ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद गिरजा की आज्ञा पाकर विष्णु जी जलपुरी में पहुंचे तथा यह सोचने लगे कि मैं किस प्रकार जलधार की पत्नी वृंदा का पति व्रत धर्म नष्ट करूंगा जब उन्होंने शिव का ध्यान किया तो उसे ध्यान के करते ही विष्णु जी को एक उपाय सूज गया तब वह तपस्वी का रूप धारण कर एक शिष्य को साथ लेकर वृंदा के उपवन में जा पहुंचे वृंदा ने इस रात खोया हुआ वन में देखा था कि मेरा पति जलधार युद्ध में मर गया है तथा यह भी देखा था कि मेरा पति जलधार तेल लगाई हुई भैंसों पर सवार नॉन तथा सिर के अशोक बाल बने कल पुष्पों की माला पहने राक्षसों से घिरा हुआ यमपुरी को चला जा रहा है जब वह यह स्वप्न देखकर उठी तो उसने सूर्य को उदय होते समय राहुग्रस्त तथा प्रकाश सिंह देखा ऐसे अपशगुणों को देखकर वह एक रोने पीटने तथा घबराहट से इधर-उधर फिरने लगे वह अपने दो सखियों को साथ लेकर जलधार के उपवन को गए परंतु उसे वहां फल फूल देखकर संतोष ना पहुंचा उसे वहां दो रक्षा ऐसे दिखाई दिए जो अंत भयानक थे उनको देखकर रानी बृंदा वहां से भाग आई आगे जाकर उसने शिष्यों सहित एक तपस्वी को देखा जो मौन साधे हुए बैठा था वृंदा इस समय दौड़कर पुस्तक पश्चिम के पास गई तथा अपने हाथ उसके ग्रहण में डालकर लिफ्ट गई और बोली है तपस्वी आप मेरी रक्षा करो उसे समय तपस्वी ने अपने दोनों नेत्र खोलकर बड़ा क्रोध किया था ओंकार जिससे वह दोनों रक्षा वहां से भाग गए यह देखकर जलधार की स्त्री अध्ययन प्रसन्न हुई तथा प्रणाम करके उसके तपोवन की प्रशंसा करने लगी फिर वह तपस्वी से इस प्रकार बोली है प्रभु आप मेरी पति का जो शिवजी से युद्ध करने के लिए गए हैं वृतांत कहिए हे नारद या सुनकर तपस्वी रूप धारी विष्णु जी ने हाथ का ऊपर की ओर देखा जिसे तुरंत ही दो बंदर वहां आओ उपस्थित हुए तथा उन्हें प्रणाम करके बैठ गए फिर वह दोनों बंदर गुप्ता हो गए ता दो प्रांत एक क्षण में नहीं बिता कि वे दोनों बंदर को ना पहले की भांति आकर बैठ गए इस बार उसके हाथ में जलधार का शीश एवं धर्म था उसे उन्होंने योगी के सम्मुख रख दिया तथा स्वयं दुखी होकर बैठे रहे उसे समय वृंदा अपने पति का सर देखकर व्याकुल हो गई पृथ्वी पर गिर पड़ी तब तपस्वी ने पानी आदि सेट कण कर वृद्धा को सचेत किया वृंदा पुणे रोड रोकर अपने पति का सर अपने सर से लगाकर व्यतीत होने लगी बोली है नाथ मैं तो आपसे शिव जी के साथ युद्ध करने के लिए पहले ही मना किया था परंतु आपने मेरी बात नहीं मानी इसी प्रकार वह अनेक बातें कहां-कहां कर रोती रह रही फिर तपस्वी से बोली है महाराज आप मेरे ऊपर कृपा करके मेरे पति को जीवित कर दीजिए मैं आपके प्रभाव को देख चुकी हूं इसलिए मुझे विश्वास है कि आप इस योग्य है कि मेरे पति को जीवित कर देंगे यह सुनकर मुनिवेशधारी विष्णु जी से कहा है वृंदा जो मनुष्य शिवजी की क्रोध अग्नि से मृत्यु को प्राप्त हुआ है उसे हम जीवित नहीं कर सकते परंतु तुम्हारे दुख को देखकर हम इसको जीवित करेंगे यह कहकर उन्होंने सर को धड़ से जोड़ दिया तथा स्वयं अंतर्ध्यान होकर उसे शरीर में प्रवेश कर गए और जलधार के समान उठकर बैठ गए दादू प्राण उन्होंने वृद्धा को गले लगाया परंतु वृंदा यह सब कुछ ना समझ सकी और उसने बड़ी प्रसन्नता पूर्वक उसके साथ-साथ करके अपना धर्म नष्ट कर दिया जब वह उत्तम रीति से बिहार कर चुकी तथा विष्णु जी ने अपना शरीर प्रगति कर दिया उसे देखकर वृंदा ने उन्हें पहचान लिया तब वह अपने मृत पर बहुत दुखी हुई उसे विष्णु जी के ऐसे चल पर बहुत क्रोध आया वह बोली है विष्णु तुमने वेद के विरुद्ध मेरे धर्म को नष्ट किया है तुम मुनीश्वर के समान स्वरूप धारण किए हुए बड़े अधर्मी हो यह कहकर वृंदा ने विष्णु जी को यहां श्राप