श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 35



ब्रह्मा जी बोले हैं नारद शिव जी के गानों द्वारा देवताओं की ऊपर आ जाए तथा अपने गानों की दुर्गति का समाचार सुनकर वीरभद्र को दैत्य से युद्ध करने का आदेश दिया वीरभद्र  ही शिवजी के समान शंख बजाया तथा क्रोध  प्रगट किया उसे संघ की ध्वनि को सुनकर तथा वीरभद्र ने क्रोध को देखकर कहते आप गए दादू प्रणवीरभद्र ने अपनी भयानक आक्रमण से एक और छोड़ दिया दैत्य सेवा का नाश कर दिया उसे समय युद्ध क्षेत्र रक्त से लाल हो उठा शास्त्रों का बैंड इधर-उधर फिरने लगे फिर वीरभद्र ने भी क्रोधित होकर एक करोड़ डेट को मार डाला अंत में विपरीत प्रवाह जीव असुर तथा वीर विक्रम एवं चारों महाबली दैत्य वीरभद्र के सम्मुख हुए तथा अलग-अलग युद्ध करने लगे या देख महामारी से जाकर दैत्य को नष्ट कर दिया फिर भैरव ने दैत्य को खाना शुरू किया उसे समय सब डटेया पराजित हो गए हे नारद अपनी सेवा की इस प्रकार हर देखकर संपूर्ण अपने कवच को कैंट में पहने विमान पर जड़ बहुत बड़ी सी साथ ले मारू बाजार बजावट हुआ युद्ध स्थल में आ पहुंचा तथा अपनी भागी हुई सी को एकत्र किया फिर उसने अपने धनुष को दान कर ऐसे बढ़ वर्ष की जिससे आकाश बाहर से भर गया और चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा छा गया तब अनेक देवता हार मानकर भाग गए अकेले वीरभद्र ही वहां खड़े रहे तब सॉन्ग सुनने अपने माया से पर्वत सर्प अग्नि आदि को उत्पन्न किया था इसकी वर्ष आरंभ कर दी जिससे वीरभद्र इस प्रकार छुप गए जैसे सूर्य बदलती बदली में छिप जाता है यह देख वीरभद्र ने आचार्य चकित को शिवजी का स्मरण किया था मा शक्ति को छोड़ उसे शक्ति ने बेटियों की इस माया को बिल्कुल नष्ट कर दिया तब सॉन्ग सुनने क्रोधित होकर वीरभद्र के रात तथा धनुष को अपने अत्यंत पवित्र भारत से काट डाला वीरभद्र के रात के घोड़े मारकर पृथ्वी गिर पड़े तब सॉन्ग सुनने दूसरा बानवीर भद्र पर छोड़ा जिसे वीरभद्र मुर्जित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े या वीरभद्र को छेड़ हुआ तब हुए दूसरे रात पर चढ़कर सॉन्ग चरण से युद्ध करने लगे उन्होंने उनके रात इतना घोड़े शक्ति आदि को काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया फिर उसके सारथी को मार कर अपनी शक्ति से संपूर्ण को भी अचेत कर दिया थोड़े समय के पास साथ जब संपूर्ण सचेत होकर उठा तथा गर्जना करने लगा तब वीरभद्र ने उसे पुन अपनी शक्ति से गिरा दिया इसी प्रकार वीरभद्र ने कई बार उसे अचेत करके गिराया परंतु संपूर्ण ने उठकर अंत में अपनी शान से वीरभद्र पर आक्रमण कर दिया वीरभद्र उसके प्रहार से पृथ्वी पर गिरकर मर गया है नारद तब मृतक वीरभद्र ने महाकाली ने उठकर शिव जी के पास ले जाकर रख दिया और सब वृतांत विस्तार पूर्वक का सुनाया उसे समय शिव जी ने वीरभद्र को स्पर्श किया जिससे वह पुनः जीवित हो उठे पुन जीवित होते ही वीरभद्र चिल्लाने लगे तथा फिर से युद्ध स्थल मैं जहां पहुंचे वहां उन्होंने अपने त्रिशूल से सांचौर पर आक्रमण किया तब सैमसंग उसके आघात से पृथ्वी पर गिर पड़ा जब वह सचेत हुआ तब उसने वीरभद्र पर वहां वर्ष की परंतु वीरभद्र पर उन बानो का कोई प्रभाव ना हुआ अंत में उसने अपनी वर्तनी वीरभद्र के हृदय में मारी जिससे हुए पृथ्वी पर गिर पड़े परंतु संपूर्ण ने वीरभद्र को पुन अपने त्रिशूल से मारना चाहा उसे समय महाकाली तथा समस्त गणों ने आकर उसकी रक्षा की तिथियां ने भी अपनी भागी हुई सी को हीरे कटरा किया वस्तु दोनों सेनाएं पुणे रैंक क्षेत्र में हड्डी अतः युद्ध पुणे आरंभ हो गया

