सूट जी बोले की है ऋषि मुनियों इस कथा के सुनने के पश्चात नारद जी ने ब्रह्मा जी से कहा हे पिता अब आप मुझे उसे सुदर्शन चक्र के विषय में बताएं जो विष्णु जी का प्रसिद्ध शास्त्र है मैं नहीं जानता कि यह वही सुदर्शन चक्र है जो शिव जी ने सब देवताओं से तेज लेकर जलधार के वाद के लिए बनाया था अथवा कोई दूसरा है नारद जी के ऐसे वचन सुनकर ब्रह्मा जी बोले हैं नारद सुदर्शन चक्र एक ही है दूसरा नहीं यह डटेया अत्यंत पाल एवं द्रव्य प्रताप कर देवताओं को दुख पहुंचने लगे तो विष्णु जी ने शिव जी की सेवा कर उसे सुदर्शन चक्र प्राप्त कर लिया तब हुए उसी के द्वारा सब व्यक्तियों का वध करते हैं कल भेद कसु चरित्र लीला वर्णन व्याख्यान कथा तथा इतिहास में बहुत अंतर है परंतु बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि उसके हृदय में जो सामने उत्पन्न हो उसे पूछ ले जिससे वह सत्य मार्ग से नाम भटक जाए अस्तु जलधार के वध के पश्चात ड्यूटी के लड़के चैट बहुत बड़ी बाली होकर उपद्रव मचाने लगे जिससे संसार में मनुष्य को बहुत दुख प्राप्त हुआ तब योग्य यज्ञ देवताओं की पूजा ध्यान हुआ आश्रम तथा सब धर्म में विद्यमान पढ़ने लगे तब सब देवता तथा मुनि दुखी होकर मेरे पास आए उन्होंने मेरी स्तुति कर अपने कासन का वर्णन किया तब मैं उन सबको लेकर विष्णु जी के पास गया और उसकी स्तुति कार्य विनय की की आपदाओं तथा दैत्य बहुत दुख पहुंचे आ रहे हैं सो हम सब आपकी शरण में आए हैं हमारी यह प्रार्थना सुनकर विष्णु ने कहा है देवताओं तुम सब लोग अपने-अपने घर जाओ हम स्वयं दैत्य से युद्ध करेंगे यह कह कर वे दैत्यों के साथ युद्ध करने लगे परंतु व्यक्तियों पर विजय प्राप्त न कर सके क्योंकि दैत्य महाबली थे यह देखकर विष्णु जी ने सोचा कि शिवजी की सहायता के बिना हम दैत्य पर विजय प्राप्त न कर पाएंगे यह विचार कर विष्णु जी तुरंत ही अंतर ध्यान होगा तथा कैलाश पर्वत के निकट तपस्या करने के लिए बैठ गए उन्होंने एक कुंड खोतकर उसमें एक आदमी भारी तथा वहीं बैठकर कठिन तप करने लगे हे नारद इस प्रकार विष्णु ने ने आर्थिक पूजा मंत्र एवं ध्यान आदि से शिवजी का पूजा किया परंतु शिवजी प्रसन्न न हुए यह देखकर विष्णु ने सोचा आपकी हम किसी उपाय से शिवजी को प्रसन्न करें अंत में उन्हें या विश्वास हुआ कि शिव सहस्त्रनाम का जाप करने से ही शिवजी प्रसन्न होंगे यह निश्चय करवे शिव जी के एक सहस्त्र नाम का जाप करने लगे तथा कमल पुष्प छिल्लर ने लागे शिव जी ने परीक्षा के लिए शास्त्र पुष्पों में से एक कमल का पुष्प अलंक्षित कर दिया अंत में पूजा करते-करते जब एक फूल कम हुआ तो उसको बड़ा दुख हुआ क्योंकि वह समय कमल पुष्प प्राप्त होने की कोई आशा न थी साथ ही पुष्प के बिना पूजा में भी अंतर पड़ता था इसी चिंतन में जब उन्होंने शिवजी का ध्यान किया तो ऐसा ज्ञान हुआ कि उसके नेत्र भी कमल पुष्प से किसी प्रकार काम नहीं है अतः उन्होंने तुरंत ही अपने एक नेत्र को निकाल कर प्रसन्नता पूर्वक शिवजी को अर्पण कर दिया यह देख शिवजी अत्यंत प्रसन्न होकर प्रकट हुए उन्होंने विष्णु जी को दर्शन दिए तथा आधुनिक मंत्र का उच्चारण करते हुए कृपा दृष्टि से देखा उसे समय विष्णु जी ने शिवजी को प्रणाम किया तब शिवजी मुस्कुराते हुए बोले हे विष्णु तुम्हारी इच्छा हो वह मांग लो तब शिवजी के आदेश अनुसार विष्णु ने अत्यंत पवित्र स्तुति करते हुए यह प्रार्थना की है सदाशिव हम दैत्य से पराजित हो गए हैं और उन पर किसी प्रकार भी विजय प्राप्त नहीं कर सकते इसलिए आप कोई ऐसा यात्रा कीजिए जिससे वह मारे जाएं हे नारद या सुनकर शिवजी ने कृपा कर विष्णु को अपना सुदर्शन चक्र दिया और यह कहा है विष्णु हमारे इस समय के रूप का ध्यान कर इस सहस्त्रनाम तथा सुदर्शन चक्र से जो हम तुमको प्रदान करते हैं तुम शत्रुओं एवं दैत्यों को मार कर उन पर विजय प्राप्त कर लोगे तुम्हें तीनों लोक में कोई भी नहीं जीत सकेगा परंतु सुदर्शन चक्र का छोटे-छोटे कार्यों में प्रयोग मत करना ब्राह्मण के अतिरिक्त वह सब को जलाकर भस्म कर देगा शिव जी यह कहकर अंतर ध्यान हो गए तथा विष्णु जी सुदर्शन चक्र को लेकर प्रसन्नता पूर्वक लौट आए हुए रात दिन सहस्त्रनाम का जाप करते तथा अपने भक्तों को उसी की शिक्षा देते रहते थे अब भी जो कोई विष्णु सहस्त्रनाम तथा शिव सहस्त्र स्तुति का पाठ करता है उसके सब कार्य सिद्ध होते हैं उसके शत्रुओं का नाश होता है वह तथा वह दोनों लोगों में सुखी रहता है
