ब्रह्मा जी बोले हैं नारद ऐसे समय में एक नारद नाम के ब्राह्मण का जो अजय मेड करता था यज्ञ में बलि देने के लिए एक बकरे की आवश्यकता हुई तब स्कंध का बकरा जो वरुण ने भेंट किया वह स्कंद की इच्छा जानकर नारद ब्राह्मण की ओर भाग गया नारद ने उसे बकरे को यज्ञ के लिए सब प्रकार योग्य जानकर पकड़ लिया तथा यज्ञ की अन्य सब सामग्री एकत्र की सहयोग वास नारद किसी कार्य से किसी दूसरे गांव में गया तब बकरा ब्राह्मण के जाने के पश्चात मठ उखड़ कर अपने घर भाग गया फिर वह सातों दीप तथा पृथ्वी को जीत कर पृथ्वी के नीचे चला और शेष लोग के पश्चात उसके पाताल लोक को भी जीत लिया इसके पश्चात वह फिर ऊपर के लोग को चला प्रथम वह गले में रस्सी बंधे हुए स्वर्ग लोक को गया फिर आकाश पर भी उसने विजय प्राप्त की फिर संपूर्ण ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त कर वह विष्णु पुरी में पहुंचा जब नारद ब्राह्मण उसे गांव से घर लौटा तो उसे देखा कि वह बकरा नहीं केवल रस्सी ही बांधी हुई है उसे समय आश्चर्य चकित होकर उसने सबसे पूछा तब सब ने यह उत्तर दिया कि हमने उसे जाते हुए नहीं देखा ना जाने वह बकरा था या क्या था क्योंकि उसके शरीर मैं तेज दिखाई पड़ता था मानो वह अग्नि का रूप हो नारद ब्रह्म ब्रह्म बकरे की इस प्रकार चले जाने से अत्यंत चिंतित हुआ फिर उसने विद्यमान पंडितों को बुलाकर आदि से अंत तक सब वृतांत का सुनाया तथा पूछा कि आप लोगों की क्या राय है मेरा तो सब परिश्रम व्यर्थ हो गया अब मैं क्या करूं इस कांत का यह चरित्र जानकर सब ब्राह्मण कहने लग ब्राह्मण तारक द्वितीय के वध के लिए इस खान ने अवतार लिया है और उसको देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र दिए हैं आज तू आप यह उचित है कि तुम उन्हीं के पास जाकर अपना सब वृतांत कहे ही नारा डी विद्वान ब्राह्मणों के ऐसे वचन सुनकर नारद ब्राह्मण वहां से चलकर इस काम के द्वार पर पहुंचा तथा द्वारपालो से कहा कि तुम स्कंध से कहो कि नारद नामक एक ब्राह्मण द्वारा द्वारा पर खड़ा है द्वारपाल ने पूछा तुम्हारा क्या मनोरथ है तब नारद ने द्वारपाल को सब वृतांत सुना उसे सुनकर द्वारपाल स्कंध के पास जा पहुंचा और विनती की की है स्वामी द्वारा पर नारद नामक एक ब्राह्मण है से आपके दर्शनों के निर्माता खड़ा हुआ है ताबिश खान ने आज का उत्तर दिया नारद हमारा परम भक्त है तुम उसे तुरंत भीतर ले जाओ और तू नारद ने भीतर जाकर स्कंध को प्रणाम किया वेद के अनुसार स्थिति तथा यह विनय की की जो बकरा में यज्ञ के लिए लाया था वह वहां से भाग गया है बड़े आश्चर्य की बात है कि आपके राज्य में रहकर इस प्रकार यज्ञ अधूरा रह जाएगा और तो आप मेरे इस दुख का निवारण कीजिए है नारद ब्राह्मण की यह वचन सुनकर इसका ने अपने गांड वीर बहू को बुलाया तथा कहा कि तुम तुरंत नारद के बकरे को ढूंढ कर दो जहां कहीं भी तुमको वह बकरा मिले उसे पकड़ कर तुरंत यहां ले आओ इस गांठ की आज्ञा पाकर वीर बहू अपनी सुना सहित बकरे की खोज में इस समय वहां से चला उसने उसे बकरे को तीन भुजाओं तथा नीचे के लोगों में डेड के पश्चात विष्णु लोक में उत्पाद मचाते हुए देखा वीरबाहु उसके सिंगन को पकड़ कर घसीट लाया तथा स्कंध को सौंप दिया स्कंद उसे बकरे को देखकर हंसी और उसे पर अरुण हुए फिर उन्होंने अपने वहां से बाल को दिखलाने के लिए उसको इतना बोल दिया कि वह मां के समान गति से आना यस तीन ऑन फूलों में खीरा तथा एक मुहूर्त भारत में तीनों लोकों में घूम कर लौट आया जब इसका अंत लौट कर घर पहुंचे तो प्रसन्न होकर उसके उत्तर का भीतर गए तब नारद ब्राह्मण से इस काम से कहा है महाराज अब मेरे यज्ञ का समय आ गया है तो आप बकरे को ले दीजिए हे नारद ब्राह्मण नारद के इस प्रकार के वचन सुनकर स्थान ने कहा है ब्राह्मण यह बकरा बलि की योग्य नहीं है क्योंकि यह हमारा वहां है तुम जो फल यज्ञ करके प्राप्त करना चाहते हो हम वह तुमको बिना यज्ञ के ही देते हैं नारद ब्राह्मण का यह सुन हाथ जोड़कर स्तुति करने लगा तथा स्कंद जी का यश गान करता हुआ अपने घर लौट गया तब देवताओं तथा मुनियों आदि में निष्कर्ण की स्तुति करने के पश्चात निवेदन किया स्वामी हमारे ऊपर जो अनेक कष्ट हैं आप उसको दूर कीजिए इसका हमने हंसकर उत्तर दिया है देवताओं तुमको जिसने इतना दुख पहुंचा है हम अपने गांव सहित जाकर उसका वध करेंगे तथा एक निवेश में ही व्यक्तियों की सेवा नष्ट कर डालेंगे तुमने शिवजी की जो सेवा की है उसका फल हम तुम्हें अवश्य देंगे अब तक जो कुछ भी हुआ उसे तुम शिवजी की लीला ही समझो शिवजी अपने भक्तों को सदैव आनंद प्रदान करते हैं परंतु दूसरों के लिए हुए बहुत भयानक है इस प्रकार स्कंध के मुख से शिवजी की लीला का वर्णन सुनकर देवता लोग अत्यंत प्रसन्न हो जय जयकार करने लगे