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Brahma Ji said that Narad, the power of the gods will be raised by the songs of Lord Shiva and on hearing the news of the plight of his sons, ordered Veerbhadra to fight with the demon. Veerbhadra blew the conch like Lord Shiva and expressed his anger. On hearing the sound of the Sangh and seeing Veerbhadra's anger, he said, "Dadu, Veerbhadra got angry and with his terrible attack, he destroyed another demon named Satyendra. At that time, the battle field became red with blood and the bands of weapons started moving here and there. Then Veerbhadra also got angry and killed one crore demons. At last, the opposite flow of creatures, demons and Veer Vikram and the four mighty demons came in front of Veerbhadra and started fighting separately. Seeing this, Bhairav ​​went and destroyed the demon. Then Narad defeated the demon. Seeing this, wearing his armor in the cant, taking a huge boat with him on the plane, he reached the battlefield and collected his runaway boats. Then he donated his bow and started fighting with him. Due to which the sky was filled from outside and darkness prevailed all around. Then many gods accepted defeat and ran away. Only Veerbhadra stood there. Then on hearing the song, with his Maya, he created mountain snakes, fire etc. and started the rain, due to which Veerbhadra hid in such a way as the sun hides in the changing clouds. Seeing this, Veerbhadra remembered Acharya Chakrit and Lord Shiva. Leaving Maa Shakti, Shakti completely destroyed this Maya of the daughters. Then on hearing the song, being angry, he cut off Veerbhadra's chariot and bow with his extremely sacred arrow. Veerbhadra's chariot's horse fell down on the earth. Then on hearing the song, he released another arrow on Veer Bhadra, due to which Veerbhadra fell down on the earth in a frightened state. Veerbhadra got irritated and climbed on the second chariot and started fighting with the chariot. He cut off his chariot, horse, Shakti etc. and fell down on the earth. Then after killing his charioteer, he also made Sampoorna unconscious with his power. After some time, when Sampoorna got up consciously and started roaring, then Veerbhadra again made him fall down with his power. Similarly, Veerbhadra made him fall down many times by making him unconscious, but Sampoorna got up and in the end with his pride, he killed his charioteer and made him unconscious. Narad attacked Veerbhadra, due to his attack Veerbhadra fell on the ground and died. Then Mahakali picked up the dead Veerbhadra and took him to Lord Shiva and narrated the whole incident in detail. At that time Lord Shiva touched Veerbhadra due to which he came back to life. As soon as he came back to life Veerbhadra started shouting and again reached the battle field there he attacked Sanchore with his trident, then Sanchore fell on the ground due to his attack. When he became conscious then he fired arrows at Veerbhadra but those arrows had no effect on Veerbhadra. At last he shot his trident in Veerbhadra's heart due to which he fell on the ground, but Sanchore again tried to kill Veerbhadra with his trident, at that time Mahakali and all the Ganas came and protected him. The Tritiyas also shot their runaway army in the Heera Katra. Both the armies got trapped in the Pune rank area, hence the war started.

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