श्री शिव महापुराण कथा चतुर्थ खंड अध्याय 3 का भाग 2


हे नारद शिवजी के पुत्र ने दोनों को वहां से विदा किया तथा स्वयं अग्नि की दी शक्ति हाथ में ले श्वेत गिरी पर चढ़कर अत्यंत भयानक शब्द को नाथ किया उसे शब्द को सुनकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे प्रलय हुआ है चाहता हूं फिर उसे देवताओं के मनोरथ पूर्ण करने के लिए अपनी शक्ति पर्वत के शिखर पर मारी जिससे तीनों लोक में आकर मच गया और पर्वत फाटक कर गिर पड़ा उसे समय महा बलवान 10 परम रक्षा कवास हुए जो पहले वहां रहते थे तथा उन्हें करने को दौड़े थे फिर देवता और मनी जीत होकर कहने लगे कि यह क्या हुआ परंतु किसी की समझ में कुछ ना आया तब इंद्र आदि देवता उसे देखने के लिए चले वहां आकर उन्होंने देखा की बड़ी लड़का पर्वत पर खड़ा है उसे समय उसे पर्वत ने अपना स्वरूप मनुष्यों के समान बनाकर इंद्र ने भेंट की तथा हाथ जोड़कर यह कहा है इंद्र आप तीनों लोक के देवता हैं इस समय मुझको महान दुख प्राप्त हुआ है इस बालक ने मुझको शक्ति से मार कर ऐसा भाई शब्द किया है की सब्जियों को दुख पहुंच धरती कांप उठी तथा सब पर्वत वन नदी भी कहां पूछे थे संख्या जीव मर गए यह सब इसकी बालक ने किया है जो सामने खड़ा है वह नहीं मालूम कि यह कौन है तथा किसका पुत्र है इसके व्यर्थ ही मुझे इतना दुख दिया है है इंद्र आप सीख रही इसका वध कर डालें नहीं तो यह पहले ही कर डालेगी इंद्र ने यह सुनकर उसे लड़के पर बहुत क्रोध किया था कुछ वेदना समझ कर उसे बालक को मार डालने की इच्छा की परंतु शिवजी की लीला पर है इंद्र ने आक्रमण कर अपना बाजार उसे लड़के के दाहिने को उसने मारा जिसे उसे स्थान से एक मनुष्य उत्पन्न हुआ जो बाल एवं प्रक्रम में उसी के बराबर था उसका नाम शंकर रखा साथ में उत्पन्न होते ही बड़ा भयानक शब्द किया तब इंद्र ने यह देखा कि क्रुद्ध होकर उसकी बाइक कर में फिर रखना बाजरा मारा इंडिया उसे एक दूसरा मनुष्य उत्पन्न हुआ उसे भी शराब कहते हैं तुम्हारा दूसरा शराब भी उत्पन्न होकर घर आनंद करने लगा इंद्र ने क्रुद्ध होकर अपना बाजार फिर मारा परंतु उसका कोई फल न निकाला तथा एक व्यक्ति और प्रगट होकर खड़ा हो गया उसे नियमित कहते हैं वह तीन ऑन पहले बालक के सहायक हो गए हुए चारों पर लाइक याग्नि के समान प्रकट हुआ तब उसे बालक ने अपने तीनों गानों सहित इंद्र के ऊपर आक्रमण कर दिया हे नारद इस प्रकार के आक्रमण से इन रुद्र का पालन करने वाला तेज उसमें देखकर इंद्र निर्मल होकर कहां पहुंचे तथा हाथ जोड़कर उनकी शरण में आए इंद्र ने अपने सब शास्त्र फेक कर दंडित की इंद्र के साथ जो सी थी उसने भी उनका आदर सम्मान किया तब उसे बालक ने इंद्र की यात्रा देखकर इंद्र को दास बांधा था निर्णय किया तब सब देवता सहित इंद्र ने हाथ जोड़कर उसकी स्तुति की आप बालक नहीं बालक के स्वरूप में ब्रह्मा है अपने अपने प्रताप को नहीं पहचाना इसी कारण अहंकार से हमारी या दशा हुई है कृपा करके हमारे सब अपराध क्षमा कर दीजिए और हमको अपने शरण में ले ले लीजिए अपने किसी भक्त पर प्रसन्न होकर ही अवतार लिया है आप सच-सच बताएं कि आप कौन हैं किसके पुत्र हैं तथा कहां उत्पन्न हुए हैं इंद्र कैसे वचन सुनकर बालक ने कहा है इंद्र अब तुम शीघ्रता पूर्वक यहां से जो और प्रसन्नता पूर्वक अपने राज कार्य करो यह कहकर उसे इंद्र को वहां से विदा किया तथा कुछ भी भेद न बताया इस प्रकार वहां से विदा होकर इंद्र अपने राज्य में जा पहुंचे

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O Narada, son of Lord Shiva bid them farewell from there and himself took the power given by Agni in his hand and climbed the white mountain and uttered a very terrifying sound. On hearing that sound it seemed as if apocalypse had occurred. Then to fulfil the desire of the gods, he hit his power on the peak of the mountain, due to which there was a commotion in all the three worlds and the mountain broke down and fell down. At that time 10 very powerful and powerful Raksha Kavas who used to live there earlier, ran to kill them. Then the gods and Mani became victorious and started asking what has happened, but nobody could understand anything. Then Indra and other gods went to see him. Coming there, they saw that the elder boy is standing on the mountain. At that time the mountain transformed itself into a human form and Indra presented him and said with folded hands, Indra, you are the god of all the three worlds. At this time, I have suffered a great sorrow. This boy has hit me with his power and has made such a sound that the earth trembled in pain and all the mountains, forests and rivers also got so much pain that all the living beings died. All this has been done by this boy. The one standing in front does not know who he is and whose son he is. He has given me so much pain in vain. Indra, you are learning, kill him or else she will do it beforehand. Hearing this, Indra was very angry with the boy. Thinking it to be a pain, he wanted to kill the boy, but it is the play of Lord Shiva. Indra attacked and hit the boy's right side. From that place, a man was born, who was equal to him in age and process. He was named Shankar. As soon as he was born, he made a very terrible sound. Then Indra saw that he was angry and then he hit the boy's right side. Another man was born. He is also called wine. Your second wine was also born and started enjoying the house. Indra got angry and hit his right side again, but it did not yield any result. Another person appeared and stood there. He is called Niyamrit. Those three and four became the helpers of the first boy. He appeared like a yagni on all four sides. Then the boy attacked Indra with his three sons. O Narada, seeing the power of Rudra's protector in him, Indra became calm and went to him with folded hands. Indra threw all his weapons and punished him. The woman who was with Indra also respected him. Then the boy, on seeing Indra's journey, decided to make Indra his slave. Then Indra along with all the gods, folded their hands and praised him saying that you are not a child but Brahma in the form of a child. You did not recognize your own power; due to this arrogance we have reached this condition. Kindly forgive all our sins and take us under your protection. You have taken incarnation only after being pleased with one of your devotees. Tell us the truth as to who you are, whose son you are and where you were born. On hearing such words of Indra, the boy said, Indra, now you quickly go from here and happily do your royal work. Saying this, he sent Indra away from there and did not reveal any secret. Thus, after leaving from there, Indra reached his kingdom.

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