श्री शिव महापुराण कथा चतुर्थ स्कंद अध्याय 8


ब्रह्मा जी बोले हे नारद तारकासुर भी एक अच्छे विमान के छात्र-छावर के साथ अरुण होकर अपनी विशाल सी सहित रणभूमि में आ पहुंचा इस प्रकार दोनों सेनाएं अंतर्वेद में आ पहुंची दोनों ओर से गाड़ी बनाई गई पहली पंक्ति हाथियों की दूसरी घोड़े की तीसरी रातों की कथा चौथी प्यादों की इस प्रकार कम से सी सजी गई दोनों और के वीर सांसद पशु क्लास ट्रिपन भिंड पाल तोमर मुर्धन चक्र भूषण नारायण आदि अस्त्र-शस्त्र लेकर युद्ध स्थल में अपनी वीरता दिखलाने के लिए आप पहुंची तभी दोनों और वीरों के बड़े विवेक से युद्ध रचना की फिर देवता तथा देश का घोर युद्ध आरंभ हुआ दोनों और की चतुरंगिणी सी नष्ट हुई यहां तक की थोड़ी सी देर में किया युधिस्थल सेनन के मृत शरीरों से भरकर भयानक हो गई अनेक वीर पृथ्वी गिरकर मर मर शब्द का उच्चारण करते थे कोई तलवार से घायल कोई मडर तथा कोई गधा से मुर्जित था रक्त की नदी पर चली भूत प्रेत पिसाचार आदि ने रक्त पीकर तृप्ति प्राप्त की वेद तालों में आकर हाथियों के सर उजाले इस प्रकार धीरे-धीरे देवता एवं दैत्य मारे परंतु कुछ समय के पश्चात सुनाई तथा चंद्रमा के साथ सुलह दुरुपयोग करने लगे इस सब ने घोर युद्ध किया दोनों दल अपनी अपनी विजय की इच्छा करते थे परंतु कोई भी परास्त ना हुआ उसे समय युद्ध स्थल अग्नि से जले हुए वृक्षों के समान भयानक दिखाई देता था

TRANSLATE IN ENGLISH 

Brahma Ji said, O Narada, Tarkasur also reached the battlefield with his huge army in the form of Arun with a good aircraft. In this way both the armies reached the battlefield. Carts were made on both sides, the first row was of elephants, the second of horses, the third of pawns, the fourth of pawns. In this way the brave MPs of both the sides, Pashu Class, Tripon, Bhind, Pal, Tomar, Murdhan, Chakra, Bhushan, Narayan etc. reached the battlefield with their weapons to show their bravery. Then the braves of both the sides formed the battle plan with great wisdom. Then the fierce battle of God and the country started. The four-fold army of both the sides was destroyed to such an extent that in a short time the battlefield became filled with the dead bodies of the soldiers and became terrible. Many brave men fell on the ground and started uttering the words 'die, die'. Some were injured by the sword, some were wounded by the sword and some by the donkey. The river of blood flowed and the ghosts, spirits, demons etc. got satiated by drinking the blood. The heads of the elephants came to the ponds and were cut off. In this way, slowly the gods and demons were killed, but after some time They narrated this and started trying to make peace with the moon. All of them fought a fierce battle. Both the groups desired victory but no one was defeated. At that time the battlefield looked as dreadful as trees burnt by fire.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