श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 4



ब्रह्मा जी भोले है नारद त्रिपुरा को केला बनाने के पश्चात मोदी ने उन्हें कई आदेश देते हुए कहा है त्रिपुर हमारा मत सब मतों से उत्तम है जिसको नारद ने भी माना है इस मत के यह मार्ग है कि यह संसार असाध्याय है इसका आदि अंत कुछ भी नहीं ना तो इसका कोई करता ही है और ना बनाने वाला ही सनातन से यह इस प्रकार चला आ रहा है समय आने पर यह स्वयं ही प्रगति होता है तथा इसी प्रकार समय अनुसार अदृश्य हो जाता है समय पैक कर ही अच्छा बुरा कार्य हो जाता है ब्रह्मा से लेकर घास मिट्टी तक जितने प्राणी है वह सब मृत्यु के समान है जीव ही ईश्वर है जो आपने इस शरीर में वर्तमान है इसके अतिरिक्त संसार का और कोई स्वामी नहीं है ब्रह्मा आदि जो देवता बहुत प्राचीन है वह भी अमर नहीं है वह सब मृत्यु के वास में हैं इसमें से कोई भी विलंब में ना तथा कोई शीघ्र मारता है परंतु सब की मृत्यु निश्चित है यह निश्चित है कि समस्त शरीर धारी नष्ट हो जाएंगे वह दुख सुख भोगकर पुन्हा जन्म लेंगे समस्त जीव एक ही समान बराबरी का पद रखते हैं उन्हें ना तो कोई छोटा है ना कोई बड़ा भोग एवं भोजन आदि समस्त कार्य में सब समान है सवारी चाहे किसी प्रकार की हो समान है जिस प्रकार हम मृत्यु का भाई करते हैं उसी प्रकार ब्रह्मा विष्णु एवं महेश को भी मृत्यु का भाई है समय के चक्र से कोई नाम बचेगा इसलिए है तिरुपुर तुम यह सत्य जनों की हमने तथा उनमें कुछ बधाई छोटाई नहीं है हम सब ही समान है इस प्रकार जाति क बधाई छोटाई का विवाद है वेद एवं शास्त्र आदि सब झूठे तथा निष्फल हैं केवल सब धर्म से उत्तम धर्म हिंसा का त्याग कर अहिंसा को अपमान नाना है इसमें बढ़कर दूसरा कोई और धर्म नहीं है दूसरों को दुख पहुंचाने से बड़ा पाप संसार में कोई और नहीं है है तिरुपुर चार प्रकार के दान सब दोनों में बड़े हैं एक रोगी को औषधि देना दूसरा भयभीत को अपने शरण में लेकर अभय दान देना तीसरा भूखे को भोजन करना तथा चौथा विद्यार्थियों को विद्याधन देना शरीर को उत्तम औषधि से आरोग्य बनाए रखना चाहिए नरक तथा स्वर्ग सब इसी संसार में है जहां आनंद प्राप्त होता है वह सब स्वर्ग है तथा जहां दुख मिलता है वह नरक है दुखों से वासना रहित मुक्त हो जाना ही परम मोक्ष है वेदों में प्रवृत्तियां निवृत्ति के दो मार्ग कहे हैं इसका तात्पर्य यह है कि जीवो को दुख पहुंचाना प्रवृत्ति धर्म है तथा उन पर दया एवं कृपा रखना निर्मित धर्म है जो जीव को मारकर तथा तिली योग एवं घृत अग्नि में डालकर स्वर्ण प्रताप की इच्छा रखते हैं वह उसकी सबसे बड़ी मूर्खता है हे नारद इस प्रकार मोहित ने त्रिपुरा को अपने धर्म के विषय में बताया जिसको त्रिपुरा और में ठीक समझा तब वह सब अपने नए गुरु की आज्ञा अनुसार पुराने मत को छोड़ नए मत में प्रवत हुए फिर मुदित ने अपने मत किया आजा सुनते हुए कहा है त्रिपुर आप तक मृत्यु ना आवे तब तक आनंद पूर्वक खूब मौत से बिहार करो यदि कोई वृक्ष ऑन या याचक कोई वास्तु मांगे तथा उसकी वह वस्तु न दी जाए अथवा यदि कोई भिखारी अपना मनोरथ पूर्ण किए बिना लौट जाए तो उसे ना देने वाले का सब धन द्रव्य नष्ट हो जाता है अपने शरीर का जो कीचड़ तथा कुत्ते आदि के क्रॉस से अधिक नहीं है कोई भी लोग या मोह नहीं करना चाहिए मृत्यु के पश्चात जी शरीर की कीड़े आदि का डालते हैं इस पर शरीर के भोग के लिए कितनी सामग्री एक पत्र करना व्यर्थ है देखो जब ब्रह्मा आदि ने प्रारंभ परस्पर एक दूसरे की संतान से विवाह कर लिया तब तो उनका धर्म इस प्रकार बना रहा परंतु अन्य लोगों के लिए गोत्र में विवाह करना बहुत बड़ा पाप ठहराया गया और चारों वर्ण बनाकर भाइयों के अलग-अलग वर्ण कह गए हैं यह बुद्धि के विरुद्ध बात है तुमको यही उचित है कि सबके साथ बराबर का व्यवहार रखो हे नारद अब असुर इस प्रकार की अनेक बातें सुनकर वेद के विरुद्ध हो गए और सब स्त्रियां प्रति व्रत धर्म त्याग स्वतंत्र एवं उपाधि गामिनी हो गई जिसे जिसके साथ इच्छा की भोग विलास किया सब कर्मों से अधिक चेतन ने प्रचार प्राप्त किया किसी स्त्री को बांधने संतानवती कर दिया और किसी स्त्री के पति को जीवित कर दिया किसी की आंखों में स्थित अनजान आदि लगाकर पृथ्वी के नीचे की सब वस्तुएं दिखाई दी तथा कभी सीढ़ियां के देश को प्रकट करके दिखाएं इस प्रकार मुदित ने माया एवं चल द्वारा सपना नारियों को अपने वश में कर लिया यह तक की त्रिपुरा से लेकर छोटे-छोटे असुर तक प्राचीन धर्म का पालन कर अरण्य के धर्म को अपना धर्म समझने लग हुए देव पूजन तथा पितृ कर्म सब कुछ भूल गए केवल यही एक धर्म शेष रह गया कि सब ने रात्रि को भोजन करना बंद कर दिया

