श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 22



ब्रह्मा जी बोले हे नारद उधर युद्ध क्षेत्र में शिवजी को चैट हुआ तब देवता उन्हें देखकर बहुत आनंदित हुए उसे समय शिव जी की वीरता एवं पराक्रम को देखकर जलधार ने यह विचार किया कि अब मुझे माया करनी चाहिए जिससे मैं शिवरानी को प्राप्त करने में सफल हो सकूं यह विचार कर अपनी माया से एक कृत्रिम गिरजा बनाई तथा उसको अपने रात में बैठ कर शिवजी के समझ ले आया शुभ निशुभ दोनों भाई उसे मरते जाते थे तथा वह गिरजा रोती हुई मेरी रक्षा करो आदि कहती थी उसे समय जलधार ने उच्च स्वर से कहा है सदाशिव तुम अपनी स्त्री को देखो यदि तुम्हें अपनी स्त्री बहुत प्रिय है तो समझ लो कि अब उसको मैं पकड़ लाया हूं तथा उसकी ऐसी दुर्दशा कर रहा हूं क्या तुमको नहीं दिखाई देता तुमको शास्त्रों बेकार है तुम अपने को आप अब भी बड़ा समझते हो शिवाजी तो जलधार के यह वचन सुनकर तथा माया की गिरजा को देखकर अत्यंत दुखी हुई और मौत साथ कर बुद्धि को भूल बैठी तब शिवजी ने भी लीला करके अपने को ऐसा शक कुल प्रदर्शित किया कि जलधार ने अपने धनुष को कानों तक खींच कर तीन बार एक शिवजी के सिर में दूसरा वक्त में तथा तीसरा उधर में मारे उसे समय शिवजी जलधार की माया को जान भयंकर रूप धारण कर अग्नि के समान प्रकट हुए सूक्ष्म तथा निस यू युद्ध से विमुख होकर भेज जलधार की सारी माया इस समय नष्ट हो गई तब शिवजी ने शुभ निशु को या श्राप दिया कि तुमने चल करके शिवजी को दुख पहुंचा है तब युद्ध से मुंह मोड़ कर भागे जा रहे हो इसलिए तुम्हारा धर्म नष्ट हो गया है यह नारद जलधार ने शिवजी का यह रूप देखकर अत्यंत क्रोधित हो वाहनों की वर्षा कर शिवजी को ढक दिया यह देखकर शिवजी ने क्रोधित हो अपने बानो द्वारा जलधार के वाहनों को काट डाला इतने में जलधार ने एक परिधि बैल को मारा जिसके कारण बेल धर्म को भूलकर यूथ क्षेत्र से भाग गया यहध्यपी शिवजी ने उसको बहुत रोका पर वह युद्ध स्थल में ना हर सका यह देख शिवजी अत्यंत क्रोधित हो महा भयंकर हो गए तब उन्होंने करोड़ों सूर्य के समान चमकते हुए सुदर्शन चक्र को अपने हाथ में उठा लिया और उसे जलधार के ऊपर छोड़ दिया उसे चक्र का तेज दसों दिशाओं में फैल गया संपूर्ण पृथ्वी एवं आकाश उसके देश से जलने लगे चक्र ने जाकर जलधार का सिर धड़ से अलग कर दिया उसे समय बड़ा भारी शब्द व पृथ्वी थर-थर कांपने लगी तथा पर्वत जलने लगे जिस समय जलधार का तेज शिवजी के शरीर में प्रविष्ट हुआ उसे समय चारों ओर से जय-जय कायनात हुआ इन नारद वे लोग बड़े सौभाग्यशाली हैं जिनके ऐसी दशा होती है क्योंकि देवता मुनि आदि बड़े-बड़े उपाय करके भी शिव जी को इतना प्रसन्न नहीं कर सकते और ना इस गति को ही प्राप्त कर सकते हैं उसे समय में मनी तथा देवता आदि शिवजी की अत्यंत प्रशंसा करने लगे

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Brahma Ji said O Narada, there in the battle field, Shiva Ji was caught and the Gods were very happy to see him. At that time, seeing Shiva Ji's valor and valor, Jaldhar thought that now I should use magic so that I can be successful in getting Shivrani. Thinking this, he created an artificial Girja with his magic and brought it to Shiva Ji sitting in his palace. Both the Shubh and Nishubh brothers kept on killing her and that Girja was crying and saying protect me etc. At that time, Jaldhar said in a loud voice, Sadashiv, look at your wife, if you love your wife very much then understand that now I have captured her and am making her suffer in such a way. Can't you see, the scriptures are useless to you, you still consider yourself great. Shiva Ji became very sad on hearing these words of Jaldhar and on seeing the magic Girja and forgot his wisdom by taking death with him. Then Shiva Ji also performed a leela and showed himself in such a way that Jaldhar pulled his bow till his ears and hit him thrice, first on Shiva Ji's head, second in the right hand and third on the right hand. Knowing the illusion of Jaldhar, Shivji assumed a terrifying form and appeared like fire. He turned away from the battle and all the illusions of Jaldhar were destroyed. Shivji cursed Shubh Nishu that you have hurt Shivji by running away and are running away from the battle, therefore your religion has been destroyed. This is Narad. Jaldhar became very angry seeing Shivji in this form and showered arrows on Shivji and covered him. Shivji became angry seeing this and cut off the arrows of Jaldhar with his arrows. Meanwhile, Jaldhar killed a bull, due to which the bull forgot his religion and ran away from the battle field. Shivji tried to stop him a lot but he could not defeat him in the battle field. Shivji became very angry seeing this and became very fierce. Then he lifted the Sudarshan Chakra shining like millions of Suns in his hand and released it on Jaldhar. The brilliance of the Chakra spread in all the ten directions. The entire earth and sky started burning from his body. The Chakra went and separated Jaldhar's head from the body. There was a loud sound and the earth started trembling and the mountains started to shake. The moment the power of the water stream entered the body of Lord Shiva, there was chanting of Jai-Jai from all sides. Narad, those people are very fortunate who are in such a condition because even after taking great measures, gods, sages etc. cannot please Lord Shiva so much and cannot even achieve this speed. At that time, gods and others started praising Lord Shiva immensely.

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