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Sut ji said that after listening to this story of sages and saints, Narad ji said to Brahma ji, O father, now you tell me about that Sudarshan Chakra which is the famous scripture of Vishnu ji. I do not know whether this is the same Sudarshan Chakra which Shiv ji had made for the fight of Jaldhar by taking power from all the gods or there is some other. On hearing such words of Narad ji, Brahma ji said that Narad, there is only one Sudarshan Chakra, not the other. This was done by the great power and wealth of the gods. When the gods started getting hurt, then Vishnu ji served Shiv ji and got that Sudarshan Chakra. Then he killed all the people by that. There is a lot of difference between the story and history, but an intelligent person should ask the person who comes in front of him so that he does not stray from the path of truth. So, after the killing of Jaldhar, the boys of the duty became very angry and started creating a ruckus, due to which the man in the world got a lot of sorrow. Then the worship of the gods and meditation of the suitable yagya started happening and they started reading in the ashram and all the religions. Then all the gods and sages came to me in sorrow. They came and praised me and described their Kaan. Then I took them all to Vishnu ji and praised him and prayed that we are suffering a lot due to calamities and demons, so we all have come to your shelter. Hearing our prayers, Vishnu said, "Gods, all of you go to your respective homes, we will fight with the demons ourselves." Saying this, they started fighting with the demons but could not win over them because the demons were very powerful. Seeing this, Vishnu ji thought that without the help of Lord Shiva, we will not be able to win over the demons. Thinking this, Vishnu ji immediately went into deep meditation and sat down to do penance near Mount Kailash. He dug a tank and put a man in it and started doing hard penance by sitting there. O Narada, in this way Vishnu worshipped Lord Shiva with religious worship, mantras and meditation etc., but Lord Shiva was not pleased. Seeing this, Vishnu thought that we should please Lord Shiva by some other means. Finally, he got convinced that Lord Shiva will be pleased only by chanting Shiv Sahasranama. Deciding this, he started chanting the thousand names of Lord Shiva. And the lotus flower was applied to him. Shiv ji decorated one of the flowers from the scriptures for the test. In the end, while worshiping, when one flower was missing, he felt very sad because at that time there was no hope of getting a lotus flower, and also without the flower, the worship would have made a difference. While thinking this, when he meditated on Shiv ji, he realized that even his eyes are of no use to the lotus flower, so he immediately took out one of his eyes and happily offered it to Shiv ji. Seeing this, Shiv ji appeared very happy, he gave darshan to Vishnu ji and looked at him with kindness while reciting the modern mantra. At that time Vishnu ji bowed to Shiv ji, then Shiv ji smilingly said, O Vishnu, ask for whatever you wish. Then as per Shiv ji's order, Vishnu while doing a very sacred prayer, prayed this, Sadashiv, we have been defeated by the demons and cannot win over them by any means, therefore you undertake such a journey by which they are killed. O Narada, on hearing this, Shiv ji graciously gave his Sudarshan chakra to Vishnu and said, Vishnu, at this time of ours, By meditating on the form of Vishnu, with this Sahasranaam and Sudarshan Chakra which we are giving you, you will kill your enemies and demons and conquer them. No one will be able to defeat you in the three worlds, but do not use Sudarshan Chakra for small tasks, it will burn everyone to ashes, except a Brahmin. Saying this, Lord Shiva went into meditation and Lord Vishnu returned happily with Sudarshan Chakra. He used to chant Sahasranaam day and night and keep teaching the same to his devotees. Even now, whoever recites Vishnu Sahasranaam and Shiv Sahasra Stuti, all his tasks are accomplished, his enemies are destroyed and he remains happy in both the worlds.
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