नारद जी बोले हे पिता आप मेरी अभिलाषा शिवाजी द्वारा अंधका और की कथा सुनने का है अस्तु आप कृपा करके जिस प्रकार शिवजी ने अंधकासुर का वध किया उसका वर्णन कीजिए यह सुनकर ब्रह्मा जी बोले हे नारद जब विष्णु जी ने नरसिंह तथा 12 अवतार लेकर द्वितीय के पुत्रों को मारा तब द्वितीय ने बाद विलाप किया तथा कश्यप की शरण में जाकर उसकी सेवा करने लगे वह अपने पति कश्यप को प्रसन्न करने के लिए सब श्रृंगार छोड़ ब्रह्मचारी धारण कर रहने लगी वह केवल खासियत की इच्छा के अनुसार ही मीठे वचन कहती तथा अधिक बातचीत नहीं करती थी तब एक दिन काशी अपने प्रसन्न होकर यह कहा है द्वितीय हम तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुए हैं अतः तुम हमसे कोई वरदान मांगो इसके पश्चात उन्होंने पति भरता धर्म का वर्णन करते हुए कहा है द्वितीय ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो जिसको हम शिवजी की कृपा से नहीं दे सके अपने पति को इस प्रकार पसंद देखकर द्वितीय ने कहा है स्वामी देवताओं ने मेरे साथ शत्रुता करके विष्णु जी के द्वारा मेरे दोनों पुत्र को मरवा डाला है अतः अनेक देते का वध करवा दिया है मुझे इस बात का बहुत दुख है इसलिए मैं आपकी शरण में आई हूं आप कृपा करके मुझे ऐसा पुत्र दीजिए जो देवताओं के हाथ से न मार सके हे नाथ का श्याम ने द्वितीय की बातों को सुनकर उसने वरदान देते हुए कहा है द्वितीय तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी मृत्युंजय जो रूद्र है उसके सामान संसार में कोई देखता अथवा देवता नहीं है उसके सामने विष्णु तथा ब्रह्म की भी कुछ नहीं चलती इसलिए जब तुम्हारे पुत्र उत्पन्न हो तब तुम उसे यह वाली भांति समझ जा देना कि वह किसी प्रकार मृत्युंजय को क्रोध न होने दे क्योंकि शिव जी ने क्रोधित होने पर फिर और कोई रक्षा करने वाला नहीं है इतना का आकार काशी आप चुप हो गए ता दो प्रांत द्वितीय काशी आपके तेज से गर्भवती हुई द्वितीय का तेज इतना बड़ा की कोई मनुष्य उसके तेज के कारण उसकी ओर देख भी नहीं सकता था 10 में मास में द्वितीय के एक पुत्र उत्पन्न हुई जिसका विचित्र स्वरूप तथा अर्थात उसके एक शास्त्र सर दो सहस्त्र रखे तो सहस्त्र पांव तथा दो सहस्त्र भोजी थी वह बहुत ही सुंदर तेजस्वी एवं हष्ट पुष्ट था उसको यदि सब मुनि तथा देवता भी मिलकर उपाय तो भी हुआ नहीं उठ सकता था वह अंधों के सामान इधर-उधर झुक कर चलता था इसलिए उसका नाम अंधक रखा गया जैसा उसका अंधा का नाम था उसी प्रकार उसने सब कार्य भी किया अंधकार और में संसार में अनेक उपद्रव मचाए तथा देवताओं से समस्त रत्न आई लात मार कर छीन ली हे नारद इस प्रकार अंधक अन्य डेटियों को अपने साथ लिए हुए तीनों लोकों में अनेक प्रकार के उपग्रह करता रहा वह इंद्र की सभा में जाकर इंद्रासन पर बैठ केवल देवताओं को ही नहीं अपितु इंद्र को भी आ गया प्रदान करता था देवताओं को तो वह सेवकों के ही समान समझना था एक दिन दैत्यों की अधिपति ने उसके पास आकर प्रणाम करने के पश्चात कहा है अंधक संसार में जितने देवता तथा मुनि है हुए तुम्हारा शत्रु हैं उन्होंने बड़े चल का पाठ से दैत्य का वध किया है इंद्र भी देवताओं के घोर शत्रु हैं उसे पहले दैत्य को जो सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ तथा मार डाला तथा देवताओं ने मुनीश्वरों की समाप्ति से हम दैत्य का बहुत बड़ा वन जाल डाला इसलिए तुम पुरानी शत्रुता का विचार करके देवताओं को पराजित करो और तीनों लोक पर विजय प्राप्त करो दैत्य अधिपति की ऐसी बातें सुनकर अंधा तुरंत ही तीनों लोक पर विजय प्राप्त करने के लिए तैयार हो गया उसने एक बहुत बड़ी सी एक पत्र की यह देखकर देवता तथा मुनि साहब अत्यंत दुखी हुए तब इंद्र ने स्वयं काशी आपके पास जाकर अत्यंत विनय पूर्वक किया कहा है पिता अपने देवताओं को बड़े आनंद से रखा परंतु आप अंदाज सबको निकालने निकाल देता है आप देवताओं तथा मुनियों की ऐसे दुख को क्यों नहीं देखे वह छान-छान पर हमको आ गया दिया करता है तथा हम से छोटा होते हुए भी हमें पढ़ा नहीं मानता ही पिता इस प्रकार का कार्य करने से बड़ा उपग्रह होगा तथा तीनों लोगों का काम बिगड़ जाएगा
