श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 23



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद देवताओं ने इस प्रकार स्तुति कर शिवजी से विनती की है शिव जी आपने जलधार को नष्ट करके हम लोगों के कास्ट को दूर करके अभय दान दिया है आप और कोई कटक नहीं है परंतु अचानक ही एक और दुख हम लोगों को हुआ है अर्थात विष्णु जी उसे स्थान पर जहां जलधार की स्त्री वृंदा साथी हो गई है भस्म लगाए लेते रहे हैं आप ही कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे विष्णु जी अपने हाथ को छोड़कर पुणे पुराना मार्ग ग्रहण करें शिवजी ने हंसते हुए यह कहा है ही देवता यह सब हमारे माया का ही परिणाम है विष्णु जी हमको अत्यंत प्रिय है इसलिए हमने इस लीला द्वारा उनके अहंकार को दूर कर दिया है अब हम तुमको जो उपाय बताते हैं वह तुम करो जिससे विष्णु जी का मोह दूर हो जाएगा तुम सब लोग देवी की शरण में जाकर अपना दुख सुनाओ वह दूसरे सब कार्य सिद्ध करेंगे और विष्णु जी पुनः अपने मुख्य स्वरूप पर आ जाएंगे है नारद तब शिव जी ने बताएं हुए उपाय के अनुसार सब देवता गिरजा की स्तुति करने लगे हुए बोले ही मातेश्वरी हम आपकी शरण मैं आए हैं आप हमें इस दुख से छुटकारा दिलाए देवता इस प्रकार स्तुति कर ही रहे थे कि इस समय आकाश में एक अग्निकुंड दिखाई दिया तथा उसे आदमी कौन से यह शब्द निकला की है देवता हमने तीनों रूपों से अलग-अलग तीनों गुना से अलंकृत होकर संसार में अवतार लिया है वह रूप एक गिरजा दूसरी लक्ष्मी तथा तीसरी सरस्वती का है इसलिए है देवताओं तुम हमारे इन तीनों स्वरूपों की शरण में आओ तुम्हारा मनोरथ सफल होगा यह सुनकर देवता पुणे स्तुति करने लगे उसे स्तुति के प्रत्येक लोक में जय जय शब्द था तब देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर तीनों देवियां प्रकट हुई फिर उन्होंने तीन बी देखकर यह कहा है देवताओं जहां पर विष्णु जी बैठे हैं वहीं इन बीजों को वह दो इस प्रकार तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी देवियों के ऐसे वचन सुनकर देवता उन बीजों को लेकर वहां जा पहुंचे जहां विष्णु जी बैठे हुए थे उन्होंने उसे बीजों को वहां वह दिया उनसे तीन प्रकार की वनस्पति उपाय उनका नाम धारण लक्ष्मी से मल्टी तथा गिरजा से तुलसी की उत्पत्ति हुई वह तीनों वनस्पति रजत शांत तो हम इन तीनों गुना को धारण किए स्त्रियों के समान प्रकट होकर वृंदा से भी अधिक सुंदर रूप रख विष्णु जी के सम्मुख जहां खड़ी हुई विष्णु जी उनको देखकर आश्चर्य चकित हुए यह नारायण विष्णु जी को इस प्रकार कामवास होते देख धरती तथा तुलसी ने तिरछी चिंतन चितवन से विष्णु जी की ओर देखा मल्टी उनकी यह दृष्टि सउदिया दर से ना सहकार अत्यंत दुखी हुई इसलिए वह शिवजी पर नहीं चढ़ी जाती अस्तु विष्णु जी शास्त्री तथा तुलसी पर मोहित होकर उसे अपने साथ लिए हुए बैठे बैकुंठ में लौट आए वहां आप अनमोह दूर हो गया है नारद जो मनुष्य जलधार के वक्त की इस कथा का पाठ करता है अथवा सुनता है वह शिवलोक में स्थान प्राप्त करता है

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Brahma Ji said, O Narada, the gods have prayed to Shiv Ji in this way. Shiv Ji, you have destroyed Jaldhar and removed our caste and given us protection. You have no other option but suddenly we have suffered another tragedy. Vishnu Ji has been applying ashes at the place where Jaldhar's wife Vrinda has become his companion. You should do something so that Vishnu Ji leaves his hand and takes the old path. Shiv Ji said smilingly, O God, all this is the result of our Maya. Vishnu Ji is very dear to us. That is why we have removed his ego through this leela. Now you should do the remedy that we tell you, by which Vishnu Ji's attachment will be removed. All of you go to the Goddess and tell her your sorrow. She will accomplish all the other tasks and Vishnu Ji will come back to his original form. Narada, then as per the remedy told by Shiv Ji, all the gods started praising Goddess Parvati and said, O Mother, we have come to your shelter. You should free us from this sorrow. The gods were praying in this way when at this time in the sky A fire pit was seen and from that man came the words that O God we have taken incarnation in this world in three different forms, adorned with three gunas. One form is of Girja, second is of Lakshmi and third is of Saraswati. Therefore, O Gods, come under the shelter of these three forms of ours, your wish will be fulfilled. Hearing this, the Gods started praising him. In every world of praise, there was the word Jai Jai. Then, pleased with the praise of the Gods, the three Goddesses appeared. Then, seeing the three seeds, they said that Gods, give these seeds to the place where Vishnu Ji is sitting. In this way, your wish will be fulfilled. Hearing such words of the Goddesses, the Gods took those seeds and reached the place where Vishnu Ji was sitting. They gave those seeds to the Gods. From them, three types of plants were born. They were named Multi from Lakshmi and Tulsi from Girja. Those three plants were silver and silver. So, we appeared like women, having a form more beautiful than Vrinda, and stood in front of Vishnu Ji. Vishnu Ji was surprised to see them. Seeing Narayan Vishnu Ji being lustful in this way, Earth and Tulsi looked at Vishnu Ji with a sidelong glance. She looked towards Lord Shiva and this gaze of hers became very sad due to non-cooperation with the Saudi Arabian fire, therefore she could not offer it to Lord Shiva. As it is, Vishnu ji being fascinated with Shastri and Tulsi sat with her and returned to Vaikuntha, there his disillusionment got dispelled, Narada; the person who recites or listens to this story of the time of Jaldhar gets a place in Shivlok.

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