श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 41



ब्रह्मा जी बोले हे नारद इंद्र के मुख से ऐसे दुख पूर्ण वचन सुनकर कश्यप अत्यंत आश्चर्य करते हुए बोले है इंद्र अंधक ने जो दुख तुम लोगों को पहुंचा है उसे कुछ भय मत करो हम तुम्हारे सब दुखों को दूर कर देंगे क्या कह कर कश्यप ने इंद्र को वहां से विदा कर अंधा को बुलाया और कहा यह अंधड़ आदित्य तथा द्वितीय हमारी स्त्री हैं तथा उन्हें से सब देवता और देते उत्पन्न हुए हैं वह बराबर हमारी सेवा करती हैं हमें दोनों ही प्यारे हैं वास्तु तुम तीनों लोक पर विजय प्राप्त करने का विचार त्याग दो क्यों किया बड़ा दुखदाई होता तुम इंदिरा और राज्य को आधा-आधा बताकर शत्रुता दूर करो तथा एक ही मौत से सुख एवं कुशलता पूर्वक राज करो तुम देवताओं को इस प्रकार दुखी बनाकर मुझे तंग मत करो नहीं तो तुम बड़ा दुखी पाओगे यह कश्यप ने अंधक को विदा किया हे नारद कश्यप के इस प्रकार समझाने पर अंधा कुछ दिन तक तो शांत बैठा रहा परंतु थोड़े दिन के पश्चात वह पुणे दैत्यों की संगति से उपद्रव मचाने लगा और देवताओं को दुख पहुंचाने बात करने लगा वास्तव में संगति का प्रभाव बहुत शीघ्र ही पड़ता है अपने पुत्र या दास देखकर द्वितीय को बड़ी प्रसन्नता हुई फिर उसने एक दिन अंधा को बुलाकर इस प्रकार समझाया है अंधक तेरे कर्म देखकर मुझे बहुत दुख मिलता है मैं तुम्हें एक बात समझता हूं तुलसी पर ध्यान धरकर काम कार्य का कर उसने पहले कश्यप ने जो कही थी वही बातें विचार कर कहा है पुत्र तुम शिव जी की सेवा करो और उसने किसी प्रकार की शत्रुता मत रखो क्योंकि उसने शत्रुता रख कर कोई भी नहीं रहता फिर शिवजी की बड़ी स्तुति करके वह बोली है पुत्र तुम नित्य शिवजी की सेवा करने लगा ऐसे करने से अंधा के तेज में वृद्धि हुई उसे तेज के कारण उसकी वोट और देखा भी नहीं जाता था ऐसे कठिन तप करने ते हुए देख कर सब देवता भयभीत होकर मेरे शरण में आए तब मैं उन सबको साथ लेकर विष्णु जी के पास गया और विष्णु जी सब हाल सुनकर सबको साथ लिए हुए शिव जी के पास पहुंचे वहां हम सब ने उसकी पवित्र स्तुति की

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Brahma Ji said, O Narada, hearing such sad words from Indra's mouth, Kashyap was very surprised and said, Indra, do not be afraid of the pain that Andhak has caused to you people, we will remove all your pains. Saying this, Kashyap sent Indra away from there and called Andhak and said, this Andhak, Aditya and Dwitiya are our wives and from them all the gods and goddesses have been born. They serve us equally. Both of them are dear to us. You should give up the idea of ​​conquering the three worlds. Why would it be very painful? Remove the enmity by dividing Indira and the kingdom into half and rule happily and efficiently with the same body. Do not trouble me by making the gods sad like this, otherwise you will find yourself very sad. Kashyap sent Andhak away, O Narada. On being explained by Kashyap in this way, Andhak remained calm for a few days, but after a few days, he started creating a ruckus by associating with the demons and started talking about causing pain to the gods. In fact, the effect of company is very fast. Seeing his son or slave, Dwitiya was very happy. One day she called the blind man and explained to him thus - Andhak, I feel very sad seeing your deeds. I want to explain one thing to you, concentrate on Tulsi and do your work. She thought about the same things that Kashyap had said earlier and said, son, you should serve Lord Shiva and do not keep any kind of enmity because no one survives by keeping enmity. Then after praising Lord Shiva a lot, she said, son, you started serving Lord Shiva daily. By doing this, the radiance of the blind man increased. Due to his radiance, he could not even see his head. Seeing him doing such a tough penance, all the gods got scared and came to me for shelter. Then I took all of them along to Lord Vishnu and after listening to the whole situation, Vishnu took everyone along and reached Lord Shiva, there we all praised him sacredly.

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