इतनी कथा सुनकर श्री सूट जी ने कहा है शाहू का नदी ऋषियों जब ब्रह्मा जी यह वृतांत का चुके तो नारद जी ने उसने से युक्त होकर कहा है पिता अपने अंधा कसूर की कथा मुझे सुनाई परंतु मुझे उसमें कुछ संदेह उत्पन्न हुआ है आज तो आप उसे दूर करने की कृपा करें है ब्राह्मण आप मुझे यह बताएं कि शिवजी कैलाश छोड़कर मध्यांचल को कब गए नारद के मुख से यह शब्द सुनकर ब्रह्मा जी ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा यह नारद प्राचीन काल में एक दिन श्री शिवजी श्री गिरिजा जी तथा अपने गानों के साथ काशीपुरी गए उसे समय मैं विष्णु इंद्र आदि सभी देवता ऋषि मुनि तथा सिद्ध जैन आदि भी अपने परिवार एवं गानों सहित शिव जी की सेवा करने के लिए वहां जा पहुंचे वहां सबके पहुंच जाने पर शिवजी की जो सभा विराजमान हुई उसकी सुंदरता का किसी भी प्रकार वर्णन नहीं किया जा सकता हे नारद सर्वप्रथम हम लोगों ने मनिका मानिक में स्नान किया दादू प्रांत भगवान विश्वनाथ का पूजन कर उनकी अनेक प्रकार से स्तुति प्रशंसा की था तो फ्रांस शिवजी के गानों से ने भी बहुत प्रकार से पूजा स्तुति की कैलाशपति शिवजी ने भी जब हम लोगों के साथ भगवान विश्वनाथ की पूजा की उसे समय काशिपति विश्वनाथ ने अत्यंत प्रसन्न होकर अपनी दोनों भुजाएं फैला कर गिरिजा पति से बैठ करते हुए कहा जाएगी कैलाशपति चंद्रपाल हम और आप एक ही स्वरुप है आप में और मुझ में किसी प्रकार का अंतर नहीं है मैं यहां पर मोती के रूप में प्रतिष्ठित हूं और आप संसार का उपकार करने के लिए शगुन रूप धारण कर गिरजा के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं आपने यह बड़ी कृपा की जो आप सब देवताओं के साथ यहां पधारे
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Hearing this story, Shri Soot Ji said that when Brahma Ji had finished narrating this story to the sages of Shahu river, then Narad Ji agreed with him and said that father, you have told me the story of your blind mistake, but I have some doubts in it, so please remove them today, Brahmin, tell me when did Shiv Ji leave Kailash and go to Madhyanchal. Hearing these words from Narad's mouth, Brahma Ji praised him and said that Narad, in ancient times, one day, Shri Shiv Ji went to Kashipuri with Shri Girija Ji and his songs. At that time, all the gods like Vishnu Indra, sages, saints and Siddha Jains etc. also reached there with their families and songs to serve Shiv Ji. When everyone reached there, the beauty of the assembly of Shiv Ji that was set up cannot be described in any way. Narad, first of all, we people took bath in Manika Manik and worshipped Lord Vishwanath of Dadu province and praised him in many ways. Then, Shiva Ji's songs also worshipped and praised him in many ways. When Kailashpati Shiv Ji also We worshipped Lord Vishwanath together. At that time Kashipati Vishwanath being very pleased sat down with his both arms spread out and said to Girijapati, Kailashpati Chandrapal, we and you are one form, there is no difference between you and me. I am established here in the form of pearl and you, to do the service of the world, take the form of Shagun and reside on Mount Kailash with Girija. You have done a great favour by coming here with all the gods.
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