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Narad Ji said, O father, I wish to hear the story of Andhakasur from Shivaji. So, kindly narrate the manner in which Shivaji killed Andhakasur. On hearing this, Brahma Ji said, O Narad, when Vishnu Ji took the form of Narsingh and twelve incarnations and killed the sons of Dwitiya, then Dwitiya lamented and went to Kashyap and started serving him. To please her husband Kashyap, she left all adornments and started living in celibacy. She spoke sweet words only as per the wish of the special one and did not talk much. Then one day, pleased with Kashi, Dwitiya said, “We are very pleased with your service, so ask us for a boon.” After this, while describing the duty of a husband and wife, Dwitiya said, “There is nothing that we cannot give with the grace of Shivaji.” Seeing her husband like this, Dwitiya said, “Swami, the gods have made enmity with me and got both my sons killed by Vishnuji. Therefore, they have got many gods killed. I am very sad about this, so I have come to your shelter. Please be kind.” Give me such a son who cannot be killed by the hands of the gods. O Nath Ka Shyam, after listening to the words of Dwitiya, gave him the boon and said, Dwitiya, your wish will be fulfilled. There is no one in the world who can see or deity like Mrityunjay who is Rudra. Even Vishnu and Brahma have no power in front of him. Therefore, when your son is born, then you should explain to him that he should not let Mrityunjay get angry in any way because when Shiv Ji gets angry, then no one else can protect him. Kashi became silent and the two provinces of Kashi became pregnant with your radiance. Dwitiya's radiance was so great that no human could even look at him due to his radiance. In 10 months, Dwitiya gave birth to a son who had a strange appearance and that is, he had one weapon, two thousand arms, a thousand legs and two thousand stomachs. He was very beautiful, radiant and healthy. Even if all the sages and gods together could not get him up, he used to walk bending here and there like a blind person. Therefore, he was named Andhak. Just as he was named Andhak, in the same way he did all his work in the darkness and He created many disturbances in the world and snatched away all the gems from the gods by kicking them. O Narada, in this way Andhak, taking other demons with him, kept on causing many types of troubles in the three worlds. He went to Indra's court and sat on Indra's throne. He used to offer prayers not only to the gods but also to Indra. He used to consider the gods as his servants. One day, the ruler of the demons came to him and after paying his respects, said, "Andhak, all the gods and sages in the world are your enemies. They have killed the demon with a great lesson. Indra is also a great enemy of the gods. He killed the demon who was born first. The gods have created a huge forest of demons with the end of the sages. Therefore, you should consider the old enmity and defeat the gods and conquer the three worlds. On hearing such words of the demon ruler, Andhak immediately got ready to conquer the three worlds. He made a very big letter. Seeing this, the gods and sages became very sad. Then Indra himself went to Kashi and prayed to him with great humility. It has been said earlier that father kept his gods with great happiness, but you keep on ruining everyone. Why don't you see the suffering of gods and sages? He keeps on investigating me and despite being younger than me, he does not consider me educated. Father, by doing such work there will be a big trouble and the work of all three people will get spoiled.
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