श्री शिव महापुराण कथा छठ खंड अध्याय 1 का भाग 2



हे नारद काशी वासी भगवान विश्वनाथ के मुख से यह वचन सुनकर कैलाशपति शिवजी ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा है काशिपति वास्तव में मुझ में और आप में किसी भी प्रकार का अंतर नहीं है आप मुझे कैलाश पर्वत पर जाने की आज्ञा दीजिए क्योंकि मैं यह केवल आपके दर्शनों से निर्मित ही आया हूं या सुनकर श्री विश्वनाथ जी ने हंस कर कहा है कैलाशपति मेरी इच्छा है कि अब आप देवताओं तथा मुनीश्वरों के साथ कुछ दिनों तक इसी काशी नगर को अपने राजधानी बनाकर गिरजा एवं गानों सहित यही निवास करें तथा भारत खंड पर अनुग्रह करके संसार के मनुष्य को कृतार्थ करें जिस प्रकार आप कैलाश पर्वत को प्रिया समझते हैं उसी प्रकार इसी स्थान को अभी प्रिया जानकर यह स्थिति हो कि काशी पुरी में जो मनुष्य रहे आप उसे मोक्ष प्रदान किया करें एक कैलाशपति तीनों लोग आपकी आज्ञा में रहते हैं आप सबसे श्रेष्ठ और सबके स्वामी है ब्रह्मा तथा विष्णु बिहार के अधीन है आपकी उनकी रक्षा करते हैं और आपकी सेवा करके ही उन्होंने अत्यंत उच्च पद को प्राप्त किया है ब्रह्मा सृष्टि को उत्पन्न करते हैं और विष्णु को पालन करते हैं इन दोनों की आज्ञा पाकर देवराज इंद्र राज किया करते हैं आज तो आप संसार का बुखार करने के निर्माता इन सब के ऊपर अपनी कृपा बनाए रहे हे नारद काशिपति भगवान विश्वनाथ कैसे वचन सुनकर कैलाशपति शिव जी ने कहा है देवताओं के स्वामी यम्मी मुझे कैलाश पर्वत अत्यंत प्रिय है क्योंकि वहां मेरे भक्त निवास करते हैं फिर भी मैं काशी को उससे भी अधिक प्रिय जानकर आपकी आज्ञा अनुसार यहां निवास करूंगा कैलाशपति शिवजी के मुख से यह वचन सुनकर भगवान विष्णु का अंतर ध्यान हो गए तथा कैलाशपति शिवजी भगवान विश्वनाथ के उसे स्थान पर अपने पूरनेस द्वारा गुप्त होकर निवास करने लगे इस प्रकार काशी परम सिद्ध पीठ रूप में प्रसिद्ध हुए भगवान कैलाशपति के साथ गिरिजा जी भी वही निवास करने लगे हे नारद इस काशी पुरी की महिमा ऐसी है कि जो मनुष्य वहां मरता है उसे भी शिवजी तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रावधान करने की कृपा करते मिलते हैं वहां काशी तीनों लोकों में सबसे श्रेष्ठ सबसे पवित्र तथा प्रज्ञान क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है आप मैं तुम्हें वहां कथा सुनाता हूं जिस प्रकार भगवान विश्वनाथ की आज्ञा पाकर गिरजापति शिवजी ने काशी में राज किया और मनुष्यों को कासन से दूर किया जब शिवजी ने फांसी को अपने राजधानी बनाई तो भगवती गिरजा भी वहीं रहकर अन्नपूरेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई उन्हीं की कृपा से काशी में कोई जीव भूख नहीं रहता है कोई अपनी प्रजा के संपूर्ण मनोरथ को पूरा करती है हे नारद यह कथा मैं तुम्हें पहले सुन चुका हूं कि शिव जी ने अपने हंस के एक मूर्ति को उत्पन्न किया था जिसका नाम भैरव था उसे भैरव ने मेरे पांचो मस्तक को त्रिशूल द्वारा काट डाला था क्योंकि मैंने उसे मुख से शिवजी की निंदा की थी मेरा मस्तक काट डालने के कारण भाइयों को ब्रह्म हत्या का पाप लगा और तू उसे दूर करने के हेतु हुए संसार में ब्राह्मण कर रहे थे जब वह सब स्थान को ब्राह्मण करते हुए काशीपुरी में पहुंचे तो उनकी हत्या का पाप तुरंत नष्ट हो गया जिस स्थान पर मेरा मस्तक गिरा था उसे स्थान पर शिव जी ने बड़ा नृत्य किया था वस्तु वह स्थान एक पवित्र तीर्थ के रूप में कल्प मोचन के नाम से प्रसिद्ध हुआ वह तीर्थ संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला है हे नारद तुम्हें यह जान लेना चाहिए कि भैरव और कोई नहीं अभी तो शिव जी के ही एक स्वरूप है आज तू हंसी में निवास करने पर शिवजी ने भगवा को कोठीपाल का पद दिया और यह कहा कि है भैरव तुम्हारा संपूर्ण पाप आप नष्ट हो चुका है आप तुम यही हमारे पास रहकर काशी जी की रक्षा किया करो तथा पापियों को दंड देते हुए सब प्रजा को कृतार्थ करते रहो