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Brahma Ji said that Narad, at such a time, a Brahmin named Narad, who used to do Ajay Med, needed a goat for sacrifice in the yagya. Then Skanda's goat which Varun had gifted, knowing Skanda's wish, ran towards Narad Brahmin. Narad caught the goat knowing that it was suitable for the yagya in every way and collected all the other materials of the yagya. Narad went to some other village for some work. Then after the Brahmin left, the goat left the monastery and ran away to his home. Then he conquered the seven worlds and the earth and went under the earth and after conquering the rest of the worlds, he also conquered its netherworld. After this, he again went to the world above. First, he went to the heaven with a rope tied around his neck. Then he conquered the sky also. Then after conquering the whole universe, he reached Vishnu Puri. When Narad Brahmin returned home from the village, he saw that it was not a goat, only a rope was tied. He was surprised and asked everyone. Then everyone replied that we did not see him going. We do not know whether it was a goat or what because light was visible in his body. It was as if it was a form of fire. Narad Brahma was very worried about the goat going away like this. Then he called the Pandits present there and narrated the whole story from beginning to end and asked what is your opinion, all my efforts have gone in vain, what should I do now, after knowing this character of this Kant, all the Brahmins started saying that this Khan has taken incarnation to kill Brahmin Tarak II and the Gods have given him their respective weapons, today it is appropriate that you go to him and tell your whole story. Hearing such words of learned Brahmins, Narad Brahmin left from there and reached the door of this work and told the gatekeepers that you tell Skandha that a Brahmin named Narad is standing at the door. The gatekeeper asked what is your wish, then Narad narrated the whole story to the gatekeeper, after listening to it the gatekeeper went to Skandha and requested that Swami, there is a Brahmin named Narad standing at the door who is the creator of your darshan. Tabish Khan replied today that Narad is our supreme devotee. You take it inside immediately and you Narada went inside and bowed to Skanda according to the Vedas and prayed that the goat which I had brought for the yagya has run away from there. It is a matter of great surprise that the yagya will remain incomplete in your kingdom and so you please relieve me of this sorrow. On hearing these words of Narada Brahmin, Iskara called his brave daughter-in-law and said that you immediately find Narada's goat and wherever you find that goat, catch it and bring it here immediately. On receiving this order, Veer Bahu along with his wife left from there in search of the goat. He saw that goat with three arms and people below creating a ruckus in Vishnu Lok. Veerbahu caught hold of its horn and dragged it and handed it over to Skanda. Skanda laughed on seeing the goat and became proud. Then he asked the child to come from there with the speed of a mother. Yes, cucumber in three flowers and one muhurta came back after roaming in all the three worlds in India. When its end came, When he reached home, he went inside happily and heard the answer. Then Narad said to the Brahmin, Maharaj, now the time for my yagya has come, so please take the goat. O Narad Brahmin. On hearing such words of Narad, the Brahmin said, Brahmin, this goat is not worthy of sacrifice because it is our place. Whatever fruit you want to get by performing the yagya, we will give it to you without the yagya. On hearing this from the Brahmin, Narad started praising him with folded hands and returned to his home singing the praises of Skand ji. Then after praising Skand ji among the gods and sages, he requested, Swami, please remove the many troubles that are on us. To this, we replied smilingly, Gods, the one who has caused you so much pain, we will go and kill him along with our village and destroy the service of the people in one go. We will definitely give you the reward of the service you have done to Shiv ji. Whatever has happened till now, consider it to be the leela of Shiv ji. Shiv ji always gives joy to his devotees, but it is very terrible for others. In this way, the leela of Shiv ji was told from the mouth of Skand. Hearing the description the gods became very happy and started hailing
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