श्री शिव महापुराण कथा चतुर्थ खंड अध्याय 4


ब्रह्मा जी बोले हे नारद वही स्त्रियां जिनके विषय में हम पहले बना चुके हैं इस समय स्नान करने के लिए उसे नदी के किनारे पर जा पहुंचे हुए उसे बालक को देखा निकट आप पहुंची तथा बालक को अत्यंत सुंदर प्रकार प्रत्येक स्त्री का मन उसको लेने के लिए चाहने लगा तब सब ने उसे उठा लेने की इच्छा की और बोली कि यह बालक मेरा है मैं से लूंगी यह मेरे घरों से उत्पन्न हुआ है क्यों कहते हुए सब 12 परस्पर झगड़ने लगे तब बालक ने सबके स्थानों से दूध पीकर के झगड़े को दूर किया इस प्रकार हुए सब माता के समान हो गई पार्वती ने नंदन सेनानी भाव को स्कंद गंगा सूट सरजा पासबुक आदि पालक के नाम बड़े इसके पश्चात उसे स्त्रियों ने बालक को अपने घर ले जाकर बड़ा उत्सव किया बालक ने जन्म का महीना कार्तिक तथा छठ तिथि थी इस प्रकार शुभ लग्न एवं शुभ मुहूर्त में उनसे जन्म लिया था हे नारद एक दिन ब्रह्मा विष्णु तथा इंद्र आदि सब देवता इंद्र की सभा में विराजमान थे तुमने उचित समय जानकर शिवजी का ध्यान करने के पश्चात स्कंद के जन्म का भुगतान वर्णन किया उसे सुनकर देवता बोले ज्ञात होता है कि शिवजी ने हम पर कृपा करके अपने लड़के को उत्पन्न किया है अब हमारे सब कार्य पूरे हो गए इस प्रकार बात हो ही रही थी कि स्कंद अपने साथियों के साथ खेलते खेलते उसे स्थान पर आ पहुंचे मुनियों और देवताओं ने ऐसे तेजस्वी बालक को देखकर पूछा यह कौन है तथा किसका लड़का है फिर सामने यही कहा इसको बुलाकर पूछना चाहिए क्योंकि यह सुंदर स्वरूप को देखकर नेत्र नहीं थकते तब उन्होंने इस समय लड़के को बुलाकर पूछा कि तुम कौन हो इस गाने में उत्तर दिया हम लड़के के रूप में शिवजी है वही शिवजी जिनका तुम सदैव ध्यान करते हो तथा जो लोग के हित चाहने वाले हैं हमको लोग गुरु कहते हैं यह सुनकर विष्णु जी ने कुछ सोच कर कहा यदि तुम शिवजी हो तो हमको विश्वास दिलाने के लिए अपना स्वरूप दिखलाओ इसका नया सुनकर अपने भयानक शरीर के विकृत रूप प्रस्तुत किया जिसमें करोड़ों ब्राह्मण इंद्र उपेंद्र आदि वर्तमान थे उसे समय समस्त स्वभाव उसके रोम रोम में प्रवचन देखकर आप उठी विष्णु जी तथा मैं घबराकर शरण शरण पुकारी तथा कहा वास्तव में आप शिवजी का स्वरूप है आप अब आप अपना वही स्वरूप धारण कीजिए यह सुनकर इसका अंत में तुरंत अपना पहले वाला स्वरूप धारण कर लिया

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Brahma Ji said, O Narada, the same women about whom we have made a plan earlier, reached the bank of the river to take a bath and saw the child. They reached near and found the child very beautiful. Every woman wanted to take him. Then all of them wished to take him and said that this child is mine, I will take him from you, he was born in my house. Saying this, all of them started fighting with each other. Then the child drank milk from everyone's place and resolved the fight. In this way, all of them became like mothers. Parvati gave the name of Skanda Ganga suit, Sarja, passbook etc. to Nandan Senani Bhaav and gave him the name of the foster child. After this, the women took the child to their house and celebrated a big festival. The month of birth was Kartik and the date of Chhath. Thus, he was born to them in the auspicious time and auspicious time. O Narada, one day Brahma, Vishnu and Indra etc. all the gods were sitting in Indra's court. Knowing the right time, after meditating on Lord Shiva, you described the story of Skanda's birth. Hearing this, the gods said, it is known that Lord Shiva has blessed us and has given birth to his son. Now all our work will be done. The conversation was over when Skanda, while playing with his friends, reached that place. The sages and gods, seeing such a bright boy, asked who is this and whose son is he. Then they said that they should call him and ask because the eyes do not get tired of seeing his beautiful form. Then they called the boy and asked who are you. He replied in the song that I am Shiv Ji in the form of a boy, the same Shiv Ji whom you always meditate upon and who wants the welfare of the people, people call me Guru. Hearing this, Vishnu Ji thought for a while and said that if you are Shiv Ji, then show us your form to convince us. Hearing this, he presented the distorted form of his terrifying body in which crores of Brahmins, Indra, Upendra etc. were present. Seeing the sermon in every pore of his body, Vishnu Ji got up and I got scared and called for shelter and said that actually you are the form of Shiv Ji. Now you assume your same form. Hearing this, Vishnu Ji immediately assumed his previous form.

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