श्री शिव महापुराण कथा पंचम खंड अध्याय 3



ब्रह्मा जी बोले हैं नारद देवताओं को विदा करने के पश्चात विष्णु जी ने शिव पूजन किया फिर माया द्वारा अपने शरीर से एक ऐसा मनुष्य उत्पन्न किया जिसका सर मूड हुआ था वह मिले वस्त्र पानी तथा वस्त्र से अपने मुख को ढके हुए धर्म धर्म कहता हुआ विष्णु के सम्मुख खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर आहरण वचन बोला उसने कहा मुझको क्या आ गया है तब विष्णु जी बोले तुम हमारे शरीर से उत्पन्न हुए हुए हुए हो इसलिए हमारा काम वाली भारतीय पूर्ण करोगे तुम हमारे स्वरूप हो विष्णु ने यह कहकर एक बहुत बड़ा ग्रंथ जिसमें 16 शास्त्र श्लोक थे की रचना की उसे निम्नलिखित बातें थी वह ग्रंथ चल एवं झूठ से भरा हुआ था जिसमें कोई ठीक धर्म नहीं लिखा था वह वेद शास्त्र एवं पुराणों के विरुद्ध था जिसको पढ़कर किसी प्रकार का आनंद प्राप्त नहीं होता था उसमें वेद पुराण एवं शास्त्रों की बहुत ही निंदा लिखी हुई थी उसे जिसमें वर्ण आश्रम धाम का भी खूब खंडन किया गया था जिसके अनुसार चलने से नरक में स्थान मिलने में कुछ भी देर ना लगे जिसमें सब बातें कुमति एवं संयम की थी जिसके मरने से सो तब आदि सब नष्ट हो जाते थे विष्णु ने उसे पुस्तक को उसे देखकर कहा कि तुम तिरुपुर में जाकर सबको यह पुस्तक पढ़ दो वहां के निवासी वेद एवं पुराणों के समान ही सब कार्य करते हैं इसलिए तुम वहां जाकर इस बात मत का सबको उपदेश दो जिसे वह सब धर्म नष्ट हो कर शिवजी की पूजा करना छोड़ दें जब तुम अपना यह काम पूर्ण कर लो तब अपने शिष्यों सहित तब तक मरुस्थल में वास करो जब तक कि कलियुग ना आवे तू मुंह गुप्त रूप से र करना जब काली युग का आरंभ हो जाए तब तुम मेरे इस उपदेश को भली भांति प्रसिद्ध करना तुम्हारा पद निश्चय ही ऊंचा बना रहेगा है नारद मोदी ने विष्णु जी की यह आज्ञा प्राप्त कर आपने बहुत से शिष्य किया तब विष्णु जी ने कहा अब तुम वहां से विदा हो जाओ हमारा एक नाम अरण्य है तुम उसका स्मरण करते रहना फिर मुझको कोई भय ना रहेगा इस प्रकार विष्णु जी के आदेश अनुसार मुदित ने अपने शिष्यों सहित वहां से चलकर तिरुपुर पहुंचा वह उसने अनेक चेस्ट दिखाकर बहुत से लोगों को अपना शीश बना लिया वहां ऐसा कोई भी ना था जो मोदी के पास जाकर बने बिना अपना पुराना धर्म विश्वास लेकर घर लौट आए हे नारद तुम भी शिव की लीला से मुदित के शिष्य हुए क्योंकि उसे देवताओं का कार्य बना बनाता था फिर तुमने त्रिपुरा और के पास जाकर मुदित की ऐसी प्रशंसा की की त्रिपुरा भी मोहित के शिष्य हो गए मोहित ने त्रिपुरासुर से यह प्रण कर लिया कि हमारी आजा किसी दशा में भी असामान्य ना की जाए यह बात मान ली ने के पश्चात मुदित ने अपने मुंह पर से वस्त्र हटाकर तिरुपुर को अपना शिष्य बनाया था मंत्र दिया फिर अनेक प्रकार के कर्तव्य एवं आकर्तव्य कार्य बता दिए त्रिपुरा के शिष्य बन जाने के पश्चात फिर कोई ऐसा व्यक्ति ना रहा जो मोहित का शिष्य ना बना हो

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Brahma Ji said that after bidding farewell to Narad Gods, Vishnu Ji worshipped Shiva and then by Maya, he created a man from his body whose head was shaved. He covered his face with clothes and water and stood in front of Vishnu saying Dharma Dharma and with folded hands said Aaharan Vachan. He said what has happened to me then Vishnu Ji said you are born from my body, therefore you will complete my work, you are my form. Vishnu said this and created a very big book in which there were 16 Shastra Shlokas. It had the following things. That book was full of lies and fraud in which no correct religion was written. It was against the Vedas, scriptures and Puranas. By reading it, no kind of pleasure was derived. There was a lot of condemnation of Vedas, Puranas and scriptures in it. In which Varna Ashram Dham was also refuted a lot. By following which, it would not take long to get a place in hell. All the things were of evil mind and self-control. By dying, everything would be destroyed. Vishnu saw that book and said that you go to Tirupur and read this book to everyone. The residents of that place read Vedas. And they do all the work just like the Puranas, so you go there and preach this to everyone, so that all those religions get destroyed and they stop worshipping Shiva. When you complete this work, then live in the desert with your disciples until Kaliyug comes. You should hide your face. When Kaliyug starts, then you should make this advice of mine well known. Your position will definitely remain high. Narad Modi, after getting this order from Vishnu ji, made many disciples. Then Vishnu ji said, now you leave from there. One of my names is Aranya. You keep remembering it, then I will not have any fear. Thus, as per the order of Vishnu ji, Mudit left from there with his disciples and reached Tirupur. He made many people his disciples by showing many tricks. There was no one there who went to Modi and returned home without becoming him with his old religious faith. O Narad, you also became the disciple of Mudit due to the leela of Shiva because he used to do the work of the gods. Then you went to Tripura and praised Mudit so much. That Tripura also became Mohit's disciple. Mohit took a vow to Tripurasur that under no circumstances should his freedom be violated. After accepting this, Mudit removed the cloth from his face and made Tripura his disciple. He gave him a mantra and then told him about various duties and responsibilities. After Tripura became his disciple, there was no person who did not become Mohit's disciple.

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