श्री शिव महापुराण कथा चतुर्थी स्कंध अध्याय 5


ब्रह्मा जी बोले हे नारद सब देवता विनती करते हुए शिवजी से बोले हैं सबके स्वामी सबके दुख दूर करने वाले देवताओं के लिए तो आपकी केवल कृपा कटाक्ष ही बहुत है हम आपकी शरण में आए हैं आप हम पर दया कीजिए और हमको अपना सेवक जानकार कृपा की दृष्टि रखें आपका ध्यान विष्णु ब्रह्मा तथा संघ का अधिक भी करते हैं परंतु हुए आपको प्राप्त नहीं कर पाते हमारा यह सौभाग्य है कि हम इसका इलाज पर्वत पर आपका प्रत्येक दर्शन कर रहे हैं इस समय अपने जो शिशु के समान अपना रूप बनता है हम सबको उसे देखकर बड़ी प्रसन्नता प्राप्त होती है आपकी गति आपके सिवाय और कोई नहीं जानता देवताओं ने इसी प्रकार अत्यंत नम्रता से उसकी बहुत ही स्तुति की फिर विष्णु जी ने विनय करते हुए कहा वह शिवजी हमें आनंद पहुंचाने एवं तर्क देते का वध करने के लिए आप आप इस काम को आ गया दीजिए क्योंकि यह इसी निर्मित अवतरित हुए हैं हे नाथ विष्णु कैसे वचन सुनकर शिव जी ने हंसकर कहा है विष्णु हमने तुलसी निर्मित गिरजा से विवाह किया था अब तुम जानकर अपना अपना काम करो इसके 50 शिवजी एवं गिर जाने स्कंध को अच्छी तरह से प्यार किया तथा अत्यंत प्रसन्न हुए फिर देवताओं ने इसका अंत के लिए शिव की आज्ञा लेकर कैलाश पर्वत के निकट राष्ट्र वास्तु पूर्व में एक बहुत ही उत्तम मंदिर की स्थापना की वह मंदिर इतना सुंदर था कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता इस मंदिर में प्रत्येक स्थान को अच्छी-अच्छी सामग्रियों से सहजित किया गया है था इस प्रकार के मंदिर के पूरी तरह तैयार हो जाने पर विष्णु जी मुझे सुमित सब मुनियों को बुलाकर उसे मंदिर में इस कांड का अभिषेक किया तथा सी आसन पर बैठाया विष्णु तथा हम सबको ने इस खान को विश्व का एवं अपना स्वामी मां का राजतिलक किया और अनेक भेंट दिए उनकी अच्छी प्रकार से सेवा करने प्रकार के शस्त्र भी वेट किया इस समय शिव एवं गिरजा भी वही उपस्थित हुए हुए देवताओं की ऐसी सभा को देख अत्यंत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने अपने समस्त सी स्कंध को दे दी गिरजा ने सब वेस्टन पर पानी का एक ऐसा कवच दिया जो युद्ध में शत्रुओं के सब प्रकार के बहारों से रक्षा करें विष्णु ने इस काम को जयंती माला देखकर एक पुष्प पहाड़ अपने हाथ से बना कर उसके कांड में डाल वरुण ने एक बकरा भेंट किया उसे समय चारों ओर आनंद ही आनंद दिखाई देता था मैं विष्णु तथा सब देवता प्रसन्न होकर इस काम की स्तुति करने लगे

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Brahma Ji said, O Narada, all the gods while requesting said to Shiv Ji, O Lord of all, the one who removes all the sorrows, your kindness and sarcasm is enough for the gods, we have come in your refuge, please have mercy on us and considering us your servant, keep a kind look on us, Vishnu and Brahma also meditate a lot on you, but are unable to get you, it is our good fortune that we are seeing you every time on the mountain, at this time, the form that you take is like a child, seeing that, we all get very happy, no one knows your speed except you, the gods praised him very humbly in the same way, then Vishnu Ji humbly said that Shiv Ji has come to give us happiness and to kill the one who gives us logic, you give us this work because he has incarnated in this created form, O Lord Vishnu, on hearing such words, Shiv Ji smiled and said, Vishnu, we married the Tulsi created church, now you know and do your work, Shiv Ji loved its 50 and fell down, and became very happy, then the gods took the permission of Shiv to put an end to this, near the Kailash mountain, Rashtra Vastu Purva. I established a very good temple. That temple was so beautiful that it cannot be described. Every place in this temple was decorated with the best materials. When this temple was completely ready, Vishnu ji called all the sages and consecrated this Khan in the temple and made him sit on the seat. Vishnu and all of us crowned this Khan as the king of the world and our Swami Maa and gave many gifts to him. We also waited for weapons to serve him well. At this time, Shiva and Girja were also present there. They were very happy to see such a gathering of gods and they gave their entire section to him. Girja gave a shield of water to all the westerns which would protect them from all kinds of attacks of enemies in the war. Vishnu made a mountain of flowers with his own hands and put it in its section. Varun presented a goat. There was happiness all around him. Vishnu and all the gods were happy and started praising this work.

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