श्री शिव महापुराण कथा चतुर्थ खंड अध्याय 9



ब्रह्मा जी बोले हैं नारद वीरभद्र अपने घरों को साथ लिए हुई युद्ध करने लगे दोनों ओर से बड़े जोर से आक्रमण हुआ और नाना प्रकार के शास्त्र प्रयोग में ले गए वीरभद्र ने क्रोधित होकर त्रिशूल हाथ में लिया था उसको तर्क के शरीर में मार कर इस धरती पर गिरा दिया तारक उसे आक्रमण से अचित हो गया कुछ समय पश्चात जब उसे चेक हुआ तब उसे वीरभद्र पर शाम से आक्रमण किया वीरभद्र ने तर्क पर पुणे त्रिशूल का वार किया जब बहुत देर तक दोनों में से कोई परस्त ना हुआ तो है नारा तुमने वीरभद्र से जाकर यह कहा है वीरभद्र तुम हमारी बात मानकर लड़ाई बंद कर दो तारक की मृत्यु तुम्हारे हाथ नहीं होगी जब शिवजी स्वयं उसके साथ युद्ध करेंगे तभी उसकी मृत्यु होगी वीरभद्र ने यह सुनकर तुमसे क्रोधित होकर कहा ही नारा तुम युद्ध तथा वीरता की बात क्या जानू तुम केवल तब करना ही जानते हो मैं तुमको वीरों के विषय में बताता हूं कि उनके चार धाम होते हैं जो स्वयं के बिना युद्ध करते हैं तथा अपने प्राणों का मुंह ना करके भली भांति लड़ते हैं वह प्रथम प्रकार के वीर हैं जो स्वामी के साथ रणभूमि में संसार की लीला लज्जा से मर जाते हैं हुए दूसरे प्रकार के हैं उनको और कहते हैं तीसरे जो अपने स्वामी के साथ युधिष्ठिर त्याग कर भाग जाते हैं उसे क्रूर कहते हैं चौथे हुए हैं जो निगम में होकर घर में बैठे रहते हैं तथा उसका स्वामी युग क्षेत्र में मर जाता है वह कर है उनको कहीं भी सुख नहीं मिलता मैं सत्य कहता हूं कि यदि शिवजी इस समय मेरे पास आकर मुझको तारक केवट से रोक तब तो असमर्थता है नहीं तो आज मैं तर्क को पृथ्वी से नष्ट कर दूंगा यह कहकर वीरभद्र ने तारा के ऊपर अपने त्रिशूल का वार किया दोनों फिर परस्पर युद्ध करने लगे दोनों और की सेवा भी आपस में भिड़ गई इस प्रकार दैत्यों को देवताओं ने बड़ी वीरता से प्राप्त किया तथा आदित्य अपने बहुत सी सी मरी हुई देखी युति स्थल से भाग चले यह नारद युद्ध भूमि की या दशा देखकर तारक महा क्रोधित हुआ हुआ एक करोड़ हाथ निकाल कर हाथी पर सवार हो देवताओं के पकाने को उसकी सेवा के भीतर घुस गया तथा उसने असंख्य देवताओं को मार डाला उसने अपने हाथी को छोड़ दिया जिसे देखकर सब हाथी भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे इस प्रकार तारक ने देवताओं पर विजय प्राप्त की उसे समय तारक का तेज कोई ना शासक और सब लोग बड़े दुखी हुए उनके हाथ में सब हाथी आदि को मार डाला यह दशा देखकर विष्णु जी से ना रह गया उन्होंने तुरंत चक्र उठाकर तर्क के साथ युद्ध कर देवताओं को अनियंत्रित किया विष्णु जी तथा तर्क में घोर युद्ध हुआ जिसमें दोनों ओर से अनेक लोग मारे गए तारक ने अपने तीचीन बानो की वर्षा से देवताओं को फिर भयभीत कर दिया तब विष्णु जी ने देवताओं को इस प्रकार भयभीत देखकर क्रोधित हो तर्क के ऊपर अपना चक्र चलाया उसे समय पृथ्वी का उठी परंतु चक्र को तर्क के शरीर पर हमने का कोई स्थान नहीं मिला तारक ने अपनी गुरु का स्मरण करने प्रणाम किया तथा अनेक प्रकार की माया दिखाई अनेक रक्षा हाथियों के समान ज़ीघड़नेते हुए उत्पन्न हुए तर्क या माया कोई ना जान पाया अतः हुए युधिष्ठिर से भाग कर स्कंद के पास जा पहुंचे तथा विनय के साथ भयभीत हो इस प्रकार बोल ही स्वामी हम आपकी शरण में आए हैं आप अब शीघ्र ही तर्क का वध कीजिए क्योंकि आपका अवतार इसी निर्मित हुआ है इसके बिना और कोई धारा को नहीं मार सकता है

TRANSLATE IN ENGLISH 

Brahma Ji said that Narad Veerbhadra along with his men started fighting. Both the sides attacked fiercely and various types of weapons were used. Veerbhadra got angry and took his trident in his hand. He hit Tarak on his body and made him fall on the ground. After some time when he came to his senses, he attacked Veerbhadra with his trident. Veerbhadra attacked Tarak with his trident. When none of them got defeated for a long time, then Nara you went and told Veerbhadra that Veerbhadra you should listen to us and stop the fight. Tarak will not die at your hands. He will die only when Lord Shiva himself will fight with him. Hearing this Veerbhadra got angry and said to you that Nara what do you know about war and bravery. You only know how to do it. I will tell you about the brave that they have four abodes. Those who fight without fearing for their lives and fight well, they are the first type of brave who die with their master in the battlefield with the shame of the world. They are of two types and are called the third one who abandons Yudhishthir and runs away with his master, he is called cruel, the fourth one is the one who sits in his house after getting married and his master dies in the Yug Kshetra, he does not get happiness anywhere, I am telling the truth that if Shivji comes to me right now and stops me from Tarak Kewat, then it is my inability, otherwise today I will destroy Tarak from the earth, saying this Veerbhadra attacked Tara with his trident, both of them started fighting again, the soldiers of both sides also clashed with each other, in this way the gods defeated the demons with great bravery and Aditya saw many of his dead bodies and ran away from the battle field, Narad seeing this condition of the battle ground, Tarak became very angry, he took out one crore hands and rode on an elephant and entered the army of the gods to catch them and he killed innumerable gods, he let go his elephant, seeing which all the elephants got scared and started running here and there, in this way Tarak conquered the gods, at that time Tarak's power was not visible to anyone, no ruler and all the people were very sad, all the elephants etc. were killed in his hands Seeing this condition, Vishnu Ji could not control himself. He immediately picked up his Chakra and fought with Tarak and made the Gods uncontrollable. A fierce battle took place between Vishnu Ji and Tarak in which many people were killed from both sides. Tarak frightened the Gods again with his shower of arrows. Then Vishnu Ji seeing the Gods frightened in this way got angry and used his Chakra on Tarak. At that time the earth rose but the Chakra could not find any place on Tarak's body. Tarak remembered his Guru and bowed down and showed many types of illusions. Many fierce elephants like Tarak were born. No one could recognize Tark or Maya. So he ran away from Yudhishthir and reached Skanda and with humility and fear said, "Swami, we have come under your shelter. Now you should kill Tarak quickly because your incarnation has been created for this only. No one else can kill Tarak without him.

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