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O Narad, on hearing these words from the mouth of Kashi resident Lord Vishwanath, Kailashpati Shivji praised him and said, Kashipati, in reality there is no difference between me and you, please allow me to go to Kailash mountain because I have come here only because of your darshan. On hearing this, Shri Vishwanath ji smiled and said, Kailashpati, my wish is that now you make this Kashi city your capital for some days with the Gods and sages and reside here with churches and songs and by blessing the Bharat Khand, bless the people of the world. Just as you consider Kailash mountain as your beloved, similarly, considering this place as your beloved, it should be such that you grant salvation to the people living in Kashi Puri. One Kailashpati, all the three people live under your command. You are the best and the master of all. Brahma and Vishnu are under Bihar. You protect them and by serving you, they have attained a very high position. Brahma creates the universe and nurtures Vishnu. Devraj Indra rules after getting the permission of both of them. Today, you, the creator of the world, shower your blessings on all of them. O Narada, on hearing these words of Kashipati Lord Vishwanath, Kailashpati Shivji said, Yammi, Lord of the Gods, I love Mount Kailash very much because my devotees reside there. Still, knowing Kashi to be even dearer than that, I will reside here as per your command. On hearing these words from the mouth of Kailashpati Shivji, Lord Vishnu went into deep meditation and Kailashpati Shivji started residing secretly in that place of Lord Vishwanath through his Purness. Thus, Kashi became famous as the supreme Siddha Peeth. Along with Lord Kailashpati, Girija ji also started residing there. O Narada, the glory of this Kashi Puri is such that the man who dies there, Shivji blesses him with salvation by giving him the Tarak Mantra. There, Kashi is the best, most sacred and is famous as the region of wisdom in the three worlds. I will tell you the story of that place. The way Girijapati Shivji ruled in Kashi after getting the permission of Lord Vishwanath and kept the men away from Kashi. When Shivji made Phansi his capital, then Bhagwati Girija also stayed there and became famous as Annapureshwari Devi. By his grace, Kashi No creature remains hungry in me. No one fulfils all the desires of his subjects. O Narada, I have already narrated this story to you that Shiv Ji had created an idol of his swan whose name was Bhairav. Bhairav ​​had cut off all my five heads with his trident because I had slandered Shiv Ji with my mouth. Due to cutting off my head, my brothers committed the sin of killing a brahmin and to get rid of that, you were doing brahmin worship in the world. When he reached Kashipuri after doing brahmin worship at all the places, the sin of their murder was destroyed immediately. At the place where my head had fallen, Shiv Ji had performed a big dance. That place became famous as a holy pilgrimage by the name of Kalpa Mochan. That pilgrimage destroys all sins. O Narada, you should know that Bhairav ​​is none other than a form of Shiv Ji. Today, when you started living in the swan, Shiv Ji gave the post of Kothipal to Bhagwa and said that Bhairav, all your sins have been destroyed. You stay here with us and serve Kashi Ji. Protect us and keep all the people happy by punishing the sinners

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