दिया कि जो रक्षा तुमने मुझे दिखाए थे वह दोनों बड़े शक्तिशाली होकर तुम्हारी स्त्री को भाग ले जाएगी उसे समय तुम दुखी होकर 11 में फिरोगे और तुम्हें हर प्रकार के कष्ट प्राप्त होंगे तथा जो बंदर तुमने मुझको दिखाएं वही तुम्हारे सहायक होंगे यह कहकर वृंदा बहुत द्रोही तथा चिंता बनाकर अपने पति के साथ साथी होने की इच्छा करने लगी यद्यपि विष्णु जी ने उसे बहुत समझाया परंतु उसे पति व्रत धर्म ड्रेन करके कुछ नहीं माना था दो प्रांत वह शिव गिरजा का ध्यान धरकर सती हो गई और उसका तेज सबके देखते-देखते गिरजा के शरीर में प्रवेश कर गया हे नारद विष्णु जी या दशा देखकर बारंबार पहुंचते हुए उसकी सुंदरता के स्मरण में दुखी हुए तथा उसकी चिंता की भस्म को अपने शरीर में मालकर उसी स्थान पर वास करने लगे उसकी यह दशा देखकर देवता तथा सिद्ध उनके निकट जा पहुंचे और विष्णु जी को बड़े-बड़े इतिहास तथा दृष्टांत सुन कर समझने लगे कि आप तो स्वयं हर समय धर्म का पालन करने वाले रहे हैं अब आप यहां से चलिए तथा अपने बैकुंठ लोक में बिहार कीजिए जो पाप आपसे दूर भाग्य वर्ष हुआ है वह सब शिवजी की कृपा से नष्ट हो जाएगी आप इसी प्रकार का दुख मत कीजिए तथा यहां से अपने स्थान को चलिए आप हमें इन शब्दों के लिए क्षमा करें क्योंकि हम तुझे आपको समझ रहे हैं उन लोगों के इस प्रकार समझाने पर भी विष्णु जी ने किसी को कोई उत्तर नहीं दिया तथा उसकी प्रकाश प्रकार शोक में बैठे रहे हे नारद शिव जी के माया बड़ी विचित्र है और सब उसी के अधीन रहते हैं
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Brahma Ji said, O Narada. After getting the permission of Lord Vishnu, Vishnu Ji reached Jalpuri and started thinking that how will I destroy the devotion of husband of Vrinda, wife of Jaldhar. When he meditated on Shiva, Vishnu Ji got an idea of a way. Then he took the form of an ascetic and reached Vrinda's garden with a disciple. Vrinda had seen in the lost forest that night that her husband Jaldhar has died in the war. She had also seen that her husband Jaldhar is going to Yampuri surrounded by demons, riding on a buffalo with oil applied on his head and wearing a garland of flowers. When she woke up after seeing this dream, she saw the sun rising, afflicted by Rahu and shining. Seeing such bad omens, she started crying and wandering here and there in panic. She took her two friends along and went to Jaldhar's garden, but she was not satisfied after seeing the fruits and flowers there. She saw two demons there, who were very dangerous. Seeing them, Queen Brinda ran away from there. Going further, she saw an ascetic with his disciples, who Vrinda was sitting silently. At this time she ran to the book Pashchim and putting her hand in its handle, she lifted it and said, "Ascetic, please protect me." At that time the ascetic opened both his eyes and shouted in anger. On seeing this, Jaldhar's wife Adhyayan became happy and after bowing down, she started praising his asceticism. Then she spoke to the ascetic in this way, "Prabhu, please tell me the story of my husband who has gone to fight with Lord Shiva." On hearing this, Vishnu Ji in the form of an ascetic looked upwards. Immediately two monkeys appeared there and after bowing down to him sat down. Then both the monkeys became silent. Not even a moment passed when both the monkeys