ब्रह्मा जी बोले हे नारद उसे समय शिवजी हम सब पर अत्यंत प्रसन्न होकर बोले कि तुम सब लोग अपनी-अपनी इच्छा अनुसार वर मांग लो तब देवताओं ने यह कहा है महाराज अपने तिरुपुर को नष्ट करके हम सबको बड़ा आनंद प्रदान किया हम सब आपकी कृपा के मृत हो गए है शिवजी इसी प्रकार जब-जब हम पर कोई कष्ट पड़े तब तब आप उसे दूर कीजिए किया कीजिए तथा अपनी भक्ति हम सबको प्रदान कीजिए यह सुनकर शिवजी ने ओम का कर हम सबको प्रश्न किया उसे समय नृत्य एवं गन का बहुत बड़ा उत्सव हुआ इस समय आदरणीय ने भी अपने चारों शिष्यों सहित वहां उपस्थित होकर शिवजी को प्रणाम किया तथा अन्य सब देवताओं को भी दंडवत किया फिर नम्र होकर शिवजी से इस प्रकार कहा मैंने आपकी आज्ञा अनुसार ही बिना सोच बेचारे इस मत का प्रचार किया सो मुझ पर आप ऐसी कृपा करें जिससे मुझे ऐसे दुष्कर्म का कोई पाप ना लगे अब आप मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं क्या करूं तथा किस स्थान पर वास करूं यह भी बताएं कि अपनी इस पुस्तक का जिस्म की 16 सहस्त्र श्लोक हैं क्या करूं मेरे शिष्यों के लिए आपकी क्या आगया है यह सुनकर विष्णु जी ने शिव जी की आज्ञा अनुसार यह कहा है आदरणीय तुम शिवजी सहित मरुस्थल में जाकर वास करो कलयुग के आने तक अपना मत किसी पर प्रकट मत करना मुझको कोई पाप नहीं लगेगा तब कलयुग का आरंभ हो तब तुम इधर-उधर अपने मत का प्रचार करना तथा समस्त स्त्री पुरुष का मन अपने अधीन करना जिससे सब लोग महापापी हो जाएं कलयुग पापों का बीज है इसलिए तुम्हारा यह मत कलियुग में अच्छी प्रकार चलेगा और उसे समय सब लोग सा मार्ग त्याग कर को मार्ग पर चलने लगेंगे यह कहकर विष्णु जी ने शिव के शिष्यों सहित आदरणीय को वहां से विदा किया है नारद इस प्रकार जब काली युग आवेग तब अरण्य मरुस्थल से निकाल कर अपने मत को प्रकट करेगा यह नारद मैदाने भी यद्यपि त्रिपुर में था परंतु वह शिवजी की कृपा से जीवित की बचा रहा अस्तु उसने भी शिवजी की स्तुति कर हम सबको प्रणाम किया तब शिवजी ने माया दोनों स्तुति सुन कर कहा है माया दोनों तुम निर्भय होकर रसातल में वास करो शिवजी की आज्ञा अनुसार माया दाना वहां जाकर रहने लगा सब देवता माया दोनों पर शिवजी किया कृपा देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए हे नारद जो मनुष्य ही चरित्र को सुनेगा या सुनवाइए उसकी सभी मनोरथ पूर्ण होंगे
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Brahma Ji said O Narad, at that time Shiva Ji was very pleased with us and said that all of you can ask for a boon according to your wish. Then the Gods said that Maharaj, by destroying Tirupur, you gave us all great joy. We all have died due to your grace. Shiva Ji, in the same way whenever we face any trouble, please remove it and give us your devotion. Hearing this, Shiva Ji asked us all by chanting Om. At that time, a great festival of dance and Gan took place. At that time, the respected one also came there along with his four disciples and bowed down to Shiva Ji and also bowed down to all the other gods. Then humbly he said to Shiva Ji, I propagated this faith without thinking as per your orders, so please bless me so that I do not incur any sin for such a misdeed. Now please order me as to what I should do and where I should live. Also tell me what should I do for my disciples. There are 16 thousand verses of this book of yours. Hearing this, Vishnu Ji said as per the orders of Shiva Ji, respected you Shiva Ji. Go and live in the desert with him. Do not reveal your opinion to anyone till the arrival of Kaliyug. It will not be a sin for me. Then when Kaliyug begins, you should propagate your opinion here and there and bring the minds of all men and women under your control, so that everyone becomes great sinners. Kaliyug is the seed of sins, therefore this opinion of yours will work well in Kaliyug and at that time everyone will abandon the common path and start walking on the other path. Saying this, Vishnu ji sent the respected person along with Shiva's disciples from there. In this way, when Kaliyug arrives, Narada will come out of the forest and desert and reveal his opinion. This Narada was also in the plains of Tripura, but he survived by the grace of Shiva. So he also praised Shiva and bowed down to us. Then Shiva after listening to the praise of Maya and both of them said, Maya, both of you should fearlessly live in the underworld. As per Shiva's order, Maya Dana went and started living there. All the gods were very happy to see Shiva's grace on Maya and both. O Narada, the human who will listen to the character or make him listen to it, all his desires will be fulfilled. will be complete
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