा है शिवजी हम लोग अंधड़ के कठोर तब से अत्यंत भयभीत है इसलिए आप जाकर अंधा को वरदान दे जिससे हमारे दुख दूर हो यद्यपि वह आपसे वरदान पाने के पश्चात देवताओं को पूर्ण रूप से शत्रु हो जाएगा हम सबकी इच्छा है कि इस समय कृपा करके आप अंधक के कठिन तप की अग्नि को शीघ्र ही शांत करें तथा दो प्रांत हमारे लिए वीजा के समान होकर हमारी चिकित्सा कीजिए यह सुनकर शिवजी अंधा को वरदान देने के लिए चल दिए वह अपने वहां गिर जाता था गानों सहित वहां जा पहुंचे और बोल ही एंड हम तुमसे बहुत प्रसन्न है तुम हमसे पर मांगो तब अंधक ने प्रणाम एवं स्तुति करते हुए यह कहा है प्रभु मैं आपसे केवल यही वरदान मांगता हूं कि अपने पिता के वरदान के अनुसार मैं आपके अतिरिक्त किसी के हाथ से ना मर जाऊंग आप कोई उपाय कीजिए जिससे मेरे पिता का वचन सत्य हो या सुनकर शिवजी बोले अच्छा हम तुमको यही वरदान देते हैं परंतु यदि तुम तीनों लोकों के राजा होकर अपना धर्म त्याग कर को गर्मी हो जाओगे तो हमें निशान दे तुम पर बड़ा क्रोध आएगा जिससे तुम्हारा सब पुण्य नष्ट हो जाएंगे ऐसी दशा में भी हम तुम पर दया करेंगे जिससे तुम्हारा श्रम निष्फल ना जाएगा शिवजी इस प्रकार अंधा को वरदान देकर वहां से अंतर ध्यान हो गए तब अंधाग ने प्रसन्नता पूर्वक अपने घर आकर अपने माता-पिता को और प्राप्त करने का हाल का सुनाया हे नारद जब देवताओं में यह सुना की शिवजी ने अंधा को ऐसा वरदान दिया है तो सब बहुत घबरा फिर उन्होंने इंद्र के पास जाकर अंधा क्यों वरदान पाने का सब हल्का सुनाया जिस समय सब देवता इंद्र के पास जाकर सब हल्का रहे थे उसी समय चारों ओर से देता हूं ने अंधा के पास जाकर देवता तथा देवताओं की पुरानी सद्रुता की कहानी का सुनाई परंतु अंधक ने कुछ नहीं कहा वह केवल इंद्रपुरी को देखने के लिए रात भर चल दिया तथा को समय के पश्चात इंद्रपुरी में पहुंच गया अंधा को वहां आते हुए देखकर अन्य देवताओं के साथ इंद्र भी बहुत भयभीत हुए उसे समय इंद्र ने तुरंत उठकर अंधा को बारंबार एक ही आसान पर बैठा तब उपरांत इंद्र ने मन में दुखी होकर अंधाग से आने का कारण पूछा तथा यह कहा कि अपने यहां आकर बड़ी कृपा की है आप जो आज्ञा आप हमें देंगे हम उसका पालन करेंगे यह सुनकर अंधक ने अहंकार से भरकर उतार दिया है इंद्र तुम केवल मुझे अपने सब सहमति दिखला दो मुझे किसी वस्तु को लेने की आवश्यकता नहीं है तुम्हारे पास जो ऐरावत हाथी तथा उच्च स्राव घोड़ा आदि उत्तम रत्न एवं उर्वशी आदि मा स्वरूप वटी स्त्रियां है उन सबको मुझे दिखाई दो मैं उनको देखने मात्र से ही प्रसन्न हो जाऊंगा तब इंद्र ने रुपया होकर अपनी समर्थ संपत्ति उसे दिखाई दिए इंद्र की संपत्ति को देखकर अंधकार चकित हो इंद्र के आसन पर बैठ गया उसे समय अंधक ने यह आज्ञा दी की नृत्य आरंभ किया जाए इंद्र ने यह सुनकर भयभीत हो सब सेवा कम गंधर्व और अप्सराओं से कहा कि तुम सब लोग अपने सुंदर नृत्य द्वारा अंधक को प्रसन्न करो हीनारद हर प्रकार के बजे टहल स्वर्ण सहित बजने लग सातों स्वर इकाइयां मूल्य तथा तीन ग्राम के साथ गण होने लगा अंधक ने उसे नृत्य गांव से मोहित होकर यह चाहा कि मैं अप्सराओं को अपने वश में करूं परंतु देवताओं ने यह स्वीकार नहीं किया बंधक ने जब देवताओं की ऐसी अवज्ञा देखी तो वह अत्यंत क्रोधित होकर सिंह नाथ करने लगा उसे समय इंद्र ने देवताओं से कहा है देवताओं उठो ईश्वर को स्मरण कर भली प्रकार निर्भय होकर युद्ध करो क्योंकि अपनी स्त्रियों के देने से तो लड़कर मर जाना ही उत्तम है इंद्र की यह आज्ञा पाकर देवता तुरंत लड़ने को तैयार हो गए उसे समय अंधक भी 500 धनुष अपने हाथ में लेकर तथा प्रत्येक धनुष में अनेक बढ़ चढ़कर युद्ध करने लगा जब इंद्र के सम्मुख जाकर बज से अंधा को मारा तब अंधक ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल गधा आदि नाना प्रकार के अस्त्रों से प्रहार किया उसे समय देवताओं सहित इंद्र युद्ध स्थल छोड़कर भाग गए इसके पश्चात आंध्र का अपने माता दीप्ति को भी वही बुलाकर राज करने लगा तथा यह डिंडोरी पिटवा दिया कि हमारे राज्य में सब प्रजा अंधक पूर्वक आनंदपूर्वक रहे और किसी प्रकार का संदेह न करें केंद्र का राज अब समाप्त हो गया सब वहां अपने धर्म में स्थिर रहकर हमारी आज्ञा का पालन करें जो कोई हमारे आजा के विरुद्ध कार्य करेगा वह हमारे हाथों से मर जाएग इस प्रकार आजा प्रसारित कर अंधक स्वयं इंद्रपुरी पर शासन करने लगा