came and sat down as before. This time, Jaldhar had Jaldhar's head and Dharma in his hand. He placed it in front of the Yogi and himself sat there sadly. At that time, Vrinda became restless after seeing her husband's head. She fell on the ground. Then the ascetic sprinkled water etc. and alerted the old lady. Vrinda started crying and saved her husband's head. Vrinda hugged him to his head and said, "Lord, I had already forbidden you to fight with Shiv Ji, but you did not listen to me." Similarly, she kept crying and saying many things. Then she said to the ascetic, "Maharaj, please be kind to me and bring my husband back to life." I have seen your power, so I am sure that you are capable of bringing my husband back to life. Hearing this, Vishnu Ji, who was in the guise of a sage, said, "Vrinda, we cannot bring back to life the man who died in the fire of Shiv Ji's anger, but seeing your sorrow, we will bring him back to life." Saying this, he joined the head to the body and himself disappeared and entered the body and sat up like a stream of water. Dadu Pran embraced the old woman, but Vrinda could not understand all this and she happily destroyed her religion by accompanying him. When she had performed the last rites in a good manner and Vishnu Ji had made his body progress, seeing that Vrinda recognized him. Then she became very sad on her death. She became very angry on Vishnu Ji's such action. She said, "Vishnu, you have done this according to the Vedas." You have destroyed my religion against me. You are very unrighteous, having assumed the form of a sage. Saying this, Vrinda cursed Vishnu Ji that the two demons that you had shown me will become very powerful and will take away your wife. At that time, you will wander around in sorrow and you will face all kinds of troubles. And the monkeys that you showed me will be your helpers. Saying this, Vrinda became very treacherous and started desiring to be with her husband. Although Vishnu Ji tried to convince her a lot, but she did not listen to anything. She became sati by meditating on Shiv Girja and her radiance entered Girja's body in front of everyone. O Narada, seeing this condition, Vishnu Ji became sad remembering her beauty and applying the ashes of her body on his body, he started living at the same place. Seeing this condition of his, the gods and Siddhas went near him and after listening to the great stories and examples of Vishnu Ji, they started understanding that you yourself have always been a follower of religion. Now you should leave from here and go to your Vaikunth lok. Please stay in me, all the sins which have been committed by you will be destroyed by the grace of Lord Shiva. Do not feel sad like this and go to your place from here. Please forgive us for these words because we are trying to understand you. Even after being explained in this manner by those people, Lord Vishnu did not answer anyone and kept sitting in grief like a lamp. O Narada, the Maya of Lord Shiva is very strange and everyone is under his control.
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