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Brahma ji is innocent. After making Narad Tripura a banana, Modi gave him many orders and said, Tripura, our opinion is the best of all opinions, which Narad has also accepted. This opinion is the path that this world is unseen, it has no beginning and end. Neither does anyone create it nor is there a creator. It has been going on like this since eternity. When the time comes, it progresses on its own and similarly it becomes invisible according to time. Good and bad work happens only after a certain time. All creatures from Brahma to grass and soil are equal to death. The living being is the God who is present in this body. Apart from this, there is no other master of the world. Brahma etc., the gods who are very ancient, are also not immortal. All of them are in the abode of death. None of them dies late and none dies soon. But everyone's death is certain. It is certain that all the embodied beings will perish. They will be born again after experiencing sorrow and happiness. All living beings have the same status of equality. No one is small or big for them. All are equal in all works like enjoyment and food, no matter what type of vehicle they are. Just as we are brothers of death, similarly Brahma, Vishnu and Mahesh are also brothers of death. No name will be saved from the cycle of time. Hence, Tirupur. You are the true people. We and them have no smallness to congratulate. We are all equal. Thus, there is a dispute of smallness about caste. Vedas and scriptures etc. are all false and futile. The only religion that is the best of all is to renounce violence and insult non-violence. There is no other religion that is better than this. There is no other sin in the world that is bigger than giving pain to others. Tirupur. There are four types of donations, the biggest of the two. First, to give medicine to the sick. Second, to give the charity of protection to the frightened by taking them under your protection. Third, to feed the hungry and fourth, to give the wealth of knowledge to the students. The body should be kept healthy with the best medicine. Hell and heaven are both in this world. Where one gets happiness is heaven and where one gets pain is hell. To be free from pain without desire is the ultimate salvation. In the Vedas, two paths of retirement have been mentioned. It means that causing pain to the living beings is the religion of the tendency and to have mercy and kindness on them is the created religion. By doing sesame yoga and putting ghee in the fire, one desires golden glory, that is his biggest foolishness. O Narada, in this way Mohit told Tripura about his religion, which Tripura and I thought was right. Then all of them, as per the order of their new Guru, left the old faith and started following the new faith. Then Mudit, while listening to his faith, said, “Tripura, till death does not come to you, live happily with death. If a tree is cut or a beggar asks for something and that thing is not given to him, or if a beggar returns without fulfilling his wish, then all the wealth of the one who does not give it to him is destroyed. One should not have any attachment to his body which is no more than mud and dog dung, etc. After death, the body is eaten by insects, etc. It is useless to store so many things for the enjoyment of the body. See, when Brahma and others started marrying each other's children, then their religion remained like this, but for other people, marrying within the gotra was considered a big sin, and by creating four varnas, brothers were given different varnas, this wisdom This is against the Vedas. It is appropriate for you to treat everyone equally. O Narada. Now, on hearing many such things, the demons went against the Vedas. All the women, abandoning their vows and religion, became independent and travelled freely. They indulged in pleasures with whomever they wished. Chetan gained more publicity than all other deeds. He bound a woman and made her bear children and brought back the husband of another woman to life. By putting an unknown thing in someone's eyes, he made all the things beneath the earth visible. Sometimes, by revealing the land of stairs, Mudit brought the women under his control by Maya and trickery. So much so that from Tripura to the smallest demons, they started following the ancient religion and started considering the religion of the forest as their own religion. They forgot god worship and ancestral rituals. Only this one religion remained that everyone stopped eating at night.

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