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Brahma Ji said, O Narada. After praising Lord Shiva, all the gods stood quietly. Then Lord Shiva said, O Vishnu, Brahma and all the gods, whatever you wish for, tell us. We are ready to grant you all boons. Hearing this, the gods said, Lord Shiva, we are very scared of the storm. Therefore, you go and grant a boon to Andhak, so that our sorrows are removed. Although, after receiving the boon from you, he will become a complete enemy of the gods. We all wish that at this time, you kindly extinguish the fire of Andhak's difficult penance and become like a visa for us and treat us. Hearing this, Lord Shiva set out to grant a boon to Andhak. He fell there and reached there with his sons and said, "We are very pleased with you. Ask for a boon from us." Then Andhak, while bowing and praising, said, "Lord, I ask you only this boon that according to my father's boon, I will not die at the hands of anyone except you. You should find a way so that my father's words come true." Hearing this, Lord Shiva said, "Okay, I give you this boon, but if you are the king of all the three worlds, then you will be the king of all the three worlds." If you become a king and abandon your religion, then give us a sign. We will be very angry with you, due to which all your virtues will be destroyed. Even in such a situation, we will show mercy on you, so that your efforts will not go in vain. In this way, Shivji gave the boon to the blind man and went into meditation. Then the blind man happily came to his home and told his parents about his return. O Narada, when the gods heard that Shivji has given such a boon to the blind man, they all were very scared. Then they went to Indra and told him everything about the blind man getting the boon. When all the gods went to Indra and were getting worried, at the same time, gods from all around went to the blind man and told him the story of the gods and the old goodness of the gods, but Andhak did not say anything. He only went all night to see Indrapuri and after some time, reached Indrapuri. Seeing the blind man coming there, Indra along with other gods also got very scared. At that time, Indra immediately got up and made the blind man sit on the same seat again and again. Then Indra, feeling sad in his heart, asked the blind man the reason for coming and said that you have done a great favor by coming to our place, whatever you order, you give us. We will obey him. Hearing this Andhak filled with pride said Indra, you just show me all your assets. I don't need to take anything. Show me all the Airavat elephant and high-flown horse etc. excellent gems and women with the form of Urvashi etc. that you have. I will be pleased just by seeing them. Then Indra became rich and showed him his mighty wealth. Seeing Indra's wealth Andhak was astonished and sat on Indra's seat. Andhak ordered that the dance should begin. Indra got frightened on hearing this and told all the Gandharvas and Apsaras that all of you please Andhak with your beautiful dance. Narada started playing all kinds of instruments with gold. All the seven notes started playing with units of value and three grams. Andhak, fascinated by that dance, wanted to control the Apsaras but the gods did not accept this. When the demon saw such disobedience of the gods, he became very angry and started roaring. At that time Indra said to the gods, get up, remember God and do good. Fight fearlessly because it is better to die fighting than to give away your women. On receiving this order from Indra, the gods immediately got ready to fight. At that time Andhak also took 500 bows in his hands and started fighting with great enthusiasm in each bow. When Andhak went in front of Indra and hit Andha with a bow, then Andhak got angry and attacked him with his trident, mace, etc. and many other weapons. At that time Indra along with the gods left the battlefield and fled. After this, he called his mother Dipti there and started ruling Andhra and got a drum beaten that all the people in our kingdom should live happily like Andhak and should not have any kind of doubt. The rule of the centre is now over, everyone should remain steadfast in their religion and follow our orders. Whoever acts against our freedom will die at our hands. In this way, by spreading freedom, Andhak himself started ruling Indrapuri.

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