ब्रह्मा जी ने कहा यह नारद एक दिन भगवान गिरिजा पति ने अपने गानों को साथ लेकर गिरिजा जी सहित नदी पर सवार हो आनंदवन देखने के लिए चले आनंदवन में पहुंचकर उन्होंने गिरजा से उसे क्षेत्र की अत्यंत प्रशंसा की वहां मदर कनेर खेत की आधार चमेली को मॉल श्री मल्टी जूही कमल आदि अनेक प्रकार के सुगंधित पुष्प खिले हुए थे श्रेष्ठ लाल धमाल आदि के वृक्षों पर पक्षी बैठे हुए मधुर स्वरों में गण करते थे तथा तीनों प्रकार की वायु हर समय चलती रहती थी वहीं ऋषि मुनि सिद्ध जैन आदि नदी किनारे बैठकर अपने यह नियम आदि का स्वछता पूर्वक पालन किया करते थे इस प्रकार वहां सर्वत्र आनंद ही आनंद था हे नारद उसे उत्तम वन को देखकर भगवान गिरिजा पति ने अत्यंत प्रसन्न होकर मलिक को बुलाया और उसे पारितोषिक आदि देकर कृतार्थ कर दिया तदुपरांत हुए वन के भीतर जा पहुंचे वहां उन्होंने गिरजा से कहा है प्रिया जिस प्रकार तुम हमें अत्यंत प्रिय हो उसी प्रकार यह खांसी तथा आनंदवन में भी हमें अध्ययन पास पसंद है जो व्यक्ति यहां आकर मृत्यु प्राप्त करता है उसे हम मोक्ष प्रदान करते हैं यहां के रहने वाले सदैव प्रसन्न रहते हैं और हम उसके ऊपर अपनी विशेष कृपा बनाए रखते हैं है नारद यह कहकर शिवजी गिरजा के साथ कुछ आगे चले तो उन्होंने यह देखा कि हरिकेश जी एक अशोक वृक्ष के नीचे बैठे हुए अत्यंत प्रेम पूर्वक तपस्या कर रहे हैं और अपने मुख से विश्वनाथ का उच्चारण कर रहे हैं उसके शरीर में केवल हड्डियां और नशे ही दिखाई दे रही थी सिंहासन पहाड़ी भयानक जीव अपने स्वामी हिंसक भाव को त्याग कर उसकी रक्षा करने के लिए उन्हें चारों ओर से घर खड़े थे हरिकेश की यह दशा देखकर गिरिया ने अत्यंत दयालु होकर शिवजी से कहा है प्रभु या आप परम भक्त हैं और आपके भरोसे पर ही जीवित है आता है यह जो भी वर मांगे उसे देने की कृपा करें आप इसके मस्तक पर अपना कर कमल रखिए जिससे यह चैतन्य हो हे नारद गिरजा किया वचन सुनकर शिवजी ने बल से उतरकर हरिकेश के शरीर को स्पर्श किया और उसके अपनी कृपा द्वारा किरदार कर दिया उसे स्पर्श को पाते ही हरिकेश ने अपने नेत्र खोल दिए उसे समय उन्होंने यह देखा कि करोड़ों सूर्य प्रभाव के समान प्रकाश वहां अपने शरीर का बसमा रामायण हुए पंचमुखी त्रिनेत्र 10 भुजा धारी भगवान सदा शिव जिसके मस्ताक्स पर चंद्रमा विराजमान है और वामन भाग में गिरिजा जी सुशोभित हैं उनके नेत्रों के सम्मुख खड़े हुए हैं भगवान सदस्य शिव के उसे स्वरूप को देखकर यक्षपति हरि के सपने मन में अत्यंत प्रसन्न हुए तब वह शिवजी को प्रणाम करके उसकी स्तुति करते हुए बोले हे प्रभु आपने जो मेरे शरीर का स्पर्श किया है उसे मैं पूर्ण स्वस्थ हो चुका हूं और मेरे संपूर्ण कास्ट पल भर में ही नष्ट हो गए हैं हे नाथ मैं आपकी शरण में आया हूं तो आप मेरे ऊपर कृपा कीजिए
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Brahma Ji said that one day Lord Girijapati took his songs along with him and rode on the river to see Anandvan. After reaching Anandvan, he praised the area to Girija. There were many types of fragrant flowers like Madar Kaner, Adhar Jasmine, Mall Shri Multi Juhi, Lotus etc. blooming. Birds were sitting on the trees of Shrestha Lal Dhammal etc. and singing in sweet voices. All three types of winds were blowing all the time. Sages, Munis, Siddha Jains etc. used to sit on the banks of the river and follow their rules and rituals with utmost dexterity. Thus, there was joy everywhere. O Narad, after seeing that excellent forest, Lord Girijapati was very pleased and called Malik and made him happy by giving him rewards etc. Thereafter, he went inside the forest and said to Girija, “Dear, just as you are very dear to us, in the same way, we like this cough and study in Anandvan. The person who comes here and dies, we give him salvation. The residents of this place are always happy and we have our blessings on him.” Saying this, Shivji went ahead with Girja. He saw that Harikash was sitting under an Ashoka tree and was doing penance with great love and was uttering the name of Vishwanath. Only bones and bones were visible in his body. The dangerous creatures on the mountain were standing around him to protect him, abandoning their violent nature. Seeing this condition of Harikash, Giriya became very kind and said to Shivji, "Prabhu, you are his supreme devotee and he is alive only on your trust. Whatever boon he asks for, please grant it to him. Place your lotus hand on his forehead so that he becomes conscious." Hearing the words of Girja, Shivji came down with force and touched the body of Harikash and made him capable by his grace. On getting his touch, Harikash opened his eyes. At that time, he saw that light like the effect of crores of suns was residing on his body. There was Panchmukhi, Trinetra, 10-armed Lord Sada Shiva, on whose forehead sits the moon. Girija Ji is adorned in the Vaman part and is standing in front of his eyes. Seeing that form of Lord Shiva, Yakshapati Hari became very happy in his heart. Then he bowed to Shiva and praised him and said, O Lord, since you have touched my body, I have become completely healthy and all my wounds have been destroyed in a moment. O Lord, I have come in your refuge, so please have mercy on me.
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